लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 में एक साल से भी कम का समय बचा है. भाजपा इस चुनाव में जहां उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने की तैयारी कर रही है, वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस उत्तर प्रदेश को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति में है. पार्टी जहां पूरे देश में विपक्षी एकता के लिए काम कर रही है, वहीं लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भाजपा व दूसरे क्षेत्रीय दोनों ने अपने-अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी है. वहीं कांग्रेस की तैयारियों को देखकर राजनीतिक विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.
दरअसल, उत्तर प्रदेश कांग्रेस की राज्य कार्यसमिति की घोषणा अभी तक नहीं हुई है, वहीं उत्तर प्रदेश की प्रभारी व राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से उत्तर प्रदेश का रुख नहीं किया है. वहीं नए प्रदेश अध्यक्ष लाने के लिए अफवाहें भी सुनाई दे रही है. इन सब के बीच उत्तर प्रदेश का नये प्रभारी को लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में पार्टी में चुनावी तैयारियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
राजनीतिक विशेषज्ञ व लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रो. संजय गुप्ता का कहना है कि 'कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव से एक संदेश साफ तौर पर है कि इस बार मुस्लिम वोटर कांग्रेस के पक्ष में जाता दिख रहा है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में किसी बड़े अल्पसंख्यक नेता को उत्तर प्रदेश में प्रभारी की कमान दे सकती है. इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सलमान खुर्शीद, नदीम जावेद, राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी सरीखे नेताओं को उत्तर प्रदेश की कमान दी जा सकती है. वैसे इस लिस्ट में हरियाणा से नेता व राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कुछ और नेताओं के नाम भी चल रहे हैं. उन्होंने बताया कि 'कांग्रेस इस बार के लोकसभा चुनाव में दलित और मुस्लिम वोटरों पर फोकस कर रही है. यह वोट बैंक कांग्रेस के लिए केंद्र की सत्ता में वापसी का रास्ता हो सकता है. दो प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा होता भी दिख रहा है.'
प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि 'बीते निकाय चुनाव में कांग्रेस चार सीटों पर सीधे दूसरे नंबर पर आ गई है. पार्टी मुरादाबाद, शाहजहांपुर, झांसी और मथुरा नगर निगम में दूसरे नंबर पर रही, जबकि कानपुर जैसे बड़े शहर में वह तीसरे नंबर पर रही. कांग्रेस पार्टी ने अपने रायपुर अधिवेशन में दलितों को 50% आरक्षण पार्टी में देने का कहा है. जिसका फायदा भी पार्टी को देखने को मिल रहा है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में किसी बड़े नेता को जिम्मेदारी देकर दलित व मुस्लिम गठजोड़ को साधने की पूरी कोशिश कर रही है.'
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प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि 'अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो केंद्र में अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी पसंद कांग्रेस ही रही है, लेकिन बीते दो चुनावों में कांग्रेस के इस वोट बैंक भाजपा व एआईएमआईएम ने कुछ हद तक सेंध लगाया है, लेकिन देश में जो मौजूदा हालात हैं उसे देखकर यह साफ तौर पर समझा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय एक बार फिर से कांग्रेस का रुख करेगा. उन्होंने बताया कि जहां 2014 की लोकसभा में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कुल 38% मुस्लिम समुदाय का वोट मिला था, वहीं 2019 में यह घटकर 30% रह गया था, जबकि एआईएमआईएम 2014 में 12% 2019 में 16% मुस्लिम वोट मिले थे. वह बीजेपी को 2014 में 9% व 2019 में 19% मुस्लिम वोट प्राप्त हुए थे. 2024 के समीकरण में वह पूरी तरह से एआईएमआईएम व भाजपा से छिटकर कांग्रेस में जाता दिख रहा है. ऐसे में कांग्रेस करीब 50 फ़ीसदी से अधिक अल्पसंख्यक वोटरों पर 2024 में बात कर सकती है.'
बीते दो लोकसभा चुनाव में यूपी में विभिन्न पार्टियों को मिले मुस्लिम वोट |
पार्टी | साल 2014 | साल 2019 |
एआईएमआईएम | 12% | 16% |
बीएसपी | 8% | 7% |
सपा | 6% | 5% |
सीपीआई(एम) | 4% | 3% |
बीजेपी | 9% | 19% |
कांग्रेस | 38% | 30% |
बीते दो लोकसभा चुनाव में यूपी में विभिन्न पार्टियों को मिले वोट |
पार्टी | साल 2014 | साल 2019 |
बीजेपी | 42.60% | 40.30% |
कांग्रेस | 28.50% | 22.60% |
एआईएमआईएम | 5.50% | 11.10% |
बीएसपी | 21.90% | 18.30 % |
सपा | 19.30% | 18.70% |
सीपीआई(एम) | 0.70% | 0.50% |