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विधानसभा में हंगामे के बाद स्थगित हुई कार्यवाही, जातिगत जनगणना की उठी मांग - हंगामे के बाद यूपी विधानसभा की कार्रवाई स्थगित

उत्तर प्रदेश विधानसभा की कार्यवाही 35 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई है. दरअसल नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी ने जातिगत जनगणना की मांग की, जिसके बाद विधानसभा में हंगामा होने लगा.

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विधानसभा की कार्रवाई हुई स्थगित.
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Published : Feb 26, 2020, 12:28 PM IST

लखनऊ: विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते ही नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया. उन्होंने जनगणना फार्म से पिछड़ों का कालम हटाए जाने का विरोध किया है और जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की. इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि यह मुद्दा विधानसभा का नहीं है, इसलिए इस पर चर्चा कराने का कोई औचित्य नहीं बनता. बावजूद इसके विपक्ष के सदस्य लगातार हंगामा करते रहे. इसके बाद समाजवादी पार्टी के सदस्य वेल में पहुंचकर नारेबाजी शुरू कर दी. हंगामे के चलते विधानसभा अध्यक्ष ने 35 मिनट के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी.

भाजपा ने कही थी जातिवार जनगणना कराने की बात
नेता विरोधी दल रामगोविंद चौधरी ने कहा कि कहा कि भाजपा चुनाव से पूर्व लगातार समय-समय पर जातिवार जनगणना को कराने की बात कहती रही है, लेकिन अब जब वर्ष 2021 में जनगणना होने जा रही है तो भाजपा जातिवार जनगणना से किनारा कर रही है. इससे उनकी दोहरी मानसिकता का पता चलता है.

प्रधानमंत्री ने किया था वादा
खुद प्रधानमंत्री ने पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के समय जातिवार जनगणना की बात कही गई थी. पूर्व में 1865 से 1872 के बीच देश के सभी राज्यों में सुव्यवस्थित जातिवार जनगणना कराई गई. इसके बाद 1881 से 1941 तक लगातार जातिवार जनगणना हुई थी.

गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने जताई थी सहमति
वर्ष 1951 की जनगणना के लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जातिवार जनगणना की सहमति दी थी. किंतु 1950 में सरदार पटेल के निधन के बाद कांग्रेस सरकार ने जनगणना फॉर्म से जाति का कालम हटा दिया. 1961 और 1971 में भी जातिवार जनगणना नहीं हुई. 1981 में जातिवार जनगणना का कालम जोड़ा गया, लेकिन फिर उसे हटा दिया गया.

सपा नेताओं ने की जनगणना की मांग
जनता तथा समाजवादियों की मांग पर 2011 की जनगणना जातिवार कराई गई, लेकिन कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए. समाजवादी पार्टी के नेताओं ने संसद में तथा विधान मंडलों में जातिवार जनगणना की बात उठाई है.

यह भी पढ़ें-बसपा से विधायक रहे सुनील सिंह यादव ने पार्टी से दिया इस्तीफा

लोकसभा व राज्यसभा तथा राज्यों के विधान मंडलों में भाजपा सरकार के मंत्रियों द्वारा जनता से जातिवार जनगणना का वादा किया जाता रहा है. समय-समय पर पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों को संविधान प्रदत्त आरक्षण में जातिवार आरक्षण देने की बात भाजपा सरकार द्वारा की जाती रही है, लेकिन अब भाजपा सरकार द्वारा जातिवार जनगणना न कराकर गरीबों शोषित और पीड़ित पिछड़ा वर्ग को अंधेरे में रखने की जानबूझकर साजिश की जा रही है. इससे समाज के बहुसंख्यक वर्ग में असंतोष एवं आक्रोश व्याप्त है. यह संतोष दिन प्रतिदिन उग्र रूप लेता जा रहा है, जो कभी भी भीषण रूप ले सकता है.

लखनऊ: विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते ही नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया. उन्होंने जनगणना फार्म से पिछड़ों का कालम हटाए जाने का विरोध किया है और जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की. इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि यह मुद्दा विधानसभा का नहीं है, इसलिए इस पर चर्चा कराने का कोई औचित्य नहीं बनता. बावजूद इसके विपक्ष के सदस्य लगातार हंगामा करते रहे. इसके बाद समाजवादी पार्टी के सदस्य वेल में पहुंचकर नारेबाजी शुरू कर दी. हंगामे के चलते विधानसभा अध्यक्ष ने 35 मिनट के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी.

भाजपा ने कही थी जातिवार जनगणना कराने की बात
नेता विरोधी दल रामगोविंद चौधरी ने कहा कि कहा कि भाजपा चुनाव से पूर्व लगातार समय-समय पर जातिवार जनगणना को कराने की बात कहती रही है, लेकिन अब जब वर्ष 2021 में जनगणना होने जा रही है तो भाजपा जातिवार जनगणना से किनारा कर रही है. इससे उनकी दोहरी मानसिकता का पता चलता है.

प्रधानमंत्री ने किया था वादा
खुद प्रधानमंत्री ने पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के समय जातिवार जनगणना की बात कही गई थी. पूर्व में 1865 से 1872 के बीच देश के सभी राज्यों में सुव्यवस्थित जातिवार जनगणना कराई गई. इसके बाद 1881 से 1941 तक लगातार जातिवार जनगणना हुई थी.

गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने जताई थी सहमति
वर्ष 1951 की जनगणना के लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जातिवार जनगणना की सहमति दी थी. किंतु 1950 में सरदार पटेल के निधन के बाद कांग्रेस सरकार ने जनगणना फॉर्म से जाति का कालम हटा दिया. 1961 और 1971 में भी जातिवार जनगणना नहीं हुई. 1981 में जातिवार जनगणना का कालम जोड़ा गया, लेकिन फिर उसे हटा दिया गया.

सपा नेताओं ने की जनगणना की मांग
जनता तथा समाजवादियों की मांग पर 2011 की जनगणना जातिवार कराई गई, लेकिन कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए. समाजवादी पार्टी के नेताओं ने संसद में तथा विधान मंडलों में जातिवार जनगणना की बात उठाई है.

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लोकसभा व राज्यसभा तथा राज्यों के विधान मंडलों में भाजपा सरकार के मंत्रियों द्वारा जनता से जातिवार जनगणना का वादा किया जाता रहा है. समय-समय पर पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों को संविधान प्रदत्त आरक्षण में जातिवार आरक्षण देने की बात भाजपा सरकार द्वारा की जाती रही है, लेकिन अब भाजपा सरकार द्वारा जातिवार जनगणना न कराकर गरीबों शोषित और पीड़ित पिछड़ा वर्ग को अंधेरे में रखने की जानबूझकर साजिश की जा रही है. इससे समाज के बहुसंख्यक वर्ग में असंतोष एवं आक्रोश व्याप्त है. यह संतोष दिन प्रतिदिन उग्र रूप लेता जा रहा है, जो कभी भी भीषण रूप ले सकता है.

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