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हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, 'निचली अदालतों ने अपने कर्तव्यों का त्याग कर दिया'

रिमांड ऑर्डर और डिफाल्ट जमानत न देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि 25 मार्च से 16 जून के दौरान सिर्फ नए रिमांड मामलों की सुनवाई करना व पहले से ज्यूडिशियल रिमांड पर लिए गए अभियुक्तों के मामलों की सुनवाई न करना निंदा के योग्य है. हाईकोर्ट ने कहा कि 'निचली अदालतों ने अपने कर्तव्यों का त्याग कर दिया'.

allahabad high court lucknow bench
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Published : Dec 1, 2020, 7:08 PM IST

लखनऊ: 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक रिमांड ऑर्डर न पास करने और 90 दिनों में चार्जशीट न दाखिल होने के बावजूद जमानत अर्जियां निरस्त किये जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त नाराजगी जताई है. न्यायालय ने लखनऊ और हरदोई जनपद के उन मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों की सूची भी तलब की है, जिन्होंने उक्त अवधि में रिमांड ऑर्डर नहीं पारित किये. इसके साथ ही कोर्ट ने 10 दिसंबर को वरिष्ठ निबंधक, यूपी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य और सचिव को तलब किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी की एकल सदस्यीय पीठ ने अभिषेक श्रीवास्तव और संजीव यादव की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया.

जानें क्या है मामला
मामलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि अभिषेक श्रीवास्तव को लखनऊ पुलिस द्वारा धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से मजिस्ट्रेट ने अभियुक्त को 16 जनवरी को ज्यूडिशियल रिमांड पर लेते हुए 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया. इसके बाद समय-समय पर उसका ज्यूडिशियल रिमांड संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा बढ़ाया जाता रहा. आखिरी बार 11/12 मार्च को अभियुक्त का रिमांड 25 मार्च तक के लिए बढ़ाया गया, लेकिन 25 मार्च के पूर्व ही राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लागू हो गया, जिसके कारण अभियुक्त का रिमांड ऑर्डर नहीं बढ़ाया जा सका.

हालांकि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आवश्यक मामलों व कार्यों के लिए कोर्ट खोलने के दिशा-निर्देश जारी किये. इसके साथ ही अभियुक्त के मामले में उसकी गिरफ्तारी के 90 दिन की अवधि 14 अप्रैल को बीत गई, लेकिन चार्जशीट एक मई को दाखिल की गई. इसके बावजूद संबंधित निचली अदालत ने 18 जून को यह कहते हुए अभियुक्त की डिफाल्ट जमानत अर्जी को खारिज कर दिया कि अब चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.

वहीं दूसरे मामले में संजीव यादव को हरदोई कोर्ट ने 31 जनवरी को ज्यूडिशियल रिमांड पर लेते हुए जेल भेजा. उक्त अभियुक्त के मामले में भी 90 दिनों की अवधि 29 अप्रैल को बीत गई, लेकिन चार्जशीट पांच मई को दाखिल हो सकी. उक्त अभियुक्त के मामले में डिफाल्ट जमानत की अर्जी 20 जून को खारिज कर दी गई.

जनपद न्यायाधीश ने स्वीकारा, नहीं पारित हुए रिमांड आदेश
न्यायालय ने मामले में जनपद न्यायाधीश, लखनऊ से रिपोर्ट तलब की. आदेश के अनुपालन में भेजी गई रिपोर्ट में जनपद न्यायाधीश ने बताया कि लॉकडाउन के कारण अदालतों के बंद हो जाने की स्थिति में 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक नए मामलों के सिवा कोई भी रिमांड आदेश पारित नहीं किया गया. रिपोर्ट में मुख्य न्यायाधीश द्वारा 25 मार्च को जारी आदेश का भी जिक्र किया गया, जिसके तहत लॉकडाउन व कोरोना के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधीनस्थ अदालतों को बंद करने का आदेश पारित किया गया था.

हालांकि मुख्य न्यायाधीश के उक्त आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि जमानत व रिमांड की सुनवाई अवकाश के दिनों की भांति चलती रहेगी. न्यायालय ने कहा कि यह चकित करने वाली बात है कि सत्र न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों ने उक्त आदेश को समझा ही नहीं और सिर्फ नए रिमांड पर सुनवाई की, जबकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़ा विषय होता है. न्यायालय ने आगे कहा कि जनपद न्यायाधीशों का यह दायित्व था कि वे रिमांड के लिए मजिस्ट्रेटों व सत्र न्यायाधीशों की ड्यूटी लगाते, भले ही अदालतें बंद थीं.

न्यायालय की तल्ख टिप्पणी
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए अपने आदेश में काफी तल्ख टिप्पणियां कीं. कहा कि यह न्यायालय इस टिप्पणी को करने को मजबूर है कि मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों ने अदालतें बंद होने के कारण काम न करके अपने दायित्वों का त्याग किया है. 25 मार्च से 16 जून के दौरान सिर्फ नए रिमांड मामलों की सुनवाई करना व पहले से ज्यूडिशियल रिमांड पर लिए गए अभियुक्तों के मामलों की सुनवाई न करना निंदा के योग्य है.

वरिष्ठ निबंधक, सदस्य और सचिव को किया तलब
न्यायालय ने लखनऊ और हरदोई जनपद के उन मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों की सूची तलब की है, जिन्होंने 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक की अवधि के दौरान पुराने रिमांड आदेश नहीं पारित किये. इसके साथ ही न्यायालय ने इस विषय पर आगे विचार के लिए लखनऊ बेंच के वरिष्ठ निबंधक और यूपी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य और सचिव को भी 10 दिसंबर को उपस्थित होने का आदेश दिया है. न्यायालय ने उक्त दोनों अभियुक्तों को तत्काल जमानत पर रिहा करने का भी आदेश पारित किया है.

लखनऊ: 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक रिमांड ऑर्डर न पास करने और 90 दिनों में चार्जशीट न दाखिल होने के बावजूद जमानत अर्जियां निरस्त किये जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त नाराजगी जताई है. न्यायालय ने लखनऊ और हरदोई जनपद के उन मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों की सूची भी तलब की है, जिन्होंने उक्त अवधि में रिमांड ऑर्डर नहीं पारित किये. इसके साथ ही कोर्ट ने 10 दिसंबर को वरिष्ठ निबंधक, यूपी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य और सचिव को तलब किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी की एकल सदस्यीय पीठ ने अभिषेक श्रीवास्तव और संजीव यादव की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया.

जानें क्या है मामला
मामलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि अभिषेक श्रीवास्तव को लखनऊ पुलिस द्वारा धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से मजिस्ट्रेट ने अभियुक्त को 16 जनवरी को ज्यूडिशियल रिमांड पर लेते हुए 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया. इसके बाद समय-समय पर उसका ज्यूडिशियल रिमांड संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा बढ़ाया जाता रहा. आखिरी बार 11/12 मार्च को अभियुक्त का रिमांड 25 मार्च तक के लिए बढ़ाया गया, लेकिन 25 मार्च के पूर्व ही राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लागू हो गया, जिसके कारण अभियुक्त का रिमांड ऑर्डर नहीं बढ़ाया जा सका.

हालांकि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आवश्यक मामलों व कार्यों के लिए कोर्ट खोलने के दिशा-निर्देश जारी किये. इसके साथ ही अभियुक्त के मामले में उसकी गिरफ्तारी के 90 दिन की अवधि 14 अप्रैल को बीत गई, लेकिन चार्जशीट एक मई को दाखिल की गई. इसके बावजूद संबंधित निचली अदालत ने 18 जून को यह कहते हुए अभियुक्त की डिफाल्ट जमानत अर्जी को खारिज कर दिया कि अब चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.

वहीं दूसरे मामले में संजीव यादव को हरदोई कोर्ट ने 31 जनवरी को ज्यूडिशियल रिमांड पर लेते हुए जेल भेजा. उक्त अभियुक्त के मामले में भी 90 दिनों की अवधि 29 अप्रैल को बीत गई, लेकिन चार्जशीट पांच मई को दाखिल हो सकी. उक्त अभियुक्त के मामले में डिफाल्ट जमानत की अर्जी 20 जून को खारिज कर दी गई.

जनपद न्यायाधीश ने स्वीकारा, नहीं पारित हुए रिमांड आदेश
न्यायालय ने मामले में जनपद न्यायाधीश, लखनऊ से रिपोर्ट तलब की. आदेश के अनुपालन में भेजी गई रिपोर्ट में जनपद न्यायाधीश ने बताया कि लॉकडाउन के कारण अदालतों के बंद हो जाने की स्थिति में 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक नए मामलों के सिवा कोई भी रिमांड आदेश पारित नहीं किया गया. रिपोर्ट में मुख्य न्यायाधीश द्वारा 25 मार्च को जारी आदेश का भी जिक्र किया गया, जिसके तहत लॉकडाउन व कोरोना के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधीनस्थ अदालतों को बंद करने का आदेश पारित किया गया था.

हालांकि मुख्य न्यायाधीश के उक्त आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि जमानत व रिमांड की सुनवाई अवकाश के दिनों की भांति चलती रहेगी. न्यायालय ने कहा कि यह चकित करने वाली बात है कि सत्र न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों ने उक्त आदेश को समझा ही नहीं और सिर्फ नए रिमांड पर सुनवाई की, जबकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़ा विषय होता है. न्यायालय ने आगे कहा कि जनपद न्यायाधीशों का यह दायित्व था कि वे रिमांड के लिए मजिस्ट्रेटों व सत्र न्यायाधीशों की ड्यूटी लगाते, भले ही अदालतें बंद थीं.

न्यायालय की तल्ख टिप्पणी
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए अपने आदेश में काफी तल्ख टिप्पणियां कीं. कहा कि यह न्यायालय इस टिप्पणी को करने को मजबूर है कि मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों ने अदालतें बंद होने के कारण काम न करके अपने दायित्वों का त्याग किया है. 25 मार्च से 16 जून के दौरान सिर्फ नए रिमांड मामलों की सुनवाई करना व पहले से ज्यूडिशियल रिमांड पर लिए गए अभियुक्तों के मामलों की सुनवाई न करना निंदा के योग्य है.

वरिष्ठ निबंधक, सदस्य और सचिव को किया तलब
न्यायालय ने लखनऊ और हरदोई जनपद के उन मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों की सूची तलब की है, जिन्होंने 25 मार्च 2020 से 16 जून 2020 तक की अवधि के दौरान पुराने रिमांड आदेश नहीं पारित किये. इसके साथ ही न्यायालय ने इस विषय पर आगे विचार के लिए लखनऊ बेंच के वरिष्ठ निबंधक और यूपी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य और सचिव को भी 10 दिसंबर को उपस्थित होने का आदेश दिया है. न्यायालय ने उक्त दोनों अभियुक्तों को तत्काल जमानत पर रिहा करने का भी आदेश पारित किया है.

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