लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी अनेक जिलों के दूसरे दलों से आए नेताओं की प्रयोगशाला बना चुकी है. उदाहरण के तौर पर शाहजहांपुर, जहां भाजपा के तीन मंत्री होने के बावजूद जब जिला पंचायत के अध्यक्ष और महापौर का चुनाव होना था तो पार्टी को बाहरी दलों के लोग याद आए. ऐसे ही लखीमपुर, हरदोई औऱ पूर्वांचल और पश्चिम के अनेक जिले से ऐसे हैं जहां भारतीय जनता पार्टी दूसरे दलों से आए नेताओं के ऊपर निर्भर हो चुकी है. निकाय चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों हर रोज जॉइनिंग हो रही है. जिसमें जिताऊ उम्मीदवार शामिल किए जा रहे हैं. ताकि पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ता रहे..
हाल ही में ज़ब शाहजहांपुर में ज़ब मेयर की तलाश जारी थी तब भाजपा को अपनी पार्टी से एक अदद प्रत्याशी नहीं मिला. जबकि शाहजहांपुर में भाजपा के तीन मंत्री हैं. वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना, लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद और सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर. इनमें से जितिन प्रसाद भले ही कांग्रेस से भाजपा में आए हों मगर बाकी दोनों संगठन के पुराने महारथी हैं. इसके बावजूद पहली बार नगर निगम के चुनाव को लेकर उन्होंने एक भी ऐसा नेता तैयार नहीं किया था जिसको महापौर पद पर भारतीय जनता पार्टी उतार सकती. दो दिन पहले पीलीभीत से भी भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के छह बार के विधायक को अपनी पार्टी में शामिल किया हेमराज वर्मा भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं. माना जा रहा है कि भाजपा इनको वरुण गांधी की जगह चुनाव लड़ाएगी.
वरुण गांधी के तेवर से स्पष्ट है कि भाजपा 2024 में उनको अपना उम्मीदवार बनाने नहीं जा रही है. ऐसे में भाजपा को एक बार फिर संगठन से कोई बड़ा चेहरा नहीं मिला और बाहरी नेता को लाकर चुनाव लड़ाया जाएगा. यह तो दो उदाहरण हैं विधानसभा हो या लोकसभा या फिर निकाय चुनाव या जिला पंचायत के चुनाव भारतीय जनता पार्टी में अनेक जिलों में इसी तरह से दूसरे दलों के महारथियों को अपनी पार्टी में शामिल करके चुनाव लड़ाया और अपने कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया. वर्ष 2014 से शुरू हुए यह प्रयोग अब तक समाप्त नहीं हुए हैं. निकाय चुनाव से लेकर अब तक लगभग हर रोज पार्टी में कोई ना कोई नेता ज्वाइन कर रहा है. जबकि मूल कार्यकर्ता इस बात का रोना रो रहे हैं कि उनको पर्याप्त मौका नहीं मिलता है. वरिष्ठ पत्रकार औऱ राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय ने बताया कि निश्चित तौर पर भाजपा इस तरह के प्रयोग कर रही हैं. जिन जिलों में या जिन क्षेत्रों में भाजपा को जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिलता वहां वे दूसरे दलों से बेहतर समीकरण वाले नेताओं को अपनी टीम में ले लेते हैं. इसको लेकर उनकी आलोचना भी हो रही है, मगर सच्चाई यह है कि भाजपा का जनाधार इस वजह से बढ़ भी रहा है.
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