लखनऊ: केजीएमयू और भोपाल सीएसआईआर ने मिलकर एल्युमिनियम वेस्ट में कुछ खास तत्व मिलाकर एक शील्ड तैयार की है. इसे सीटी स्कैन और एक्सरे मशीन रूम के दरवाजों और दीवारों में लगाया जा सकेगा. इससे मशीनों से निकलने वाले रेडिएशन से मरीज-डॉक्टर और स्टाफ को बचाया जा सकेगा. यही नहीं इलाज और जांच में इस्तेमाल होने वाले एप्रिन और ग्लब्स भी तैयार किए जाएंगे. इसका पेंटेट मिलने के बाद अगले सप्ताह से क्लीनिकल ट्रॉयल शुरू होगा.
एक सीटी स्कैन में 400 एक्सरे के बराबर रेडिएशन: एक सीटी स्कैन कराने पर मरीज को करीब 400 एक्सरे के बराबर रेडिएशन से गुजरना पड़ता है. सिर में चोट लगने, फ्रैक्चर और कैंसर में मरीजों को कई सीटी स्कैन कराने की जरूरत पड़ती है. एक्सरे जांच भी कई बीमारियों में कराई जाती है. इस दौरान रेडिएशन का खतरा मरीज के साथ डॉक्टर और कर्मचारियों को भी रहता है. साथ ही यूनिट के आस-पास रेडिएशन के रिसाव का भी खतरा बना रहता है, जो आमजन के लिए घातक है.
अभी लेड का हो रहा इस्तेमाल: अभी रेडिएशन लीकेज से बचने के लिए जिस कमरे में मशीन लगी होती है, उसकी दीवारों पर लेड की चादर लगाई जाती है. दरवाजे, खिड़की और शीशे में लेड लगाया जाता है. केजीएमयू रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. अनित परिहार ने बताया कि अब समाज को लेड मुक्त बनाने की कवायद चल रही है. मेक इन इंडिया अभियान के तहत 2018 से शोध चल रहा है. रेडमड में तत्वों को मिलाकर हाईब्रिड कंपोजिट पॉलीमर मोबाइल रेडिएशन शील्ड तैयार की गई है, जो रेडिएशन से बचाने में मददगार होगी.
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अगले सप्ताह से क्लीनिक ट्रॉयल: दरवाजे के आकार का शील्ड तैयार किया गया है. रेडियोलॉजी विभाग की एक्सरे यूनिट से क्लीनिक ट्रॉयल की अगले सप्ताह से शुरुआत होगी. इसमें शील्ड की रेडिएशन से बचाव की कार्यक्षमता, मजबूती जैसे पहलू परखे जाएंगे. उन्होंने बताया कि यह एल्युमिनियम के वेस्ट से तैयार किया गया है. लिहाजा लेड के मुकाबले काफी सस्ता है. उन्होंने बताया कि शोध में भोपाल सीएसआईआर के डॉ. एसकेएस राठौर, डॉ. मनोज गुप्ता व रेडियोथेरेपी विभाग के डॉ. तीर्थराज भी शामिल हैं.
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