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लॉकडाउन में जब जलता है चूल्हा... तब बुझती है बेसहारों के पेट की आग

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़क किनारे मजदूर भूखे सोने को मजबूर हैं. प्रशासन के लाख दावों के बावजूद फुटपाथ पर जिंदगी गुजारने वाले मजदूरों को सिर्फ एक टाइम ही लंच पैकेट मिल पा रहा है.

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कोरोना वायरस के चलते खाने को मोहताज मजदूर.
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Published : Apr 24, 2020, 8:16 PM IST

Updated : Apr 25, 2020, 11:38 AM IST

लखनऊ: राजधानी में लॉकडाउन के चलते सड़क किनारे रह रहे मजदूर अपने घरों को वापस नहीं जा सके हैं. सरकार और प्रशासन भले लाख दावे कर रहा हो कि शहर में कोई भी सड़क पर भूखा नहीं सो रहा है, लेकिन कई मजदूरों को सिर्फ एक टाइम ही लंच पैकेट मिल रहा है.

कोरोना वायरस के चलते खाने को मोहताज मजदूर.

ईटीवी भारत ने की पड़ताल
ईटीवी भारत ने जब इसकी पड़ताल की तो कुछ अलग ही हकीकत देखने को मिली. फुटपाथ पर जिंदगी गुजारने वाले मजदूरों को लंच पैकेट तो मिलता है, लेकिन 24 घंटे में सिर्फ एक बार और वह भी जरा सा और राशन का कोई पता-ठिकाना नहीं है. चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने सड़क पर सजी रसोई, जलता हुआ चूल्हा और उस पर पकता हुआ खाना इस बात की गवाही है कि सारे दावे खोखले हैं. सच यही है कि जब मजदूरों के चूल्हे में आग जलती है तभी उनको पेट भर रोटी मिलती है.

चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने रहते हैं मजदूर
चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने बहराइच के रहने वाले संतोष गुप्ता, मोहनलालगंज के रहने वाले आकाश और गुजरात से लखनऊ आकर पिछले 50 साल से काम करने वाले ओंकारनाथ लॉकडाउन में अपने घर लौट नहीं पाए. संतोष और आकाश शहर में टैक्सी चलाते हैं लेकिन इस समय टैक्सी बंद है ऐसे में उनके पास रोजगार का अन्य कोई जरिया नहीं है. पैसे खत्म हो चुके हैं इसलिए ये बेसहारा इस संकटकाल में घर भी नहीं जा सकते हैं.

फुटपाथ पर बनाते हैं खाना
मजदूरों ने बताया कि जब लॉकडाउन की तैयारी हो रही थी तब चारबाग में खाने की दुकान लगाने वाले कुछ लोगों ने उन्हें बर्तन दे दिए थे. आज यही बर्तन फुटपाथ पर रसोई के रूप में सजे हुए हैं. इधर-उधर से लकड़ी की व्यवस्था कर तीनो लोग आपस में मिलकर चूल्हा जलाते हैं और खाना पकाते हैं.

दिन में एक बार मिलता है लंच पैकेट
'ईटीवी भारत' ने फुटपाथ पर रसोई में खाना पका रहे इन लोगों से बात की तो सभी का कहना है, कि दोपहर बाद कहीं एक बार प्रशासन की तरफ से पैकेट में जरा सा खाना मिलता है और वह पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं होता. तड़के उठकर दोपहर बाद मिलने वाले खाने के इंतजार में नहीं बैठ पाते, इसलिए अपना चूल्हा जलाते हैं.

लखनऊ: राजधानी में लॉकडाउन के चलते सड़क किनारे रह रहे मजदूर अपने घरों को वापस नहीं जा सके हैं. सरकार और प्रशासन भले लाख दावे कर रहा हो कि शहर में कोई भी सड़क पर भूखा नहीं सो रहा है, लेकिन कई मजदूरों को सिर्फ एक टाइम ही लंच पैकेट मिल रहा है.

कोरोना वायरस के चलते खाने को मोहताज मजदूर.

ईटीवी भारत ने की पड़ताल
ईटीवी भारत ने जब इसकी पड़ताल की तो कुछ अलग ही हकीकत देखने को मिली. फुटपाथ पर जिंदगी गुजारने वाले मजदूरों को लंच पैकेट तो मिलता है, लेकिन 24 घंटे में सिर्फ एक बार और वह भी जरा सा और राशन का कोई पता-ठिकाना नहीं है. चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने सड़क पर सजी रसोई, जलता हुआ चूल्हा और उस पर पकता हुआ खाना इस बात की गवाही है कि सारे दावे खोखले हैं. सच यही है कि जब मजदूरों के चूल्हे में आग जलती है तभी उनको पेट भर रोटी मिलती है.

चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने रहते हैं मजदूर
चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने बहराइच के रहने वाले संतोष गुप्ता, मोहनलालगंज के रहने वाले आकाश और गुजरात से लखनऊ आकर पिछले 50 साल से काम करने वाले ओंकारनाथ लॉकडाउन में अपने घर लौट नहीं पाए. संतोष और आकाश शहर में टैक्सी चलाते हैं लेकिन इस समय टैक्सी बंद है ऐसे में उनके पास रोजगार का अन्य कोई जरिया नहीं है. पैसे खत्म हो चुके हैं इसलिए ये बेसहारा इस संकटकाल में घर भी नहीं जा सकते हैं.

फुटपाथ पर बनाते हैं खाना
मजदूरों ने बताया कि जब लॉकडाउन की तैयारी हो रही थी तब चारबाग में खाने की दुकान लगाने वाले कुछ लोगों ने उन्हें बर्तन दे दिए थे. आज यही बर्तन फुटपाथ पर रसोई के रूप में सजे हुए हैं. इधर-उधर से लकड़ी की व्यवस्था कर तीनो लोग आपस में मिलकर चूल्हा जलाते हैं और खाना पकाते हैं.

दिन में एक बार मिलता है लंच पैकेट
'ईटीवी भारत' ने फुटपाथ पर रसोई में खाना पका रहे इन लोगों से बात की तो सभी का कहना है, कि दोपहर बाद कहीं एक बार प्रशासन की तरफ से पैकेट में जरा सा खाना मिलता है और वह पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं होता. तड़के उठकर दोपहर बाद मिलने वाले खाने के इंतजार में नहीं बैठ पाते, इसलिए अपना चूल्हा जलाते हैं.

Last Updated : Apr 25, 2020, 11:38 AM IST
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