लखनऊ: पपीता किसानों की आय का अच्छा साधन है. बावजूद इसके किसानों का पपीते की खेती के प्रति रुझान नहीं दिखता. इसका कारण जानकारी का अभाव है, जिसकी वजह से किसान पपीते की खेती न करके अन्य फसलों की खेती करता है. किसानों को पपीते की खेती से होने वाले फायदे के साथ-साथ यह भी पता होना जरूरी है कि इसकी खेती की कैसे जाए. इसके बाद ही किसान पपीते की खेती के लिए जागरूक होंगे. पपीते की खेती करने वाले किसान और विशेषज्ञ ने इसकी पूरी जानकारी दी.
ऐसे तैयार करें नर्सरी
नर्सरी तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ नीम की खली तथा ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करने से नर्सरी में बीमारियों का प्रकोप बिल्कुल नहीं होता. पपीते की नर्सरी हर स्थिति में दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए, जो किसान आलू की खेती करते हैं, वह पपीते का बाग आसानी से लगा सकते हैं. मार्च के पहले सप्ताह में अच्छी तरीके से खेती की तैयारी करके 150 से 200 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा ट्राइकोडर्मा जैविक फंफूदी जनित उत्पाद का 20 किलोग्राम पाउडर खेत में अच्छी तरीके से छिड़काव कर दें. इससे उत्पादन बहुत अच्छा होगा.
नर्सरी में बीमारियों से ऐसे करें बचाव
पौधा रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 8 फीट तथा पौधे से पौधे की दूरी 7 फिट रखनी चाहिए. इससे हवा का आवागमन होगा और उत्पादन अच्छा होगा. पपीते में प्रमुख रूप से पौध गलन की समस्या अधिक रहती है. इसके लिए जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए. किसानों को ढाई फीट की मेड़ बनाकर पौधों का रोपण करना चाहिए. पपीते में मौजेक की बीमारी की बहुत बड़ी समस्या बनी रहती है. बरसात हो जाने के बाद यह बीमारी बहुत रफ्तार में फैलती है. इस बीमारी का प्रसारण एक सफेद मक्खी के द्वारा होता है. उसको प्रतिबंधित करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड नामक कीटनाशक की 1.5 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव प्रभावी होता है. पपीते में फलों के पकते समय एंथ्रेक्नोज बीमारी का अधिक खतरा रहता है. इसके लिए सोडियम बाई कार्बोनेट का समय-समय पर 1% का छिड़काव करते रहना चाहिए, जिससे इस समस्या से बचा जा सकता है. विशेषज्ञ सत्येंद्र सिंह ने कहा कि किसी भी किसान को खेती के बारे में जानकारी चाहिए हो तो वह हमसे 6392113392 पर 24 घंटे सम्पर्क कर सकता है.
पपीते के फायदे
पपीता अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट है. वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान पपीते का उपभोग बहुत ज्यादा बढ़ गया है. यहां तक कि इसकी 5 ग्राम हरी पत्ती पीसकर हल्के गुनगुने पानी में सुबह के समय प्रयोग करने से खांसी-कफ से बहुत राहत मिलती है. साथ में यह शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को भी बढ़ाता है. पपीते के पौधे का पूरा भाग अपने औषधीय गुणों से जाना जाता है. यह एक अच्छा इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. छोटे बच्चों में पपीते के फलों को खाने की आदत डालनी चाहिए, जिससे उनकी आंखों की रोशनी बढ़े. पपीते का फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है. इसके पूरे भाग जिसमें प्रमुख रूप से पत्तियां, छाल, गुदा, बीज में औषधि गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. पपीते में सी और ई प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. इसके साथ ही पपीता मैग्नीशियम एवं पोटाश का अच्छा स्रोत है. इसमें विटामिन बी पेन्टाथोनीक अम्ल, फोलेट तथा फाइबर भी अधिक मात्रा में पाया जाता है.
मांसाहारियों के लिए पपीता और फायदेमंद
पपीते में एंजाइम बहुत अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें प्रोटियालीटिक एंजाइम पपेन, कायमोपपेन अधिक पाए जाते हैं. जो लोग मांसाहारी होते हैं. मीट के शौकीन होते हैं, उनमें मांस में पाए जाने वाले प्रोटीन का प्रोटियालीटिक एंजाइम शीघ्रपतन का कार्य करता है. शरीर में प्रोटीन के संपूर्ण पाचन का कार्य पपेन एंजाइम बड़ी सफलता से कर देता है. इसमें पाए जाने वाला कायमोपपेन शरीर में रीढ़ की हड्डी में समस्या होने पर यह एंजाइम अच्छा कार्य करता है. ब्रेकफास्ट लंच एवं डिनर के बाद पपीते का प्रयोग करने से पाचन क्रिया शीघ्र पूर्ण हो जाती है. पपीते की पत्तियां डेंगू बुखार में काफी प्रभावी होती हैं. शरीर में बन रही कैंसर की कोशिकाओं को संपूर्ण नष्ट करने का काम करती हैं. इनकी पत्तियों में एंटीमलेरियल, एंटी प्लाज्मोडियल, एंटीवायरल एंटीबैक्टीरियल एवं एंटीफंगल विशेष औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण इनकी पत्तियों का जूस प्रमुख रूप से डेंगू फीवर होने पर लगातार गिर रही प्लेटलेट्स को बढ़ाने का काम करता है.
पपीते के एक पौधे में हर साल 70 से 80 किलो पपीता निकलता है. यदि आप 1 एकड़ खेती में पपीते की खेती करते हैं तो अच्छी पैदावार होने पर एक साल में 10 लाख की आमदनी होती है. गिरी से गिरी हालत में 7-8 लाख रुपये तो मिल ही जाते हैं. 1 एकड़ में पपीते की खेती की लागत 80 हजार से 1 लाख आती है.
सुधीर वर्मा, पपीता किसान