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चाचा शिवपाल से बढ़ रही दूरी को कम करने के मूड में नहीं अखिलेश, ये है वजह

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल यादव से बढ़ रही दूरी को कम करने के मूड में नजर नहीं आ रहे हैं. आखिर क्या है इसकी वजह, चलिए जानते हैं इस खास खबर में.

चाचा भतीज़े के बीच 'दूरी' बढ़ी तो उसे 'कम' के बजाय और 'बढ़ा' रहे अखिलेश
चाचा भतीज़े के बीच 'दूरी' बढ़ी तो उसे 'कम' के बजाय और 'बढ़ा' रहे अखिलेश
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Published : Apr 17, 2022, 3:11 PM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और चाचा प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव के बीच एक बार फिर 'दूरियां' बढ़ गई हैं. विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान शिवपाल के किसी भी करीबी को टिकट नहीं दिया गया, इससे शिवपाल काफी नाराज हैं. अब वह नया राजनीतिक ठिकाना न सिर्फ तलाश रहे हैं बल्कि उसकी बुनियाद भी तैयार कर रहे हैं. चर्चा है कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं या फिर अन्य विकल्प के अनुसार भाजपा का साथ देंगे.


चर्चा यह भी है कि उनके बेटे आदित्य यादव भाजपा में शामिल होंगे. सपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि चाचा भतीजे के बीच जो दूरियां बढ़ी हैं उसको 'कम' करने की अखिलेश यादव ने कोशिश तक नहीं की. वह दूरियों को कम करने के बजाय बढ़ा ही रहे हैं. उन्होंने चाचा शिवपाल यादव से इस पूरे मामले में अब तक कोई संवाद नहीं किया है. ऐसे में शिवपाल यादव अब नई सियासी मंजिल को बनाने में जुट गए हैं. समाजवादी पार्टी से जुड़े नेता कहते हैं कि अखिलेश यादव का ऐसा मानना है कि शिवपाल सिंह यादव की वजह से समाजवादी पार्टी को विधानसभा चुनाव 2022 में कोई फायदा नहीं पहुंच पाया.

यह बोले राजनीतिक विश्लेषक.

अखिलेश के करीबी नेताओं का कहना है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ सपा का जो गठबंधन हुआ उसके अंतर्गत सिर्फ शिवपाल सिंह यादव को ही चुनाव मैदान में उतारा गया था और उनके किसी भी करीबी नेता को टिकट नहीं दिया गया. ऐसे में प्रसपा के समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने पूरी तरह से चुनाव से दूरी बना ली है, जिससे इसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा. जब समाजवादी पार्टी को शिवपाल की तरफ से आपेक्षित मदद नहीं मिली तो अब अखिलेश, चाचा शिवपाल को बिल्कुल भी समाजवादी पार्टी के साथ रोकने या किसी भी तरह के गठबंधन के सहयोगी के रुप में भी नहीं रोकना चाहते हैं.


विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि विधानसभा चुनाव के बाद आए चुनाव परिणाम को लेकर अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव से कोई बातचीत नहीं की. इसके अलावा पार्टी के विधायकों की बैठक में भी शिवपाल सिंह यादव को नहीं बुलाया गया था. बाद में जब शिवपाल की नाराजगी सामने आई तो उन्होंने कहा कि सपा की तरफ से कहा गया था कि शिवपाल यादव गठबंधन के सहयोगी के रूप में चुनाव जीते थे ऐसी स्थिति में अलग से जब गठबंधन के लोगों को बैठक होगी तब उन्हें बुलाया जाएगा लेकिन उस बैठक में भी शिवपाल सिंह यादव नहीं पहुंचे. यही नहीं पिछले दिनों शिवपाल सिंह यादव की सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात और प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं को ट्वीटर पर फॉलो करने सहित कई घटनाक्रम हुए जिससे उनके भाजपा में जाने की अटकलें लगने लगीं. उन्होंने प्रसपा संगठन की इकाइयों को भी भंग कर दिया है.

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि शिवपाल यादव ने पांच वर्ष तक अपनी पार्टी को चला कर देख लिया. भतीजे व सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ पुनः तालमेल करके भी देख लिया. यह दोनों अनुभव उनके लिए निराशाजनक रहे है. नाराज तो आजम खान भी हैं लेकिन उनकी अपनी मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही है. ऐसे में शिवपाल को अकेले ही निर्णय लेना होगा. अखिलेश ने अपनी मंशा साफ कर दी है. शायद वह चाचा को राजनीतिक सम्मान देने के वादे से पलट चुके हैं. वैसे यह बात शिवपाल को तभी समझ लेनी चाहिए थी जब उनको केवल जसवन्तनगर विधानसभा सीट तक ही सीमित कर दिया गया था. दोबारा उपेक्षा मिलने के बाद शिवपाल आहत हैं, उनके बयान भाजपा के मुद्दों का समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं, उनकी योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी हो चुकी है. देखना है कि वह कब तक निर्णय लेते हैं.

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लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और चाचा प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव के बीच एक बार फिर 'दूरियां' बढ़ गई हैं. विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान शिवपाल के किसी भी करीबी को टिकट नहीं दिया गया, इससे शिवपाल काफी नाराज हैं. अब वह नया राजनीतिक ठिकाना न सिर्फ तलाश रहे हैं बल्कि उसकी बुनियाद भी तैयार कर रहे हैं. चर्चा है कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं या फिर अन्य विकल्प के अनुसार भाजपा का साथ देंगे.


चर्चा यह भी है कि उनके बेटे आदित्य यादव भाजपा में शामिल होंगे. सपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि चाचा भतीजे के बीच जो दूरियां बढ़ी हैं उसको 'कम' करने की अखिलेश यादव ने कोशिश तक नहीं की. वह दूरियों को कम करने के बजाय बढ़ा ही रहे हैं. उन्होंने चाचा शिवपाल यादव से इस पूरे मामले में अब तक कोई संवाद नहीं किया है. ऐसे में शिवपाल यादव अब नई सियासी मंजिल को बनाने में जुट गए हैं. समाजवादी पार्टी से जुड़े नेता कहते हैं कि अखिलेश यादव का ऐसा मानना है कि शिवपाल सिंह यादव की वजह से समाजवादी पार्टी को विधानसभा चुनाव 2022 में कोई फायदा नहीं पहुंच पाया.

यह बोले राजनीतिक विश्लेषक.

अखिलेश के करीबी नेताओं का कहना है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ सपा का जो गठबंधन हुआ उसके अंतर्गत सिर्फ शिवपाल सिंह यादव को ही चुनाव मैदान में उतारा गया था और उनके किसी भी करीबी नेता को टिकट नहीं दिया गया. ऐसे में प्रसपा के समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने पूरी तरह से चुनाव से दूरी बना ली है, जिससे इसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा. जब समाजवादी पार्टी को शिवपाल की तरफ से आपेक्षित मदद नहीं मिली तो अब अखिलेश, चाचा शिवपाल को बिल्कुल भी समाजवादी पार्टी के साथ रोकने या किसी भी तरह के गठबंधन के सहयोगी के रुप में भी नहीं रोकना चाहते हैं.


विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि विधानसभा चुनाव के बाद आए चुनाव परिणाम को लेकर अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव से कोई बातचीत नहीं की. इसके अलावा पार्टी के विधायकों की बैठक में भी शिवपाल सिंह यादव को नहीं बुलाया गया था. बाद में जब शिवपाल की नाराजगी सामने आई तो उन्होंने कहा कि सपा की तरफ से कहा गया था कि शिवपाल यादव गठबंधन के सहयोगी के रूप में चुनाव जीते थे ऐसी स्थिति में अलग से जब गठबंधन के लोगों को बैठक होगी तब उन्हें बुलाया जाएगा लेकिन उस बैठक में भी शिवपाल सिंह यादव नहीं पहुंचे. यही नहीं पिछले दिनों शिवपाल सिंह यादव की सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात और प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं को ट्वीटर पर फॉलो करने सहित कई घटनाक्रम हुए जिससे उनके भाजपा में जाने की अटकलें लगने लगीं. उन्होंने प्रसपा संगठन की इकाइयों को भी भंग कर दिया है.

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि शिवपाल यादव ने पांच वर्ष तक अपनी पार्टी को चला कर देख लिया. भतीजे व सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ पुनः तालमेल करके भी देख लिया. यह दोनों अनुभव उनके लिए निराशाजनक रहे है. नाराज तो आजम खान भी हैं लेकिन उनकी अपनी मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही है. ऐसे में शिवपाल को अकेले ही निर्णय लेना होगा. अखिलेश ने अपनी मंशा साफ कर दी है. शायद वह चाचा को राजनीतिक सम्मान देने के वादे से पलट चुके हैं. वैसे यह बात शिवपाल को तभी समझ लेनी चाहिए थी जब उनको केवल जसवन्तनगर विधानसभा सीट तक ही सीमित कर दिया गया था. दोबारा उपेक्षा मिलने के बाद शिवपाल आहत हैं, उनके बयान भाजपा के मुद्दों का समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं, उनकी योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी हो चुकी है. देखना है कि वह कब तक निर्णय लेते हैं.

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