लखनऊ: कहते हैं कि प्रतिभा के आगे उम्र कोई मायने नहीं रखती है. उम्र भले ही कम है, लेकिन बैडमिंटन कोर्ट में जब वह शॉट लगाती हैं तो विपक्षी खिलाड़ी को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देती हैं. पवेलियन में बैठे दर्शक भी इस होनहार खिलाड़ी के खेल के मुरीद हो जाते हैं. शहर की शटलर काव्या कुशवाहा एक ऐसा नाम है, जो बैडमिंटन की दुनिया में चमकता हुआ सितारा बनकर उभर रही हैं.
बता दें कि छह साल की उम्र में ही हाथ में रैकेट थाम लेने वाली काव्या अभी महज 14 साल की हैं. अब तक कई चैंपियनशिप अपने नाम कर चुकी हैं. इतना ही नहीं बैडमिंटन कोर्ट के दिग्गज पुलेला गोपीचंद, साइना नेहवाल, पीवी सिंधू और श्रीकांत भी काव्या की प्रतिभा के कायल हैं. काव्या से ये खिलाड़ी भी उम्मीद लगाए हैं कि भविष्य में बैडमिंटन की दुनिया में उनकी तरह ही काव्या भी बड़ा नाम कमाएंगी. 'ईटीवी भारत' ने इस होनहार खिलाड़ी से उसके अब तक के सफर के बारे में खास बातचीत की.
शौक से जुनून बन गया बैडमिंटन
'ईटीवी भारत' से बात करते हुए काव्या बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें खेलने का शौक था, लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि बैडमिंटन ही खेलना है. पहले तो सिर्फ फिटनेस के लिए ही मैदान पर जाया करती थी, लेकिन जब वहां लोगों को खेलते हुए देखा तो मेरे पापा ने कहा कि काव्या तुम्हें बैडमिंटन खेलना चाहिए. खेल का शौक तो पहले से ही था तो रैकेट हाथ में थाम लिया. अब बैडमिंटन जुनून बन गया है. कोर्ट पर शटल को विपक्षी खिलाड़ी की तरफ ही गिराना उद्देश्य रहता है. नन्हीं शटलर काव्या का कहना है कि पापा की वजह से बैडमिंटन खेलना शुरू किया और अब बेहतर से बेहतर करने का प्रयास जारी है.
माता-पिता करते हैं पूरा सपोर्ट
काव्या कहती हैं कि खेल के साथ पढ़ाई भी करना जरूरी है. पापा खेल के लिए ज्यादा प्रेरित करते हैं. हालांकि मम्मी भी पूरा सपोर्ट करती हैं, लेकिन खेल में ज्यादा योगदान पापा का है. पढ़ाई के लिए क्योंकि माता-पिता दोनों ही शिक्षक हैं, ऐसे में इस पर भी पूरा ध्यान दोनों का ही रहता है. इस बार उनका हाईस्कूल है तो पढ़ाई में भी ज्यादा मेहनत करनी है. बाहर प्रतियोगिताएं होने की वजह से दिक्कतें तो जरूर आती हैं, लेकिन पढ़ाई भी जारी है. बता दें कि काव्या की मां सुलोचना मौर्या और पिता पीयूष कुशवाहा पेशे से शिक्षक हैं.
पहली बार में ही मार लिया मैदान
'ईटीवी भारत' से बातचीत में काव्या बताती हैं कि साल 2013 में आगरा में स्टेट लेबल की एक बड़ी प्रतियोगिता आयोजित हुई थी, जिसमें पहली बार बेहतर खेल का प्रदर्शन किया था. यहां पर इस पहली प्रतियोगिता में ही सिल्वर मेडल हासिल कर लिया था. ये उनके लिए गर्व की बात थी. इससे माता-पिता की उम्मीद जागी. साथ ही उनका भी हौसला बढ़ा कि और भी बेहतर किया जा सकता है. तब उनकी उम्र महज छह साल ही थी.
अन्य खिलाड़ियों से अलग हैं काव्या
मैदान पर काव्या की एक बड़ी खासियत ये भी है कि अपने से ज्यादा आयु वर्ग के खिलाड़ी भी चाहते हैं कि मिक्स डबल्स में काव्या उनका साथ दें, जिससे वह विपक्षी खिलाड़ियों पर भारी पड़ सकें. ऐसा कई बार हो भी चुका है. काव्या बताती हैं कि कर्नाटक के उडुपी में एक नेशनल टूर्नामेंट चल रहा था, जिसमें मिक्स डबल्स खेला था और यह उनके लिए काफी यादगार बन गया. शायद यही वजह है कि काव्या के करिश्माई खेल के सभी मुरीद हो जाते हैं.
इंडोनेशियाई और इंडियन कोच सिखा रहे खेल की बारीकियां
यूं ही काव्य सफलता की सीढ़ियां तेजी से नहीं चढ़ती जा रही हैं. इसके पीछे उनके कोच का भी हाथ है. बीबीडी बैडमिंटन एकेडमी में बैडमिंटनन की रोजाना ट्रेनिंग चलती है. यहां पर इंडोनेशियाई और इंडियन कोच खेल की बारीकियों को सिखाते हैं, जो भी खामियां हैं उन्हें दूर कराते हैं.
प्रीमियर बैडमिंटन लीग में शामिल होना गर्व की बात
साल 2016 में प्रीमीयर बैडमिंटन लीग हुई थी, जिसमें दिग्गज खिलाड़ी साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, श्रीकांत और पुलेला गोपीचंद मौजूद थे. इस प्रीमियर बैडमिंटन लीग में काव्या भी गेस्ट प्लेयर के रूप में शामिल हुईं थी और यही उनके लिए सबसे गर्व की बात है. काव्य बताती हैं कि पहले तो टीवी पर ही अपने आदर्श खिलाड़ियों को खेलते हुए देखा करती थी, लेकिन जब प्रीमियर बैडमिंटन लीग में अपने रोल मॉडल के साथ रहने का मौका मिला तो यह उनके लिए अब तक का सबसे यादगार क्षण बन गया. वहां पर बहुत कुछ सीखने को मिला. जो भी अपने अंदर कमियां थीं, वह उनके खेल को देखकर दूर की हैं.
साइना नेहवाल की तरह बनना ही ख्वाब
छोटी सी उम्र में जब रैकेट थामा था तभी से साइना नेहवाल को अपना आदर्श मानने वाली काव्या का कहना है कि जिंदगी में बड़ा टारगेट सेट किया है. बैडमिंटन की दुनिया में महान खिलाड़ी साइना नेहवाल की तरह ही सफल होना ख्वाब है. वह चाहती हैं कि साइना नेहवाल की तरह बनें. उनसे भी बेहतर कर सकें. यह उनके लिए और उनके माता-पिता के लिए गर्व की बात होगी. पैरेंट्स को प्राउड फील कराना है और बैडमिंटन की दुनिया में देश का नाम भी विश्व में आगे ले जाना है.
देश की बेटियों को काव्या का संदेश
अपनी ही तरह देश की बेटियां भी आगे बढ़ें इसके लिए काव्या कहती हैं कि स्पोर्ट्स बहुत जरूरी है और बेटियों को जरूर खेलना चाहिए. खेल से वे अपने माता-पिता का नाम तो रोशन करती ही हैं. साथ ही अपने देश को रिप्रेजेंट कर देश का नाम भी रोशन करती हैं. इसलिए बेटियों को जरूर आगे आना चाहिए.