लखनऊ: राजधानी के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) को मार्फिन टैबलेट के इस्तेमाल की इजाजत मिल गई है. यह टैबलेट कैंसर के मरीजों के इलाज में दर्द के लिए दी जाती है. विश्वविद्यालय में मॉर्फिन टैबलेट के वितरण की जिम्मेदारी संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग की पेन यूनिट को सौंपी गई है.
मार्फिन टैबलेट के इस्तेमाल में नारकोटिक्स था मुद्दा
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की डॉक्टर सरिता सिंह ने बताया कि केजीएमयू द्वारा काफी प्रयास के बाद इसमें सफलता प्राप्त हुई है. कई वर्षों से नारकोटिक्स मुद्दा होने की वजह से सरकार की तरफ से मॉर्फिन की उपलब्धता कराने में कठिनाई हो रही थी. उन्होंने कहा कि हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि कैंसर के मरीज तक इस दवा की उपलब्धता हो सके. इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एनेस्थीसिया विभाग को जिम्मेदारी सौंपी है.
उन्होंने कहा कि हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि कैंसर के व्यक्ति तक इस दवा की उपलब्धता हो सके. उन्होंने कहा कि सरकार से इजाजत मिल जाने के बाद कैंसर मरीजों की बहुत बड़ी समस्या हल हो गई है. साथ ही विश्वविद्यालय को भी उनके इलाज में अब काफी मदद मिल सकेगी. दवा के अभाव में मरीजों को दर्द से राहत नहीं मिल पाती थी.
कुलपति ने की औपचारिक शुरुआत
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में कैंसर के मरीजों तक मार्फिन टैबलेट पहुंचाने की शुरुआत शुक्रवार को कुलपति लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ बिपिन पुरी ने की. इस अवसर पर एनेस्थीसिया विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जीपी सिंह, प्रोफ़ेसर मोनिका कोहली तथा नोडल अधिकारी डॉ सरिता सिंह द्वारा डॉ अजय चौधरी व डॉ मनीष कुमार सिंह आदि मौजूद रहे.
नारकोटिक्स विभाग से लेनी पड़ती है अनुमति
मॉर्फिन नामक दवा बेचने के लिए नारकोटिक्स विभाग से अनुमति लेना जरूरी होता है. यदि कोई बिना अनुमति के दवा बेचता पाया जाता है तो तीन साल तक की जेल हो सकती है.
क्या है मार्फिन दवा
मार्फिन दवा अफीम से बनती है और इससे मरीज काफी निष्क्रिय हो जाता है और उसे दर्द का कम अनुभव होता है. लेकिन अफीम से बनने और नशे के रूप में उपयोग में आने से रोकने के लिए इस पर नारकोटिक्स विभाग का अंकुश है.
कैंसर के अंतिम स्टेज में मरीजों को मॉर्फिन दवा ही कारगर रहती है. इस दवा को लेने के बाद उनका दर्द 80 प्रतिशत तक कम हो सकता है.