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बाबरी विध्वंस मामले में फैसला कल, 354 गवाहों के बयान पर टिका है कोर्ट का निर्णय

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी ढांचा विध्वंस मामले में कल यानी बुधवार को फैसला आएगा. पुरानी हाईकोर्ट बिल्डिंग स्थित सीबीआई की विशेष अदालत के जज सुरेंद्र यादव अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे. इस बाबत बाबरी मस्जिद विध्वंस केस के आरोपी लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य अभियुक्तों के अधिवक्ता केके मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. आगे पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

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अधिवक्ता केके मिश्रा.
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Published : Sep 29, 2020, 2:04 PM IST

Updated : Sep 29, 2020, 2:41 PM IST

लखनऊ: अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी ढांचा विध्वंस मामले में कल यानी बुधवार को फैसला आएगा. पुरानी हाईकोर्ट बिल्डिंग स्थित सीबीआई की विशेष अदालत के जज सुरेंद्र यादव अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे. 28 साल से चल रहे बाबरी मस्जिद विध्वंस केस के आरोपी लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य अभियुक्तों के अधिवक्ता केके मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम और कोर्ट में 28 साल तक चली न्यायिक प्रक्रिया को लेकर कहा, "हमने केस से जुड़े साक्ष्य पेश किए. दलील और जिरह की है. हमें न्यायालय पर पूरा विश्वास है कि हम साक्ष्यों के आधार पर अदालत में बाइज्जत बरी होंगे".उन्होंने बताया कि कोर्ट की प्रक्रिया के अंतर्गत सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 994 गवाह के नाम दिए थे, लेकिन इसमें से कुल 354 गवाह सीबीआई की तरफ से पेश किए जा सके. अब इन्हीं गवाहों के बयान पर कल कोर्ट फैसला सुनाएगा.

संवाददाता से बात करते अधिवक्ता केके मिश्रा.

अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "पूरे देश की न्यायिक प्रक्रिया के संबंध में यही कहूंगा कि सीबीआई ने अपनी चार्जशीट इसमें शामिल की थी. सारे अभियुक्त न्यायालय ने तलब किए. उनका आरोप तय किया था. आरोप तय होने के पश्चात सभी के खिलाफ एविडेंस प्रॉसीक्यूशन सीबीआई लाता रहा. मुख्य विवेचक सहित इसके साथ ही रायबरेली के घटनाक्रम को मिलाकर कुल मिलाकर 354 गवाहों को परीक्षित करने का काम कोर्ट में किया गया है. उनके परीक्षण के बाद अब यह ऐतिहासिक दिन आ गया है".

354 गवाह सीबीआई की तरफ से हुए पेश

उन्होंने बताया कि सीबीआई की तरफ से पेश किए गए गवाहों में से बहुत सारे गवाह या तो मिले नहीं या फिर उन्होंने कुछ भी जानकारी देने से इंकार कर दिया. कोर्ट की प्रक्रिया के अंतर्गत सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 994 गवाह के नाम दिए थे, लेकिन इसमें से कुल 354 गवाह सीबीआई की तरफ से पेश किए जा सके. इसमें तमाम सारे गवाहों की मौत हो गई या कुछ गवाहों के नाम-पते बदल गए. उन्हें सीबीआई ट्रेस नहीं कर पाई. इसके बावजूद सीबीआई ने जितना प्रयत्न किया, जितने लोगों को पेश किया, न्यायालय में प्रोड्यूस किए गए गवाहों को परीक्षित किया गया. बचाव पक्ष के अधिवक्ता की तरफ से बहस और जिरह भी की गई. अब फैसले का समय आ गया है.

आपराधिक षड्यंत्र के सवाल पर अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "विवेचक ने जिरह के दौरान यह स्वीकार किया है कि मैंने कहीं भी इतनी लंबी विवेचना में मुझे 120बी यानी आपराधिक षड्यंत्र के तहत कोई भी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए. इस तरह से मैं समझता हूं कि 120बी के षड्यंत्र की जहां तक बात है वह विवेचक के जिरह के दौरान इस बात से निकल कर आती है. जब विवेचक को कुछ घटना में आपराधिक षड्यंत्र के साक्ष्य मिले ही नहीं तो आपराधिक षड्यंत्र की बात कहना पूरी तरह से बेइमानी है. क्योंकि अगर कोई ऐसे साक्ष्य होते तो जरूर सीबीआई ढूंढ कर लाती. यह आपराधिक षड्यंत्र का कोई मामला ही नहीं था. घटना तो उस दिन वहां पर अचानक हुई थी. यह तो तमाम साक्ष्यों के बयानों में आया है. कार सेवा हो रही थी. अचानक भीड़ पहुंची और इस प्रकार की घटना घटित हो गई. इसमें से तमाम बात भी सामने आई कि घटना के दौरान कुछ लोग पत्थर फेंक रहे थे. वहीं स्वयंसेवक थे वहीं कारसेवक थे. जो पत्थर मारने वाले लोग थे वे किसी कीमत पर कारसेवक नहीं थे. वे असामाजिक तत्व थे, जिनके द्वारा घटना की गई. मैं यही कहूंगा कि आपराधिक षड्यंत्र के संबंध में कोई विवेचना विवेचक द्वारा नहीं की गई. इसमें अगर सही और निष्पक्ष विवेचना की गई होती तो उन लोगों के नाम प्रकाश में जरूर आते, जिन्होंने घटना कारित की थी".

पत्रकारों ने दर्ज कराई थी एफआईआर

अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "इस केस में आईपीसी की धारा 395 की बात भी कही गई. इसका विषय मात्र इतना है कि केवल पत्रकारों ने ही अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. उसमें कहा गया था कि मेरे कुछ रुपए छीन लिए गए. मेरे कैमरे तोड़ दिए गए. इसका उन्होंने मुआवजा लिया था. पत्रकारों ने कहीं नहीं कहा था कि किन-किन लोगों के खिलाफ घटना कारित की गई है. इसमें किसी भी प्रकार का एविडेंस नहीं आया है, जिससे यह प्रमाणित हो. जितने नामजद थे, उन पर 395 का कोई सेक्शन नहीं बन पाया".

अधिवक्ता केके मिश्रा के दावे के अनुसार, आपराधिक षड्यंत्र नहीं मिला है. अन्य कोई साक्ष्य भी नहीं मिले. केके मिश्रा ने कहा, "जितना हमने अपने जिरह के दौरान पाया है. एक काउंसिल होने के नाते मैं यह जरूर कह सकता हूं कि न्यायालय हमारे दिए गए तथ्यों को ध्यानपूर्वक देखकर मुझे इस मुकदमे में बाइज्जत बरी करेगी. बाकी काम न्यायालय का है. मैं फिर कहूंगा कि न्यायालय दूध का दूध और पानी का पानी करती है. भूसे से सुई निकालने का काम करती है. न्यायालय हमारे द्वारा दिए गए तथ्यों को देखेगी. सीबीआई के तथ्यों को देखेगी. जो तथ्य हमने निकाल कर दिए हैं उन्हें भी देखेगी. उसमें से अपना व्यू प्रकट करेगी. 30 सितंबर को सबके सामने होगा".

फैसले में हुई सजा तो हाईकोर्ट में दाखिल करेंगे अपील
फैसले में अगर कोई सजा का प्रावधान होता है तो आगे की क्या प्रक्रिया होगी?, इस सवाल पर केके मिश्रा ने कहा, "अगर 5 साल के नीचे सजा है तो हम न्यायालय में तुरंत अंतरिम जमानत का निवेदन करेंगे. न्यायलय से याचना करेंगे. मुझे अंतरिम जमानत दी जाए. मुझे अपील करने का समय दिया जाए. हमें विश्वास है कि न्यायालय हमें जरूर पूरा समय उपलब्ध कराएगी. इसके बाद हम उच्च न्यायालय में जाएंगे और अपनी अपील दाखिल करेंगे".



लखनऊ: अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी ढांचा विध्वंस मामले में कल यानी बुधवार को फैसला आएगा. पुरानी हाईकोर्ट बिल्डिंग स्थित सीबीआई की विशेष अदालत के जज सुरेंद्र यादव अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे. 28 साल से चल रहे बाबरी मस्जिद विध्वंस केस के आरोपी लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य अभियुक्तों के अधिवक्ता केके मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम और कोर्ट में 28 साल तक चली न्यायिक प्रक्रिया को लेकर कहा, "हमने केस से जुड़े साक्ष्य पेश किए. दलील और जिरह की है. हमें न्यायालय पर पूरा विश्वास है कि हम साक्ष्यों के आधार पर अदालत में बाइज्जत बरी होंगे".उन्होंने बताया कि कोर्ट की प्रक्रिया के अंतर्गत सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 994 गवाह के नाम दिए थे, लेकिन इसमें से कुल 354 गवाह सीबीआई की तरफ से पेश किए जा सके. अब इन्हीं गवाहों के बयान पर कल कोर्ट फैसला सुनाएगा.

संवाददाता से बात करते अधिवक्ता केके मिश्रा.

अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "पूरे देश की न्यायिक प्रक्रिया के संबंध में यही कहूंगा कि सीबीआई ने अपनी चार्जशीट इसमें शामिल की थी. सारे अभियुक्त न्यायालय ने तलब किए. उनका आरोप तय किया था. आरोप तय होने के पश्चात सभी के खिलाफ एविडेंस प्रॉसीक्यूशन सीबीआई लाता रहा. मुख्य विवेचक सहित इसके साथ ही रायबरेली के घटनाक्रम को मिलाकर कुल मिलाकर 354 गवाहों को परीक्षित करने का काम कोर्ट में किया गया है. उनके परीक्षण के बाद अब यह ऐतिहासिक दिन आ गया है".

354 गवाह सीबीआई की तरफ से हुए पेश

उन्होंने बताया कि सीबीआई की तरफ से पेश किए गए गवाहों में से बहुत सारे गवाह या तो मिले नहीं या फिर उन्होंने कुछ भी जानकारी देने से इंकार कर दिया. कोर्ट की प्रक्रिया के अंतर्गत सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 994 गवाह के नाम दिए थे, लेकिन इसमें से कुल 354 गवाह सीबीआई की तरफ से पेश किए जा सके. इसमें तमाम सारे गवाहों की मौत हो गई या कुछ गवाहों के नाम-पते बदल गए. उन्हें सीबीआई ट्रेस नहीं कर पाई. इसके बावजूद सीबीआई ने जितना प्रयत्न किया, जितने लोगों को पेश किया, न्यायालय में प्रोड्यूस किए गए गवाहों को परीक्षित किया गया. बचाव पक्ष के अधिवक्ता की तरफ से बहस और जिरह भी की गई. अब फैसले का समय आ गया है.

आपराधिक षड्यंत्र के सवाल पर अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "विवेचक ने जिरह के दौरान यह स्वीकार किया है कि मैंने कहीं भी इतनी लंबी विवेचना में मुझे 120बी यानी आपराधिक षड्यंत्र के तहत कोई भी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए. इस तरह से मैं समझता हूं कि 120बी के षड्यंत्र की जहां तक बात है वह विवेचक के जिरह के दौरान इस बात से निकल कर आती है. जब विवेचक को कुछ घटना में आपराधिक षड्यंत्र के साक्ष्य मिले ही नहीं तो आपराधिक षड्यंत्र की बात कहना पूरी तरह से बेइमानी है. क्योंकि अगर कोई ऐसे साक्ष्य होते तो जरूर सीबीआई ढूंढ कर लाती. यह आपराधिक षड्यंत्र का कोई मामला ही नहीं था. घटना तो उस दिन वहां पर अचानक हुई थी. यह तो तमाम साक्ष्यों के बयानों में आया है. कार सेवा हो रही थी. अचानक भीड़ पहुंची और इस प्रकार की घटना घटित हो गई. इसमें से तमाम बात भी सामने आई कि घटना के दौरान कुछ लोग पत्थर फेंक रहे थे. वहीं स्वयंसेवक थे वहीं कारसेवक थे. जो पत्थर मारने वाले लोग थे वे किसी कीमत पर कारसेवक नहीं थे. वे असामाजिक तत्व थे, जिनके द्वारा घटना की गई. मैं यही कहूंगा कि आपराधिक षड्यंत्र के संबंध में कोई विवेचना विवेचक द्वारा नहीं की गई. इसमें अगर सही और निष्पक्ष विवेचना की गई होती तो उन लोगों के नाम प्रकाश में जरूर आते, जिन्होंने घटना कारित की थी".

पत्रकारों ने दर्ज कराई थी एफआईआर

अधिवक्ता केके मिश्रा ने कहा, "इस केस में आईपीसी की धारा 395 की बात भी कही गई. इसका विषय मात्र इतना है कि केवल पत्रकारों ने ही अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. उसमें कहा गया था कि मेरे कुछ रुपए छीन लिए गए. मेरे कैमरे तोड़ दिए गए. इसका उन्होंने मुआवजा लिया था. पत्रकारों ने कहीं नहीं कहा था कि किन-किन लोगों के खिलाफ घटना कारित की गई है. इसमें किसी भी प्रकार का एविडेंस नहीं आया है, जिससे यह प्रमाणित हो. जितने नामजद थे, उन पर 395 का कोई सेक्शन नहीं बन पाया".

अधिवक्ता केके मिश्रा के दावे के अनुसार, आपराधिक षड्यंत्र नहीं मिला है. अन्य कोई साक्ष्य भी नहीं मिले. केके मिश्रा ने कहा, "जितना हमने अपने जिरह के दौरान पाया है. एक काउंसिल होने के नाते मैं यह जरूर कह सकता हूं कि न्यायालय हमारे दिए गए तथ्यों को ध्यानपूर्वक देखकर मुझे इस मुकदमे में बाइज्जत बरी करेगी. बाकी काम न्यायालय का है. मैं फिर कहूंगा कि न्यायालय दूध का दूध और पानी का पानी करती है. भूसे से सुई निकालने का काम करती है. न्यायालय हमारे द्वारा दिए गए तथ्यों को देखेगी. सीबीआई के तथ्यों को देखेगी. जो तथ्य हमने निकाल कर दिए हैं उन्हें भी देखेगी. उसमें से अपना व्यू प्रकट करेगी. 30 सितंबर को सबके सामने होगा".

फैसले में हुई सजा तो हाईकोर्ट में दाखिल करेंगे अपील
फैसले में अगर कोई सजा का प्रावधान होता है तो आगे की क्या प्रक्रिया होगी?, इस सवाल पर केके मिश्रा ने कहा, "अगर 5 साल के नीचे सजा है तो हम न्यायालय में तुरंत अंतरिम जमानत का निवेदन करेंगे. न्यायलय से याचना करेंगे. मुझे अंतरिम जमानत दी जाए. मुझे अपील करने का समय दिया जाए. हमें विश्वास है कि न्यायालय हमें जरूर पूरा समय उपलब्ध कराएगी. इसके बाद हम उच्च न्यायालय में जाएंगे और अपनी अपील दाखिल करेंगे".



Last Updated : Sep 29, 2020, 2:41 PM IST
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