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लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सीएए के प्रस्ताव पर भड़के अखिलेश और मायावती

सीएए और अनुच्छेद 370 को लखनऊ विश्वविद्यालय का राजनीति विज्ञान विभाग अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है. इस पर विपक्षी दल भाजपा पर हमलावर हो गए हैं. सपा और बसपा दोनों पार्टियों ने भाजपा पर करारा हमला बोला है.

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लखनऊ विश्वविद्यालय.
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Published : Jan 25, 2020, 1:55 AM IST

लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को लखनऊ विश्वविद्यालय का राजनीति विज्ञान विभाग अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है. विश्वविद्यालय की इस कवायद ने उत्तर प्रदेश के विपक्षी राजनीतिक दलों को भड़का दिया है. बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने सरकार बनने पर पाठ्यक्रम में बदलाव को खारिज करने का ऐलान किया है. वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भाजपा पर करारा व्यंग्य किया है.

नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 पर उत्तर प्रदेश में हो रही राजनीति का दायरा शिक्षण संस्थानों तक फैलता दिख रहा है. उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित लखनऊ विश्वविद्यालय ने राजनीति विज्ञान की पढ़ाई में नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को शामिल करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. वहीं सपा और बसपा ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर भाजपा का राजनीतिक एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है.

ये भी पढ़ें- अयोध्या: भगवान राम की ऊंची प्रतिमा के लिए जमीन फाइनल, जानिए कहां लगेगी मूर्ति

विश्वविद्यालय ने बताया सामान्य परिवर्तन
लखनऊ विश्वविद्यालय का हालांकि दावा है कि पाठ्यक्रम में परिवर्तन का प्रस्ताव बेहद सामान्य है. राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों को देश के संविधान में होने वाले बदलाव की जानकारी भी दी जाती है. संविधान के अलग-अलग आयाम भी पढ़ाए जाते हैं. ऐसे में अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना स्वाभाविक और सामान्य प्रक्रिया है. विश्वविद्यालय के प्रवक्ता प्रोफेसर दुर्गेश सक्सेना ने बताया कि राजनीति विज्ञान विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया है. इसे अभी अकादमी परिषद में पारित होना है. उसके बाद विश्वविद्यालय की प्रशासनिक परिषद फैसला करेगी.

ये भी पढ़ें- यूपी स्थापना दिवस- बोले सीएम योगी 'जिसका कोई नहीं उसका शासन होगा'

मायावती ने जताया विरोध

  • सीएए पर बहस आदि तो ठीक है लेकिन कोर्ट में इसपर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अतिविवादित व विभाजनकारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित। बीएसपी इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस ले लेगी।

    — Mayawati (@Mayawati) January 24, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">
लखनऊ विश्वविद्यालय के इस प्रस्ताव की भनक मिलने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है. विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले को अनुचित करार देते हुए बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने ट्वीट कर कहा कि सीएए पर बहस आदि तो ठीक है लेकिन कोर्ट में इस पर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अति विवादित व विभाजनकारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित है. बसपा इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस लेगी.
  • सुनने में आया है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में CAA को रखा जा रहा है. अगर यही हाल रहा तो शीघ्र मुखिया जी की जीवनी भी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाएगी व लेक्चर की जगह उनके प्रवचन होंगे और बच्चों की शिक्षा में उनकी चित्र-कथा भी शामिल की जाएगी. pic.twitter.com/6UABUeM1du

    — Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 24, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अखिलेश यादव ने कसा तंज
मायावती के साथ ही समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर विरोध जाहिर किया है. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा 'सुनने में आया है कि सीएए लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में रखा जा रहा है, अगर यही हाल रहा तो शीघ्र मुखिया जी की जीवनी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाएगी. लेक्चर की जगह उनके प्रवचन होंगे और बच्चों की शिक्षा में उनकी चित्र कथा भी शामिल की जाएगी'

लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को लखनऊ विश्वविद्यालय का राजनीति विज्ञान विभाग अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है. विश्वविद्यालय की इस कवायद ने उत्तर प्रदेश के विपक्षी राजनीतिक दलों को भड़का दिया है. बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने सरकार बनने पर पाठ्यक्रम में बदलाव को खारिज करने का ऐलान किया है. वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भाजपा पर करारा व्यंग्य किया है.

नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 पर उत्तर प्रदेश में हो रही राजनीति का दायरा शिक्षण संस्थानों तक फैलता दिख रहा है. उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित लखनऊ विश्वविद्यालय ने राजनीति विज्ञान की पढ़ाई में नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को शामिल करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. वहीं सपा और बसपा ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर भाजपा का राजनीतिक एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है.

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विश्वविद्यालय ने बताया सामान्य परिवर्तन
लखनऊ विश्वविद्यालय का हालांकि दावा है कि पाठ्यक्रम में परिवर्तन का प्रस्ताव बेहद सामान्य है. राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों को देश के संविधान में होने वाले बदलाव की जानकारी भी दी जाती है. संविधान के अलग-अलग आयाम भी पढ़ाए जाते हैं. ऐसे में अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना स्वाभाविक और सामान्य प्रक्रिया है. विश्वविद्यालय के प्रवक्ता प्रोफेसर दुर्गेश सक्सेना ने बताया कि राजनीति विज्ञान विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया है. इसे अभी अकादमी परिषद में पारित होना है. उसके बाद विश्वविद्यालय की प्रशासनिक परिषद फैसला करेगी.

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मायावती ने जताया विरोध

  • सीएए पर बहस आदि तो ठीक है लेकिन कोर्ट में इसपर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अतिविवादित व विभाजनकारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित। बीएसपी इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस ले लेगी।

    — Mayawati (@Mayawati) January 24, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">
लखनऊ विश्वविद्यालय के इस प्रस्ताव की भनक मिलने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है. विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले को अनुचित करार देते हुए बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने ट्वीट कर कहा कि सीएए पर बहस आदि तो ठीक है लेकिन कोर्ट में इस पर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अति विवादित व विभाजनकारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित है. बसपा इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस लेगी.
  • सुनने में आया है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में CAA को रखा जा रहा है. अगर यही हाल रहा तो शीघ्र मुखिया जी की जीवनी भी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाएगी व लेक्चर की जगह उनके प्रवचन होंगे और बच्चों की शिक्षा में उनकी चित्र-कथा भी शामिल की जाएगी. pic.twitter.com/6UABUeM1du

    — Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 24, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अखिलेश यादव ने कसा तंज
मायावती के साथ ही समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर विरोध जाहिर किया है. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा 'सुनने में आया है कि सीएए लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में रखा जा रहा है, अगर यही हाल रहा तो शीघ्र मुखिया जी की जीवनी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाएगी. लेक्चर की जगह उनके प्रवचन होंगे और बच्चों की शिक्षा में उनकी चित्र कथा भी शामिल की जाएगी'

Intro:
up_luc_04_caa_in_lucknow_university_vis_7203778

उपरोक्त स्लग की फीड रैप से भेजी है।




लखनऊ. नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को लखनऊ विश्वविद्यालय का राजनीति विज्ञान विभाग अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है . विश्वविद्यालय की इस कवायद ने उत्तर प्रदेश के विपक्षी राजनीतिक दलों को भड़का दिया है बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने सरकार बनने पर पाठ्यक्रम में बदलाव को खारिज करने का ऐलान किया है तो समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भाजपा पर करारा व्यंग किया है.


Body:नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 पर उत्तर प्रदेश में हो रही राजनीति का दायरा शिक्षण संस्थानों तक फैलता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित लखनऊ विश्वविद्यालय ने राजनीति विज्ञान की पढ़ाई में नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 को शामिल करने का प्रस्ताव तैयार किया तो सपा और बसपा ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर भाजपा का राजनीतिक एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है। लखनऊ विश्वविद्यालय का हालांकि दावा है के पाठ्यक्रम में परिवर्तन का प्रस्ताव बेहद सामान्य है । राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों को देश के संविधान में होने वाले बदलाव की जानकारी भी दी जाती है संविधान के अलग अलग आयाम भी पढ़ाए जाते हैं ऐसे में अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना स्वाभाविक और सामान्य प्रक्रिया है । विश्वविद्यालय के प्रवक्ता प्रोफेसर दुर्गेश सक्सेना ने बताया कि राजनीति विज्ञान विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया है इसे अभी अकादमी परिषद में पारित होना है उसके बाद विश्वविद्यालय की प्रशासनिक परिषद फैसला करेगी ।
लखनऊ विश्वविद्यालय के इस प्रस्ताव की भनक मिलने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले को अनुचित करार देते हुए बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने ट्वीट कर कहा -सीएए पर बहस आदि तो ठीक है लेकिन कोर्ट में इस पर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अति विवादित व विभाजन कारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित है। बसपा इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस लेगी ।"


मायावती के साथ ही समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर विरोध जाहिर किया है । उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा -"सुनने में आया है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में रखा जा रहा है, अगर यही हाल रहा तो शीघ्र मुखिया जी की जीवनी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाएगी ।लेक्चर की जगह उनके प्रवचन होंगे और बच्चों की शिक्षा में उनकी चित्र कथा भी शामिल की जाएगी।"

सपा -बसपा की ओर से तीखा विरोध होने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन बचाव की मुद्रा में है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार ने मीडिया से कहा है कि
प्रस्ताव के प्रथम चरण में ही हल्ला मचाया जा रहा है। अभी पूरे मामले पर विचार होना बाकी है। विश्वविद्यालय के शिक्षक व विद्यार्थी को तय करने का अधिकार और मौका मिलना चाहिए कि आखिर वह पढ़ना क्या चाहते हैं।


वॉइसओवर/ अखिलेश तिवारी

9653003408


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