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लखनऊ: आईआईटियन का आइडिया, दिव्यांगों के रोजगार के लिए शुरू की खास पहल

राजधानी में एक आईआईटियन के दिमाग में आया कुछ ऐसा आFडिया, जिसके चलते कैसरबाग में आज बस स्टेशन पर दिव्यांगों को रोजगार देने के लिए पहला दिव्यांग स्टाल खोला गया है. इसी के तहत इस स्टाल से पिंकी नाम की एक दिव्यांग लड़की को रोजगार मिला है.

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लखनऊ: आईआईटियन के दिमाग में आया दिव्यांगों को रोजगार देने का विचार
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Published : Nov 27, 2019, 7:45 PM IST

लखनऊ: राजधानी के कैसरबाग में आज बस स्टेशन पर दिव्यांगों को रोजगार देने के लिए पहला दिव्यांग स्टाल खोला गया है. इस स्टाल को खोलने का मक़सद है कि कैसे सरकारी योजनाओं का फायदा दिव्यांगों को मिले और वो भी समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें. इसी के चलते बुधवार को प्रदेश का पहला दिव्यांग स्टाल धरातल पर उतरा गया है. 'दिव्यांग एक उम्मीद' संस्था के संस्थापक विकास गुप्ता ने 'ईटीवी भारत' से खास बातचीत की.

आईआईटियन के दिमाग में आया दिव्यांगों को रोजगार देने का विचार

विकास गुप्ता ने बताया कि जब वो आईआईटी रुड़की कॉलेज में थे तब बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर अक्सर देखते थे कि अमूल के स्टाल लगे हुए हैं और हल्दीराम के स्टाल लगे हुए हैं तो सभी लोग नाम से उन स्टालों पर जाया करते थे. इसे ही देखकर उनके मन में ये विचार आया क्यों न दिव्यांग स्टॉल शुरू किया जाए, जिससे दिव्यांगों को भी रोजगार मिले और उन्हें रेलवे स्टेशन और बस स्टेशनों पर गुटखा न बेचना पड़े. इसी के चलते आज कैसरबाग में प्रदेश का पहला दिव्यांग मॉडर्न स्टाल खोला गया है.

इस योजना का पूरी तरह सभी को लाभ मिले इसलिए 'दिव्यांग एक उम्मीद' नाम से पहले ही एक मोबाइल एप लांच किया गया था. इस एप पर जितनी भी सरकार की स्कीम है उनका एक प्लेटफार्म बना हुआ है, ताकि दिव्यांगों को सारी इंफॉर्मेशन मिले. सरकार की कई स्कीमें हैं जिनका दिव्यांगो को फायदा ही नहीं मिल रहा है.

संस्थापक विकास गुप्ता ने बताया कि मुझे भी बीटेक फर्स्ट ईयर में सरकार की तरफ से मिलने वाली 60000 रुपये की स्कॉलरशिप का फायदा नहीं मिला था, जिसकी वजह से मुझे नुकसान हुआ. उन्होंने बताया कि इरा सिंघल जो आईएएस टॉपर थीं, उन्होंने यह एप लांच किया था. करीब 10,000 दिव्यांगों को इसका फायदा हुआ. इस एप के कारण अब तक 100 से अधिक फर्जी दिव्यांग भी पकड़े गए.

लखनऊ: राजधानी के कैसरबाग में आज बस स्टेशन पर दिव्यांगों को रोजगार देने के लिए पहला दिव्यांग स्टाल खोला गया है. इस स्टाल को खोलने का मक़सद है कि कैसे सरकारी योजनाओं का फायदा दिव्यांगों को मिले और वो भी समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें. इसी के चलते बुधवार को प्रदेश का पहला दिव्यांग स्टाल धरातल पर उतरा गया है. 'दिव्यांग एक उम्मीद' संस्था के संस्थापक विकास गुप्ता ने 'ईटीवी भारत' से खास बातचीत की.

आईआईटियन के दिमाग में आया दिव्यांगों को रोजगार देने का विचार

विकास गुप्ता ने बताया कि जब वो आईआईटी रुड़की कॉलेज में थे तब बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर अक्सर देखते थे कि अमूल के स्टाल लगे हुए हैं और हल्दीराम के स्टाल लगे हुए हैं तो सभी लोग नाम से उन स्टालों पर जाया करते थे. इसे ही देखकर उनके मन में ये विचार आया क्यों न दिव्यांग स्टॉल शुरू किया जाए, जिससे दिव्यांगों को भी रोजगार मिले और उन्हें रेलवे स्टेशन और बस स्टेशनों पर गुटखा न बेचना पड़े. इसी के चलते आज कैसरबाग में प्रदेश का पहला दिव्यांग मॉडर्न स्टाल खोला गया है.

इस योजना का पूरी तरह सभी को लाभ मिले इसलिए 'दिव्यांग एक उम्मीद' नाम से पहले ही एक मोबाइल एप लांच किया गया था. इस एप पर जितनी भी सरकार की स्कीम है उनका एक प्लेटफार्म बना हुआ है, ताकि दिव्यांगों को सारी इंफॉर्मेशन मिले. सरकार की कई स्कीमें हैं जिनका दिव्यांगो को फायदा ही नहीं मिल रहा है.

संस्थापक विकास गुप्ता ने बताया कि मुझे भी बीटेक फर्स्ट ईयर में सरकार की तरफ से मिलने वाली 60000 रुपये की स्कॉलरशिप का फायदा नहीं मिला था, जिसकी वजह से मुझे नुकसान हुआ. उन्होंने बताया कि इरा सिंघल जो आईएएस टॉपर थीं, उन्होंने यह एप लांच किया था. करीब 10,000 दिव्यांगों को इसका फायदा हुआ. इस एप के कारण अब तक 100 से अधिक फर्जी दिव्यांग भी पकड़े गए.

Intro:इस आईआईटियन के दिमाग में आया दिव्यांगों को रोजगार देने का विचार, पहला स्टाल दिव्यांग पिंकी के नाम

लखनऊ। राजधानी के कैसरबाग बस स्टेशन पर दिव्यांगों को रोजगार देने के लिए पहला दिव्यांग स्टाल खोला गया है और यह स्टाल पिंकी नाम की दिव्यांग को मिला है। इस पर पिंकी अपने दो सहयोगियों के साथ बस स्टेशन पर आने वाले यात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराएंगी। दिव्यांगों को रोजगार देने का विचार एक आईआईटी के छात्र के दिमाग में आया और उसने इस तरह की योजनाओं के बारे में प्लान बनाना शुरू कर दिया। सरकारी योजनाओं का फायदा किस तरह से दिव्यांगों को मिले इसी प्लान को लेकर काम किया और उसी का नतीजा है कि प्रदेश का पहला दिव्यांग स्टाल धरातल पर उतरा है। दिव्यांग एक उम्मीद संस्था के संस्थापक विकास गुप्ता और दिव्यांग पिंकी से इस बारे में 'ईटीवी भारत' ने बात की।


Body:ईटीवी भारत से बात करते हुए 'दिव्यांग एक उम्मीद' के संस्थापक विकास गुप्ता बताते हैं कि जब मैं कॉलेज में था आईआईटी रुड़की से पास हुआ तो मैंने बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर जब देखा कि अमूल के स्टाल लगे हुए हल्दीराम के स्टाल लगे हुए तो लोग नाम से जानते हैं तो मेरे मन में विचार आया क्यों ना दिव्यांग स्टॉल शुरू किया जाए जिससे दिव्यांगों को भी रोजगार मिले। आप देखते हैं रेलवे स्टेशन और बस स्टेशनों पर दिव्यांग गुटखा बेचते हुए नजर आते हैं तो मेरे मन में उसी दिन विचार आया कि रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर मॉडर्न स्टाल खोलें। इसमें हम डिस्ट्रिक्ट में जो संस्थाएं प्रोडक्ट बनाती हैं उन्हें भी प्रमोट करेंगे जिससे उन्हें भी रोजगार मिलेगा।


ऐप के जरिए पकड़े फर्जी दिव्यांग


हमने पहले ही फोकस किया था पहले मोबाइल एप लांच किया दिव्यांग एक उम्मीद नाम से। इस पर जितनी भी सरकार की स्कीम है उनका एक प्लेटफार्म बना है। जहां पर दिव्यांगों को इंफॉर्मेशन मिल जाए। सरकार की कई स्कीमें हैं जिनका दिव्यांगो को फायदा ही नहीं मिल रहा था। मुझे भी नहीं मिला था। जब मैं बीटेक फर्स्ट ईयर में था। एक स्कॉलरशिप सरकार की तरफ से मिलती है 60000 रुपए की, जो मुझे नहीं मिली। मुझे नुकसान हुआ। इरा सिंघल जो आईएएस टॉपर थीं उन्होंने यह एप लांच किया और करीब 10,000 दिव्यांगों को इसका फायदा हुआ। हमने 100 फ़र्ज़ी दिव्यांग पकड़े और जिला दिव्यांग अधिकारी के सुपुर्द किए।

कैसरबाग के बाद आलमबाग फिर बनारस

अभी कैसरबाग बस स्टेशन पर पहला स्टाल खोला है 100 ऐसे स्टाल 1 साल के अंदर बस स्टेशनों पर खोलेंगे। जैसे-जैसे फंड मिलता जाएगा हम खोलते जाएंगे। इससे हम 100 दिव्यांगों को रोजगार दे देंगे। दूसरा स्टाल आलमबाग बस स्टेशन पर खोलेंगे। उसके बाद बनारस का प्लान कर रहे हैं। जितने मेट्रो सिटी स्वच्छ भारत के अंतर्गत आते हैं। पहले उन्हें प्रमोट करेंगे। जिससे दिव्यांगों को मोटिवेशन मिले दिव्यांगों को सशक्त किया जा सके।





Conclusion:मेरा नाम पिंकी है। मैं इंदिरानगर की रहने वाली हूं। मुझे रोजगार का साधन मिला है। बहुत अच्छा लग रहा है। हम लोगों को भी समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का अवसर दिया गया है। यहां पर मुझे काम करने का दिव्यांग एक उम्मीद की तरफ से अवसर मिला है। मुझे खुशी हो रही है।अच्छा लग रहा है कि हम सेल्फ डिपेंड हैं। मैंने बहुत ज्यादा इंटरव्यू दिए लेकिन लोगों को लगता है हम लोग नॉर्मल इंसान की तरह काम नहीं कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।हम दिव्यांग जरूर हैं हम पैर हाथ से मजबूर हैं, लेकिन अपने दिमाग से तो नहीं। हम समाज को दिखाना चाहते हैं कि हम किसी से कमजोर नहीं। हम दिखाना चाहते हैं लोग भी नॉर्मल इंसान हैं और नॉर्मल जिंदगी जीना चाहते हैं।


अखिल पांडेय, लखनऊ, 9336864096


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