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अपनों से ठुकराए बुजुर्ग दंपति को मिला हाईकोर्ट का सहारा, ओल्ड एज होम को दिया यह आदेश

बच्चों द्वारा ठुकराए गए परित्यक्त बुजुर्ग दंपति को हाईकोर्ट (Allahabad High) का सहारा मिला. लखनऊ बेंच ने ओल्ड एज होम (old age home) द्वारा उन्हें निकालने पर रोक लगाई .

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Published : Oct 4, 2021, 9:47 PM IST

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court lucknow bench) ने एक परित्यक्त बुजुर्ग दंपति को शहर के समर्पण वृद्धाश्रम से निकाले जाने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने इस सम्बंध में निचली अदालत में चल रहे सिविल मुकदमे को भी एक वर्ष के भीतर निर्णित करने का आदेश दिया है.

यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल व उनकी पत्नी की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचियों का कहना था कि वे वर्ष 2016 से गायत्री परिवार ट्रस्ट द्वारा संचालित लखनऊ शहर के समर्पण ओल्ड एज होम में रह रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 75 हजार रुपये का सिक्युरिटी अमाउंट जमा किया है और मासिक शुल्क भी देते हैं. याचियों की ओर से कहा गया कि ओल्ड एज होम के मैनेजमेंट द्वारा झूठे आरोप लगाकर वर्ष 2019 से उन्हें निकालने का प्रयास किया जाने लगा. याचियों ने स्थाई निषेधाज्ञा का एक वाद सिविल जज (जूनियर डिविजन), लखनऊ के समक्ष दाखिल किया. जिस पर निचली अदालत ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए, याचियों को निकालने पर रोक लगा दी.

इसे भी पढ़ें-16448 सहायक अध्यापक भर्ती: कम मेरिट के बाद भी नियुक्ति देने पर सचिव बेसिक शिक्षा परिषद तलब

उक्त अंतरिम आदेश को ओल्ड एज होम ने अपील के माध्यम से चुनौती दी. अपील पर सुनवाई के उपरांत अपर जनपद न्यायाधीश ने निचली अदालत के अंतरिम आदेश को खारिज कर दिया, जिसके बाद याचियों ने वर्तमान याचिका दाखिल की. वहीं, याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि याचीगण वृद्धाश्रम के नियमों का पालन नहीं करते व याची संख्या 2 गाली-गलौज भी करती है. इस कारण से उन्हें नोटिसें भी दी गईं, लेकिन उनमें कोई सुधार न होता देख ओल्ड एज होम छोड़ने को कहा गया. कहा गया कि लखनऊ शहर में ही याचियों की तीन बेटियां रहती हैं. वे उनके पास रह सकते हैं. हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचियों को भी निर्देश दिया है कि वे वृद्धाश्रम में रहने, भोजन और बिजली के इस्तेमाल के लिए 12 हजार रुपये मासिक शुल्क जमा करते रहेंगे.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court lucknow bench) ने एक परित्यक्त बुजुर्ग दंपति को शहर के समर्पण वृद्धाश्रम से निकाले जाने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने इस सम्बंध में निचली अदालत में चल रहे सिविल मुकदमे को भी एक वर्ष के भीतर निर्णित करने का आदेश दिया है.

यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल व उनकी पत्नी की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचियों का कहना था कि वे वर्ष 2016 से गायत्री परिवार ट्रस्ट द्वारा संचालित लखनऊ शहर के समर्पण ओल्ड एज होम में रह रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 75 हजार रुपये का सिक्युरिटी अमाउंट जमा किया है और मासिक शुल्क भी देते हैं. याचियों की ओर से कहा गया कि ओल्ड एज होम के मैनेजमेंट द्वारा झूठे आरोप लगाकर वर्ष 2019 से उन्हें निकालने का प्रयास किया जाने लगा. याचियों ने स्थाई निषेधाज्ञा का एक वाद सिविल जज (जूनियर डिविजन), लखनऊ के समक्ष दाखिल किया. जिस पर निचली अदालत ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए, याचियों को निकालने पर रोक लगा दी.

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उक्त अंतरिम आदेश को ओल्ड एज होम ने अपील के माध्यम से चुनौती दी. अपील पर सुनवाई के उपरांत अपर जनपद न्यायाधीश ने निचली अदालत के अंतरिम आदेश को खारिज कर दिया, जिसके बाद याचियों ने वर्तमान याचिका दाखिल की. वहीं, याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि याचीगण वृद्धाश्रम के नियमों का पालन नहीं करते व याची संख्या 2 गाली-गलौज भी करती है. इस कारण से उन्हें नोटिसें भी दी गईं, लेकिन उनमें कोई सुधार न होता देख ओल्ड एज होम छोड़ने को कहा गया. कहा गया कि लखनऊ शहर में ही याचियों की तीन बेटियां रहती हैं. वे उनके पास रह सकते हैं. हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचियों को भी निर्देश दिया है कि वे वृद्धाश्रम में रहने, भोजन और बिजली के इस्तेमाल के लिए 12 हजार रुपये मासिक शुल्क जमा करते रहेंगे.

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