लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय (lucknow university) के कला संकाय की फैकल्टी बोर्ड ने प्रदेश सरकार की तरफ से प्रस्तावित कॉमन मिनिमम सिलेबस को खारिज कर दिया. सदस्यों ने विश्वविद्यालय के वर्तमान सिलेबस को इस कॉमन मिनिमम सिलेबस से ज्यादा बेहतर बताया है. विश्वविद्यालय के सबसे बड़े संकाय 32 विभागों वाले कला संकाय की फैकल्टी बोर्ड की बैठक शुक्रवार शाम को संपन्न हुई. सरकार द्वारा भेजे गए कॉमन सिलेबस के प्रस्ताव पर विचार विमर्श हुआ. सदस्यों ने गहन मंथन के बाद एक स्वर से सरकार के कॉमन सिलेबस को खारिज कर दिया.
विश्वविद्यालय ने कॉमन सिलेबस को किया खारिज
लखनऊ विश्वविद्यालय के लगभग सभी विभागों की तरफ से इस कॉमन मिनिमम सिलेबस में खामियां बताई गई हैं. विज्ञान संकाय ने पहले ही कॉमन मिनिमम सिलेबस को खारिज कर दिया है. विधि संकाय में बार काउंसिल द्वारा स्वीकृत सिलेबस ही पढ़ाया जा सकता है. कॉमर्स संकाय के दो विभागों ने कॉमर्स सिलेबस को रद्द कर दिया है.
शिक्षक संगठनों ने पहले ही दर्ज कराई आपत्ति
लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ और लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ की तरफ से पहले ही इस सिलेबस पर आपत्ति उठाई जा चुकी है. लूटा अध्यक्ष डॉ. विनीत वर्मा का कहना है कि सरकार कॉमन मिनिमम सिलेबस वापस ले. यह छात्रों और उच्च शिक्षा के हित में नहीं है. कॉमन मिनिमम सिलेबस की अवधारणा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों के विपरीत है.
इन मुद्दों पर उठाई है आपत्ति
विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण विभागों में बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा आधारभूत संरचना, संसाधनों की उपलब्धता, समय की मांग, शिक्षकों की विशेषज्ञता आदि के दृष्टिगत किया जाता है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार इसे संशोधित भी किया जाता है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 9.3 और 11.6 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि इस नीति के तहत संकाय और संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त बिंदु संख्या 13.4 के अनुसार संकाय सदस्यों को स्वीकृत फ्रेमवर्क के भीतर पाठ्य पुस्तकों के चयन और असाइनमेंट और आकलन की प्रक्रियाओं को निर्मित करने के साथ ही साथ अपने स्वयं के पाठ्यक्रम संबंधी और शैक्षणिक प्रक्रियाओं को रचनात्मक रूप से निर्मित करने की स्वतंत्रता दी जाएगी.
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 छात्रों को अधिकाधिक संख्या में पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाने पर जोर देती है, जबकि कॉमन मिनिमम सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों की उपलब्धता को सीमित कर देगा.
- उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है. एक क्षेत्र की आधारभूत संरचना, संसाधन एवं आवश्यकता दूसरे क्षेत्र से बिल्कुल अलग है. अतः कॉमन सिलेबस पूरे राज्य में लागू करना बिल्कुल उचित नहीं होगा.
- पूरे राज्य में कई विश्वविद्यालय और हजारों की संख्या में महाविद्यालय हैं. इन सभी के संसाधन और एकेडमिक क्षमता में भारी असमानता है. कॉमन मिनिमम सिलेबस बनाते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया. ऐसे में पूरे राज्य के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया जाना छात्रों के साथ अन्याय होगा.
- उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के बिंदु 4 के अनुसार क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस समान होना चाहिए. क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस का कॉमन होना कोई जरूरी नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
- नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों /महाविद्यालयों का आधारभूत ढांचा दुरुस्त करने और पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था किया जाना आवश्यक है, जो कि अभी तक नहीं है.
- प्रदेश भर में छात्रों की भारी संख्या के लिए कौशल विकास के कोर्स और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त संस्थानों के व्यवस्था अभी तक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों द्वारा नही की गई है. ऐसे में यदि आधी अधूरी तैयारी के साथ जल्दबाजी में आगामी सत्र से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया तो यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा.