लखनऊ : राज्य सरकार के व्यवहार से आहत अधिवक्ता शुक्रवार को पूरे प्रदेश में विरेाध दिवस मनाएंगे. इसके लिए अधिवक्ता अपने-अपने जनपदों में जिला प्रशासन के अधिकारियों को ज्ञापन-पत्र सौपेंगे. कहा गया है कि यदि सरकार अधिवक्ताओं को विश्वास में लेकर अविलंब उपचारात्मक कदम नहीं उठाती, तो उनके सामने सरकार के खिलाफ चरणबद्ध आन्दोलन छेड़ने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाएगा.
यह फैसला यूपी बार काउंसिल के अध्यक्ष श्रीष कुमार मेहरेात्रा के नेतृत्व में आयोजित की गई एक बैठक में गुरूवार को लिया गया. हाईकेार्ट की लखनऊ खंडपीठ की अवध बार एसोसिएशन सहित राजधानी के अन्य बार एसोसिएशनों ने बार काउसिंल के समर्थन की घोषणा की है. काउंसिल इस मुद्दे पर 22 मई को आगे की रणनीति तय करेगी. करीब ढाई लाख अधिवक्ताओं का नेतृत्व करने वाली यूपी बार काउंसिल के सदस्य सचिव अजय कुमार शुक्ला द्वारा काउंसिल के निर्णय की प्रति जारी की गई है.
इसमें काउसिंल ने कहा है कि अधिवक्ताओं को ऑफिसर आफ द कोर्ट माना जाता है, अतः सरकार उन पर कोई अमर्यादित टिप्पणी न करे. कहा गया कि अधिवक्ता न्याय प्रणाली के अभिन्न व अविभाज्य अंग हैं, जो जनता के हक की आवाज अदालतों तक पहुंचाने की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं.
बार काउसिंल के प्रस्ताव में कहा गया कि प्रदेश सरकार के विशेष सचिव प्रभुल्ल कमल द्वारा 14 मई को जारी शासनादेश अधिवक्ताओं को अराजक तत्व बताने वाला था. उनके खिलाफ एकतरफा क्षेत्राधिकार विहीन अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की अनुशंसा से प्रदेश के अधिवक्ताओं में गुस्सा है. कहा गया कि विशेष सचिव का उक्त पत्र कानून के राज में बाधक है व अधिवक्ताओं के प्रति बदले की भावना को दर्शाता है. बार काउंसिल ने कहा कि उक्त 14 मई का शासनादेश वाला पत्र अधिवक्ताओं के दबाव में सरकार ने तुंरत वापस कर लिया. लेकिन एक अन्य पत्र अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने 15 मई को जारी कर दिया. अवस्थी के पत्र में अदालत परिसरों में अधिवक्ताओं के आचरण पर टिप्पणी की गई है.
इसे पढ़ें- शाबाश निकहत! विश्व चैंपियन बनीं निकहत जरीन, थाईलैंड की मुक्केबाज को हरा जीता गोल्ड