लखनऊ: कोरोना के इस काल में ब्लड यूनिट की अत्यधिक आवश्यकता वाले मरीजों की जान को खतरा हो रहा है. थैलेसीमिया, ल्यूकीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया जैसी तमाम गंभीर रोगों के मरीजों को खून की कमी होने के चलते 15 दिन से महीने भर तक का इंतजार करना पड़ रहा है, क्योंकि ब्लड बैंकों में भी रक्तदान नहीं हो पा रहा है.
राजधानी में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में यूपी समेत आसपास के राज्यों से भी तकरीबन 700 थैलेसीमिया के मरीजों का इलाज किया जा रहा है. कोरोना के संक्रमण के डर से लोग रक्तदान करने से कतरा रहे हैं. रक्त दाताओं की कमी के चलते ब्लड बैंक में ब्लड यूनिट की खासी कमी देखी जा रही है. इस वजह से थैलेसीमिया के साथ अन्य गंभीर रोगों के मरीज, जिन्हें एक निश्चित समय अंतराल पर खून की आवश्यकता होती है, उनकी समस्या गंभीर होती जा रही है.
केजीएमयू की ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा कहती हैं कि आज के समय में कोविड-19 का संक्रमण हर ओर फैला हुआ है. इस दौर में चिकित्सा जगत का एक हिस्सा ब्लड बैंक और ट्रांसफ्यूजन विभाग काफी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. ऐसा इसीलिए है, क्योंकि लोगों में बहुत भय व्याप्त हो गया है. लोगों को लगता है कि कहीं भी जाने से उन्हें कोविड-19 का संक्रमण हो सकता है. इस भय के कारण बहुत सारी परेशानियां अब हमें झेलनी पड़ रही हैं.
मार्च महीने में बहुत कम कोविड-19 के पॉजिटिव मरीज आ रहे थे. साथ ही उन मरीजों में ब्लड यूनिट्स की रिक्वॉयरमेंट नहीं होती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से काफी बड़ी संख्या में कोविड-19 के मरीज आ रहे हैं और इनमें गंभीर मरीज शामिल हैं. ऐसे में बहुत सारे मरीजों को ब्लड यूनिट की आवश्यकता पड़ रही है. हफ्ते भर में 20 से 30 यूनिट रक्त कोविड-19 के वॉर्ड में बिना किसी डोनर के भेजना पड़ रहा है, यह एक भयानक स्थिति है.
इसके अलावा थैलेसीमिया के बच्चों और मरीजों में हर 3 हफ्ते में ब्लड यूनिट की आवश्यकता पड़ती है. एक निश्चित समय अंतराल पर खून की आवश्यकता पड़ने वाले मरीजों में ल्यूकीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज भी शामिल हैं. ब्लड बैंक पूरी कोशिश कर रहा है कि इन मरीजों की ब्लड यूनिट की आवश्यकता को हम पूरा कर सकें. इसके बावजूद सभी मरीजों को उनके नियत समय पर ब्लड यूनिट मुहैया करवा पाने में विभाग असमर्थ हो रहा है.
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट के ट्रांसफ्यूजन विभाग के प्रो. अनुपम वर्मा कहते हैं कि तकरीबन 40% ऐसे मरीज हैं, जो डोनर न होने की वजह से ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं करवा पा रहे हैं. थैलेसीमिया के मरीजों को रक्त की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है. उनके शरीर में बनने वाला रक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाता.
थैलेसीमिया के मरीजों में रेड ब्लड सेल्स सिर्फ 20 दिन तक ही जीवित रह पाते हैं, जबकि सामान्य तौर पर यह 120 दिनों तक शरीर में रह सकते हैं. इसी वजह से थैलेसीमिया के मरीजों में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है. थैलेसीमिया से पीड़ित मरीज को एक यूनिट ब्लड की आवश्यकता लगभग 25 दिन में दोबारा पड़ सकती है.
प्रो. अनुपम का कहना है कि हमारे ब्लड बैंक में 'O ब्लड ग्रुप' की कमी चल रही है. ब्लड डोनर्स की संख्या कम होने की वजह से प्लेटलेट्स को भी तैयार कर पाना मुश्किल हो रहा है. हालांकि प्लेटलेट्स फेरेसिस प्रोसीजर अपनाकर इस कमी को पूरा करने की कोशिश की जा रही है, ताकि ल्यूकेमिया जैसे मरीजों को प्लेटलेट्स मुहैया करवाई जा सके.
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट के ब्लड बैंक में रक्त यूनिट की कमी को पूरा करने के लिए 15 अगस्त को एक इन-हाउस ब्लड डोनेशन कैंप लगाया जा रहा है. इस कैंप में अस्पताल के हेल्थ केयर वर्कर्स स्वैच्छिक रक्तदान कर सकेंगे. प्रो. वर्मा के अनुसार, कैंप लगाने का उद्देश्य ब्लड बैंक में हो रही ब्लड यूनिट की कमी की भरपाई करना है. यदि कोई अन्य रक्तदाता डोनेट करना चाहता है तो वह भी 15 अगस्त को संस्थान में आ सकता है.