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धरोहरों को समझने के लिए प्रयोगात्मक तरीका सबसे बेहतर, पुरातत्व विशेषज्ञों ने दिए छात्रों के उत्तर

उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से आयोजित पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में वक्ताओं ने धरोहरों को समझने के लिए प्रयोगात्मक तरीकों पर जोर दिया. प्रशिक्षण शिविर-2023 का आयोजन 14 से 28 जून तक किया जाएगा.

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Published : Jun 14, 2023, 8:44 PM IST

धरोहरों को समझने के लिए प्रयोगात्मक तरीका सबसे बेहतर. देखें पूरी खबर

लखनऊ : अपनी धरोहरों को जानना समझना और किस तरह से धरोहरों को संरक्षित रखना है. इन सभी पहलुओं पर बात करने के लिए बुधवार को पुरातत्व विभाग की ओर से पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का आयोजित हुआ. पुरातत्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने बताया कि कार्यक्रम कराने का उद्देश्य है कि जो भी छात्र-छात्राएं यहां पर शिविर में आ रहे हैं. उन्हें धरोहरों के बारे में अवगत कराया जा सके. पुस्तकों में तो विद्यार्थी अपने इतिहास के बारे में पढ़ते हैं, लेकिन वही चीज जब प्रयोगात्मक तरीके से सीखते हैं तो हर एक चीज की हमेशा याद रखते हैं. आज के कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं को धरोहरों के बारे में समझाया और बताया जा रहा है.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में मौजूद छात्र-छात्राएं.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में मौजूद छात्र-छात्राएं.



उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर-2023 का आयोजन 14 से 28 जून तक किया जाएगा. पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में 50 प्रतिभागियों द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त किया जा रहा है. 10 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के पहले दिन बुधवार को उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्रोफेसर किरण कुमार थपल्याल विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. शैलेंद्र नाथ कपूर मुख्य एवं वक्ता के रूप में प्रो. प्रशांत श्रीवास्तव और प्रो. पीयूष भार्गव उपस्थित रहे.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में पहुंचे छात्र-छात्राएं.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में पहुंचे छात्र-छात्राएं.



पुरातत्त्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का विषय प्रवर्तन किया. प्रोफेसर थपल्यािल ने पुरातत्त्वशास्त्र की उत्खनन और सर्वेक्षण की पद्धतियों के विषय में अवगत कराया. साथ ही मानव के क्रमिक विकास के विषय में भी जानकारी दी. प्रोफेसर कपूर ने अपने संबोधन में पुरातत्त्व की बारीकियों से अवगत कराने हेतु विभाग द्वारा आयोजित इस शिविर की सराहना की और विभाग द्वारा भविष्य में भी ऐसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएं ऐसी आशा व्यक्त की.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ करते अतिथि.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ करते अतिथि.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. प्रशांत श्रीवास्तव ने इतिहास लेखन में मुद्राओं की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मुद्राएं न सिर्फ आर्थिक इतिहास अपितु सामाजिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास लेखन में भी महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं. विभाग द्वारा इस अवसर पर पूर्व में कराए गए उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों तथा मृदभाण्डों की प्रदर्शनी भी लगाई गई. इस दौरान छात्रों को उत्खनन की तकनीकों से अवगत कराने के लिए सांकेतिक उत्खनन गर्त भी बनाए गए. कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश राज्य अभिलेखागार निदेशालय की निदेशक उमा द्विवेदी प्रो. पीयूष भार्गव, राम विनय, ज्ञानेंद्र कुमार रस्तोगी, सहायक पुरातत्त्व अधिकारी डॉ. राजीव कुमार त्रिवेदी, डॉ. कृष्ण मोहन दुबे एवं विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे.

यह भी पढ़ें : कृषि क्षेत्र में सरकार के दावों और हकीकत में है बड़ा अंतर

धरोहरों को समझने के लिए प्रयोगात्मक तरीका सबसे बेहतर. देखें पूरी खबर

लखनऊ : अपनी धरोहरों को जानना समझना और किस तरह से धरोहरों को संरक्षित रखना है. इन सभी पहलुओं पर बात करने के लिए बुधवार को पुरातत्व विभाग की ओर से पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का आयोजित हुआ. पुरातत्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने बताया कि कार्यक्रम कराने का उद्देश्य है कि जो भी छात्र-छात्राएं यहां पर शिविर में आ रहे हैं. उन्हें धरोहरों के बारे में अवगत कराया जा सके. पुस्तकों में तो विद्यार्थी अपने इतिहास के बारे में पढ़ते हैं, लेकिन वही चीज जब प्रयोगात्मक तरीके से सीखते हैं तो हर एक चीज की हमेशा याद रखते हैं. आज के कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं को धरोहरों के बारे में समझाया और बताया जा रहा है.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में मौजूद छात्र-छात्राएं.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में मौजूद छात्र-छात्राएं.



उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर-2023 का आयोजन 14 से 28 जून तक किया जाएगा. पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में 50 प्रतिभागियों द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त किया जा रहा है. 10 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के पहले दिन बुधवार को उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्रोफेसर किरण कुमार थपल्याल विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. शैलेंद्र नाथ कपूर मुख्य एवं वक्ता के रूप में प्रो. प्रशांत श्रीवास्तव और प्रो. पीयूष भार्गव उपस्थित रहे.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में पहुंचे छात्र-छात्राएं.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर में पहुंचे छात्र-छात्राएं.



पुरातत्त्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का विषय प्रवर्तन किया. प्रोफेसर थपल्यािल ने पुरातत्त्वशास्त्र की उत्खनन और सर्वेक्षण की पद्धतियों के विषय में अवगत कराया. साथ ही मानव के क्रमिक विकास के विषय में भी जानकारी दी. प्रोफेसर कपूर ने अपने संबोधन में पुरातत्त्व की बारीकियों से अवगत कराने हेतु विभाग द्वारा आयोजित इस शिविर की सराहना की और विभाग द्वारा भविष्य में भी ऐसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएं ऐसी आशा व्यक्त की.

पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ करते अतिथि.
पुरातत्व प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ करते अतिथि.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. प्रशांत श्रीवास्तव ने इतिहास लेखन में मुद्राओं की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मुद्राएं न सिर्फ आर्थिक इतिहास अपितु सामाजिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास लेखन में भी महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं. विभाग द्वारा इस अवसर पर पूर्व में कराए गए उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों तथा मृदभाण्डों की प्रदर्शनी भी लगाई गई. इस दौरान छात्रों को उत्खनन की तकनीकों से अवगत कराने के लिए सांकेतिक उत्खनन गर्त भी बनाए गए. कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश राज्य अभिलेखागार निदेशालय की निदेशक उमा द्विवेदी प्रो. पीयूष भार्गव, राम विनय, ज्ञानेंद्र कुमार रस्तोगी, सहायक पुरातत्त्व अधिकारी डॉ. राजीव कुमार त्रिवेदी, डॉ. कृष्ण मोहन दुबे एवं विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे.

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