लखनऊ: त्वचा, विशेष तौर पर हाथों को बार-बार हैंडवॉश करने से विभिन्न तरह के हानिकारक सूक्ष्मजीवी जैसे- वायरस और बैक्टीरिया का सफाया हो जाता है. व्यक्तिगत स्वच्छता रखने तथा वायरस और बैक्टीरिया के प्रभाव-प्रसार को रोकने के लिए नियमित रूप से हाथों को धोने की सलाह दी जाती है. इन दिनों देशभर में तेजी से फैल रहे कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए कई बेहतर उपायों में से एक है, हाथों को दिन में बार-बार धोना. मगर बाजार में जो हैंडवॉश या तरल साबुन उपलब्ध हैं, उसमें कई हानिकारक तत्व जैसे- एन-प्रोपेनोल, बेंजालकोनियम-सी, ट्राइक्लोसन, या क्लोरहेक्सिडिन आदि शामिल होते हैं. इन रासायनिक तत्वों की प्रकृति एंटीबायोटिक्स के समान होती है. जो घरों में और व्यापक सामुदायिक स्तर पर बैक्टीरिया प्रतिरोधी समस्या को बढ़ाने का कारक बन सकते हैं.
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. गौरव कैथवास ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है. उन्होंने एक जैविक रोगाणुनाशक (ऑर्गेनिक डिसइंफेक्टेंट) का आविष्कार किया है. जो बताए गए हानिकारक रसायनों से मुक्त है. इस आविष्कार का उद्देश्य एक फिक्स्ड तेल और ओमेगा-3 फैटी एसिड का प्रयोग करके ऐसे रोगाणुनाशक का निर्माण करना था, जिसमें किसी तरह का हानिकारक रसायन उपस्थित ना हो. वर्तमान आविष्कार में इस्तेमाल किया जाने वाला जीवाणुरोधी पदार्थ एक एल उसीटैटीसिमम फिक्स्ड तेल (जैविक तेल) है. इसमें लगभग 56 प्रतिशत अल्फा लिनोलेनिक एसिड नामक ओमेगा-3 फैटी एसिड मौजूद है.
खोज का उद्देश्य यह भी था कि इस तरह के रोगाणुनाशक (हैंडवॉश) के निर्माण की प्रक्रिया को बाजार में उपलब्ध कराया जा सके. इसके लिए डॉ. कैथवास द्वारा उनके इस आविष्कार का पेटेंट भी कराया गया है. पेटेंट के बाद अब आमजन के उपयोग के लिए इसका उत्पादन किया जा सकता है. इस आविष्कारी रोगाणुनाशक का उपयोग घरों, प्रयोगशालाओं और अस्पतालों को स्वच्छ रखने में किया जा सकता है. एक हर्बल हैंडवाश होने के नाते यह एक स्वस्थ, वातावरण अनूकूल, प्रकृति अनुकूल उत्पाद है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हर्बल हैंडवॉश का व्यावसायीकरण देश में आर्थिक प्रगति के साथ ही बाजार में एक बदलाव भी लाएगा.