लखनऊ : पर्यावरण में मौजूद धूल और कण आंखों में जाते हैं, जिसकी वजह से आंखों में जलन होती है और आंखें लाल पड़ (Air Pollution In Lucknow) जाती हैं. इस समय मौसम में परिवर्तन हो रहा है. सर्दियों की शुरुआत हो रही है. गुलाबी ठंड शुरू हो चुकी है. इस मौसम में तेजी से प्रदूषण स्तर बढ़ता है. प्रदूषण जब बढ़ता है तो पर्यावरण में तमाम रासायनिक पदार्थ वाले धूल-कण भी उड़ते हैं. यह जाकर आंखों में दिक्कत पैदा कर सकता है. इस समय अस्पताल की ओपीडी में 10 से 15 फीसदी प्रदूषण से दिक्कत वाले मरीज आ रहे हैं.
शहरों में वायु प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है. बढ़ता प्रदूषण लोगों की सेहत के लिए काफी हानिकारक बनता जा रहा है. इस जहरीली हवा से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वायु प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों पर ही नहीं, बल्कि आपकी आंखों पर भी पड़ा रहा है. ऐसे में जानते हैं कि प्रदूषण आपकी आंखों के लिए किस तरह से नुकसान पहुंचाता है और अगर आपको भी हर रोज प्रदूषण का सामना करना पड़ता है तो हम आपको बताते हैं कि आप किस तरह से आंखों पर पड़ने वाले प्रदूषण के प्रभाव को कम कर सकते हैं.
सिविल अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अख्तर ने बताया कि 'अस्पताल की ओपीडी में वायु प्रदूषण से प्रभावित मरीज अस्पताल की ओपीडी में अधिक आ रहे हैं. इस समय वायु प्रदूषण से प्रभावित मरीजों की संख्या अस्पताल की ओपीडी में अधिक है. ज्यादातर जो मरीज आ रहे हैं उनकी आंखों में इंफेक्शन है जोकि प्रदूषण के कारण हुआ है. इसलिए जब भी बाहर निकलें तो चश्मे का इस्तेमाल जरूर करें, ताकि धूल के कण आंखों में न प्रवेश करें. रोजाना इस समय अस्पताल की ओपीडी में लगभग 200 मरीजों की ओपीडी चलती है, जिसमें 10 से 15 फीसदी प्रदूषण से आंखों में दिक्कत के मरीज आ रहे हैं, जबकि पहले इससे बहुत ही कम मरीज वायु प्रदूषण के कारण आंखों में समस्या के साथ आते थे.'
डॉ. अख्तर ने बताया कि 'दरअसल, प्रदेश के कई जिलों का वायु प्रदूषण का स्तर सर्दियों में अधिक बढ़ जाता है. ऐसे में लोगों की आंखों पर भी इस जहरीली हवा से नुकसान हो रहा है, जबकि प्रदूषण को सांस जैसी बीमारियों तक ही सीमित रखा जाता है. उन्होंने कहा कि प्रदूषण से आंखों से संबंधित बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है. प्रदूषण के कारण आंखों में सूखेपन और एलर्जी की समस्या ज्यादा देखी जा रही है. उन्होंने कहा कि आंखों के मॉइस्चराइजेशन और पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में आंसू का उत्पादन न होने की वजह से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या हो सकती है. वायु प्रदूषण, आंखों की कोशिकाओं को प्रभावित कर देता है, जिससे आंखों में सूखापन, लालिमा, दर्द, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता जैसी समस्या बढ़ जाती है. बता दें कि प्रदूषित हवा में नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे तत्व होने की वजह से आंखों को ज्यादा नुकसान हो रहा है.'
प्रदूषण से परेशान मरीज पहुंच रहे अस्पताल : वहीं बलरामपुर अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि 'वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण आंखों की रोशनी चले जाने जैसी गंभीर समस्याओं का भी खतरा हो सकता है. कई सर्वे में सामने आ चुका है कि नॉर्थ इंडिया में एक बड़े वर्ग को DED यानी (ड्राई आई डिजीज) होने का अंदाजा है, लेकिन साउथ इंडिया में ये आंकड़ा काफी कम है. इसमें भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को शहरी क्षेत्र के लोगों से काफी कम दिक्कत है. ऐसे में माना जा रहा है कि धुआं, कॉन्टेक्स लैंस, वीडीटी यूज की वजह से ऐसा हो रहा है. यह सभी दिक्कतें प्रदूषण की वजह से वातावरण में मौजूद कारकों से हैं. उन्होंने कहा कि जहरीली हवा से आंखों को बचाकर रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए कुछ उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इन दिनों वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है. गर्मी के दिन हैं. ऐसे में धूल के कण वातवरण में रहते हैं और जब भी कोई व्यक्ति बाहर निकलता है या फिर दो पहिया वाहन का इस्तेमाल करते हुए लंबे सफर पर जाते हैं तो आंखों में सीधे धूल कण जाते हैं. आंखों में धूल जाने के कारण आंखों से पानी आना, आंखों में जलन होना यह समस्या मरीजों को होने लगती है.'