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लखनऊ: बंदी छोड़ दिवस और मघ्घर माह संक्रान्ति पर्व पर सजे दीवान - बन्दी छोड़ दिवस

राजधानी लखनऊ में ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिन्डोला में बंदी छोड़ दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया. इस मौके पर शबद कीर्तन का भी आयोजन किया गया.

bandi chhor divas celebrated in lucknow
लखनऊ में मनाया गया बंदी छोड़ दिवस.
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Published : Nov 15, 2020, 5:22 PM IST

Updated : Nov 15, 2020, 6:07 PM IST

लखनऊ: ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिन्डोला स्थित श्री गुरु सिंह सभा में बन्दी छोड़ दिवस एवं मघ्घर माह संक्रान्ति पर्व बड़ी श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया. इस अवसर पर गुरुद्वारा को फूलों, गुब्बारों और झालरों से सुसज्जित किया गया. पालकी साहिब को भी फूलों से सजाया गया. इस मौके पर हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह जी ने दरबार साहिब में अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन किया. रागी भाई ने गायन और नाम सिमरन से समूह संगत को निहाल किया.

बन्दी छोड़ दिवस की महत्ता बताई
ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने बन्दी छोड़ दिवस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब श्री गुरु हरगोविंद साहब लोगों में नई जागृति लाने के लिए जगह-जगह धर्म प्रचार कर रहे थे तो कई दूसरे धर्मों के लोग भी सिख बनने लगे.

बादशाह ने गुरु जी को बन्दी बनाने का दिया हुक्म
गुरु जी ने अपने पिता की तरह दुखियों की सेवा करनी शुरू कर दी. सिखों की बढ़ती ताकत को देखकर जहांगीर ने हुक्म दिया कि गुरु जी को बन्दी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया जाए, जहां 52 हिन्दू राजा भी कैद थे. गुरु जी ने उन राजाओं की हिम्मत बांधी. गुरु जी से राजा बहुत प्रभावित हुए. भिन्न-भिन्न स्थानों पर जत्थे बनाकर सिख ग्वालियर पहुंचने लगे, मिलने की अनुमति न होने के कारण लोग किले की दीवारों को माथा टेक कर वापस चले जाते.

बन्दी बनाने के विरोध में मुसलमानों ने उठाई आवाज
गुरु जी को बन्दी बनाने के विरुद्ध सिखों, गुरु घर के प्रेमियों और कई नेक दिल मुसलमानों ने भी आवाज उठाई. इसके परिणाम स्वरूप गुरु जी को रिहा करने का जहांगीर को हुक्म देना पड़ा. मगर गुरु जी ने रिहा होने से इनकार कर दिया. गुरु जी ने कहा कि हम अकेले किले से बाहर नही जाएंगे. अगर हमें रिहा करना है तो इन 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा करना होगा.

जहांगीर को माननी पड़ी शर्त
जहांगीर को गुरु जी की शर्त माननी पड़ी. इस तरह गुरु जी ने 52 कलियों का एक चोला (पोशाक) बनवाया और उन 52 हिन्दू राजाओं को चोले (पोशाक) की एक-एक कली पकड़ा दी और किले से बाहर निकले और उनका राजपाट वापस दिलवाया. तभी से गुरु जी को ‘बन्दी छोड़ दाता‘ भी कहा जाता है. मघ्घर (मार्गर्शीष) माह संक्रान्ति पर्व पर प्रातः रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन किया. कीर्तन से साध संगतों को निहाल किया.

मघ्घर माह संक्रान्ति पर्व पर प्रकाश डाला
ज्ञानी हरविन्दर सिंह जी ने कथा व्याख्यान करते हुए कहा कि इस महीने में जो व्यक्ति परमात्मा की प्राप्ति के लिए सत्संग करता है. उसे संसार और परलोक दोनों में सम्मान प्राप्त होता है. संसार में धन, दौलत, पदाथों के द्वारा प्राप्त सम्मान केवल एक सीमित अवधि के लिए होता है और इन सभी वस्तुओं से कभी-कभी अपमान भी हो जाता है, लेकिन जो व्यक्ति परमात्मा की आराधना करता है. उसकी शेाभा संसार में इतनी फैल जाती है कि उसका आंकलन करना भी मुमकिन नहीं. क्योंकि परमात्मा के भक्त भी भगवान की तरह बहुमूल्य हो जाते हैं. इसलिए इस महीने में हमें ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन व सत्संग करना चाहिए. ताकि भगवान हम पर अपनी असीम कृपा बनाए रखे.

लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिह बग्गा जी ने समूह संगत को बन्दी छोड़ दिवस और मघ्घर (मार्गर्शीष) माह संक्रान्ति पर्व की बधाई दी. समूह संगत में गुरु का प्रसाद वितरित किया गया.

लखनऊ: ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिन्डोला स्थित श्री गुरु सिंह सभा में बन्दी छोड़ दिवस एवं मघ्घर माह संक्रान्ति पर्व बड़ी श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया. इस अवसर पर गुरुद्वारा को फूलों, गुब्बारों और झालरों से सुसज्जित किया गया. पालकी साहिब को भी फूलों से सजाया गया. इस मौके पर हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह जी ने दरबार साहिब में अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन किया. रागी भाई ने गायन और नाम सिमरन से समूह संगत को निहाल किया.

बन्दी छोड़ दिवस की महत्ता बताई
ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने बन्दी छोड़ दिवस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब श्री गुरु हरगोविंद साहब लोगों में नई जागृति लाने के लिए जगह-जगह धर्म प्रचार कर रहे थे तो कई दूसरे धर्मों के लोग भी सिख बनने लगे.

बादशाह ने गुरु जी को बन्दी बनाने का दिया हुक्म
गुरु जी ने अपने पिता की तरह दुखियों की सेवा करनी शुरू कर दी. सिखों की बढ़ती ताकत को देखकर जहांगीर ने हुक्म दिया कि गुरु जी को बन्दी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया जाए, जहां 52 हिन्दू राजा भी कैद थे. गुरु जी ने उन राजाओं की हिम्मत बांधी. गुरु जी से राजा बहुत प्रभावित हुए. भिन्न-भिन्न स्थानों पर जत्थे बनाकर सिख ग्वालियर पहुंचने लगे, मिलने की अनुमति न होने के कारण लोग किले की दीवारों को माथा टेक कर वापस चले जाते.

बन्दी बनाने के विरोध में मुसलमानों ने उठाई आवाज
गुरु जी को बन्दी बनाने के विरुद्ध सिखों, गुरु घर के प्रेमियों और कई नेक दिल मुसलमानों ने भी आवाज उठाई. इसके परिणाम स्वरूप गुरु जी को रिहा करने का जहांगीर को हुक्म देना पड़ा. मगर गुरु जी ने रिहा होने से इनकार कर दिया. गुरु जी ने कहा कि हम अकेले किले से बाहर नही जाएंगे. अगर हमें रिहा करना है तो इन 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा करना होगा.

जहांगीर को माननी पड़ी शर्त
जहांगीर को गुरु जी की शर्त माननी पड़ी. इस तरह गुरु जी ने 52 कलियों का एक चोला (पोशाक) बनवाया और उन 52 हिन्दू राजाओं को चोले (पोशाक) की एक-एक कली पकड़ा दी और किले से बाहर निकले और उनका राजपाट वापस दिलवाया. तभी से गुरु जी को ‘बन्दी छोड़ दाता‘ भी कहा जाता है. मघ्घर (मार्गर्शीष) माह संक्रान्ति पर्व पर प्रातः रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन किया. कीर्तन से साध संगतों को निहाल किया.

मघ्घर माह संक्रान्ति पर्व पर प्रकाश डाला
ज्ञानी हरविन्दर सिंह जी ने कथा व्याख्यान करते हुए कहा कि इस महीने में जो व्यक्ति परमात्मा की प्राप्ति के लिए सत्संग करता है. उसे संसार और परलोक दोनों में सम्मान प्राप्त होता है. संसार में धन, दौलत, पदाथों के द्वारा प्राप्त सम्मान केवल एक सीमित अवधि के लिए होता है और इन सभी वस्तुओं से कभी-कभी अपमान भी हो जाता है, लेकिन जो व्यक्ति परमात्मा की आराधना करता है. उसकी शेाभा संसार में इतनी फैल जाती है कि उसका आंकलन करना भी मुमकिन नहीं. क्योंकि परमात्मा के भक्त भी भगवान की तरह बहुमूल्य हो जाते हैं. इसलिए इस महीने में हमें ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन व सत्संग करना चाहिए. ताकि भगवान हम पर अपनी असीम कृपा बनाए रखे.

लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिह बग्गा जी ने समूह संगत को बन्दी छोड़ दिवस और मघ्घर (मार्गर्शीष) माह संक्रान्ति पर्व की बधाई दी. समूह संगत में गुरु का प्रसाद वितरित किया गया.

Last Updated : Nov 15, 2020, 6:07 PM IST
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