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लखनऊ: धड़ल्ले से बिक रहा एसिड, लोगों के लिए साबित हो रहा जानलेवा

अधिकारियों की लापरवाही के चलते राजधानी सहित पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से एसिड बिक रहा है, जिसका प्रयोग अपराधी हथियार के रुप में कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में एसिड अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता ने आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला से की बातचीत.
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Published : Jun 28, 2019, 9:04 PM IST

लखनऊ: अपराधों पर लगाम लगाने के लिए कई नियम और कानून बनाए गए हैं, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. राजधानी में अपराधी इतने बेखौफ हैं कि दिनदहाड़े बच्चे को तेजाब पिलाने की घटना को अंजाम दे रहे हैं. अधिकारियों की लापरवाही से पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में एसिड अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2014 में 42, 2015 में 55 और 2016 में 57 एसिड अटैक की घटनाओं को अंजाम दिया गया है.

ईटीवी भारत संवाददाता ने आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला से की बातचीत.

आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला एसिड अटैक पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन जारी की थी. इसके तहत निर्देशित किया गया था कि एसिड की बिक्री और खरीद के रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना है, जिससे ऐसी घटनाएं होने पर पता किया जा सके कि किन लोगों ने इसे खरीदा था.

वहीं 2015-16 में राज्य सरकार की ओर सभी जिलों के डीएम को निर्देशित किया गया था कि वह जिले में एसिड की बिक्री का लेखा-जोखा उपलब्ध रखें. हर महीने की सात तारीख को उत्तर प्रदेश गृह विभाग की वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्ध कराएं, लेकिन इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया.

एसिड की बिक्री मजिस्ट्रेट या औषधि नियंत्रक से प्राप्त लाइसेंस के बगैर नहीं की जा सकती. एसिड बिक्री के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता रखी गई है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते राजधानी सहित पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से एसिड बिक रहा है.

लखनऊ: अपराधों पर लगाम लगाने के लिए कई नियम और कानून बनाए गए हैं, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. राजधानी में अपराधी इतने बेखौफ हैं कि दिनदहाड़े बच्चे को तेजाब पिलाने की घटना को अंजाम दे रहे हैं. अधिकारियों की लापरवाही से पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में एसिड अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2014 में 42, 2015 में 55 और 2016 में 57 एसिड अटैक की घटनाओं को अंजाम दिया गया है.

ईटीवी भारत संवाददाता ने आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला से की बातचीत.

आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला एसिड अटैक पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन जारी की थी. इसके तहत निर्देशित किया गया था कि एसिड की बिक्री और खरीद के रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना है, जिससे ऐसी घटनाएं होने पर पता किया जा सके कि किन लोगों ने इसे खरीदा था.

वहीं 2015-16 में राज्य सरकार की ओर सभी जिलों के डीएम को निर्देशित किया गया था कि वह जिले में एसिड की बिक्री का लेखा-जोखा उपलब्ध रखें. हर महीने की सात तारीख को उत्तर प्रदेश गृह विभाग की वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्ध कराएं, लेकिन इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया.

एसिड की बिक्री मजिस्ट्रेट या औषधि नियंत्रक से प्राप्त लाइसेंस के बगैर नहीं की जा सकती. एसिड बिक्री के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता रखी गई है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते राजधानी सहित पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से एसिड बिक रहा है.

Intro:एंकर

लखनऊ। अपराधों पर लगाम लगाने के लिए जिम्मेदार भले ही बड़ी-बड़ी बातें करते हो बड़ी घटनाओं के बाद सक्रियता दिखाते हुए बड़े-बड़े नियम और कानून बना दिए जाते हैं लेकिन अपराधों पर लगाम लगाने के पीछे काम करने वाले हमारे सिस्टम की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती हो। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपराध इतने बेखौफ हैं कि दिनदहाड़े अपराधी बच्चे को तेज़ाब पिलाने की घटना को अंजाम देते हैं घटना के बाद भले ही पुलिस सक्रियता दिखाते हुए गिरफ्तारी कर रही हो लेकिन इस घटना के बाद पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में है घटना के बाद सवाल यह है कि आखिर अपराधियों को इतनी आसानी से जहरीला तेजाब उपलब्ध कैसे हो जाता है जबकि एसिड बिक्री को लेकर हमारे पास कठोर नियम और कानून मौजूद हैं।

हमारी पड़ताल में पता चला कि हमारे पास नियम और कानूनों की कोई कमी नहीं है लेकिन हमारे जिम्मेदार अधिकारियों की कमजोर इच्छाशक्ति के चलते यह नियम जमीन पर नहीं उतर पाते हैं जिसका पूरा फायदा अपराधियों को मिलता है। अधिकारियों के स्तर पर यह लापरवाही तब है जब पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में एसिड अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई तो 2014 में 42, 2015 में 55 और 2016 में 57 एसिड अटैक की घटनाओं को अंजाम दिया गया है जिससे साबित होता है कि प्रदेश में एसिड अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रहे हैं।


Body:विवो

ये हालात तब है जब हमारे पास एसिड अटैक को रोकने के लिए पर्याप्त कानून व गाइडलाइन उपलब्ध है आरटीआई एक्टिविस्ट दुर्गा प्रसाद शुक्ला जो कि पिछले लंबे समय से एसिड अटैक पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं उनका कहना है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन जारी की थी जिसके तहत निर्देशित किया गया था कि एसिड की बिक्री व खरीद के रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना है जिससे ऐसी घटनाओं पर तुरंत पता किया जा सके कि किन लोगों ने इसे खरीदा था।

वही 2015 16 में स्टेट गवर्नमेंट की ओर से एक जीओ जारी किया गया था जिसके तहत उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को निर्देशित किया गया था कि वह जिले में एसिड की बिक्री का लेखा-जोखा उपलब्ध रखें और हर महीने की 7 तारीख को उत्तर प्रदेश गृह विभाग की वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्ध कराएं लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्टेट गवर्नमेंट के निर्देशों के बावजूद भी शायद ही प्रदेश के किस जिले में इन निर्देशों का पालन किया जाता है।

पिछले दिनों इस संदर्भ में जब आईटीआई मांगी गई तो राजधानी लखनऊ का सूचना विभाग पिछले वर्षों में बिके एसिड व खरीदारों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सका। जिसको लेकर जन सूचना अधिकारी कार्यालय जिला अधिकारी के ऊपर ₹25000 का जुर्माना भी लगाया गया।





Conclusion:पड़ताल में पता चला है कि राजधानी लखनऊ में किराना दुकानों पर आसानी से टॉयलेट क्लीनर के नाम पर एसिड उपलब्ध हो जाता है शहर के इर्द-गिर्द इलाकों में तो टॉयलेट क्लीनर के रूप में एसिड के साथ साथ जहरीला तेजा भी बोतलों में भरकर बेचा जाता है। वही अपराधी बैटरी का काम करने वाली दुकानों से आसानी से जहरीला तेजाब प्राप्त कर लेते हैं और इसी के तेजाब का हथियार के तौर पर प्रयोग किया जाता है।


नियमतः एसिड की बिक्री मजिस्ट्रेट या औषधि नियंत्रक से प्राप्त लाइसेंस के बगैर नहीं की जा सकती। एसिड बिक्री के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता इसीलिए रखी गई है ताकि एसिड बिक्री पर निगरानी रखी जा सके लेकिन अधिकारियों की कमजोर इच्छाशक्ति के चलते राजधानी लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से एसिड बिक रहा है।

संवाददाता
प्रशांत मिश्रा
90 2639 25 26
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