लखनऊ: राजधानी लखनऊ के आशियाना स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर नरेंद्र कुमार और उनकी टीम ने अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "एनवायर्नमेंटल साइंस एंड पॉल्युशन रिसर्च" में शोध पत्र प्रकाशित किया है, जिसमें कोरोना वायरस, उसके संक्रमण पर पर्यावरण कारकों के प्रभाव का विस्तृत अध्ययन किया गया है.
31 दिसंबर 2019 को चीन ने दी कोविड की जानकारी
जब दुनिया 2020 के आगमन पर जश्न मनाने की तैयारी में थी, तभी चीन के वुहान शहर में डॉक्टर ली वन लियांग ने आशंका जताई कि उनके आपातकालीन विभाग में सार्स बीमारी के नये स्ट्रेन कोविड-19 ने दस्तक दे दी है. 31 दिसंबर 2019 को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस विषाणु की जानकारी दी. इसके तुरंत बाद थाईलैंड, जापान, और कोरिया ने अपने यहां इस विषाणु की आशंका जाहिर की. धीरे-धीरे इस विषाणु के संक्रमण के मामले विश्व के दूसरे देशों में भी आने लगे. 11 मार्च 2020 को विश्व स्वस्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया. इस शोध पत्र में इस महामारी को वैश्विक रूप से फैलने में पर्यावरणीय कारकों की क्या भूमिका है, उसका उल्लेख किया गया है. विषाणु के संक्रमण में पर्यावरणीय कारक मुख्यतः क्षेत्रीय जलवायु, तापमान, आद्रता, हवा की गति, उसकी दिशा एवं जल की गुणवत्ता के क्या प्रभाव हो सकते हैं. मनुष्य का लिंग, रक्त समूह, जनसंख्या घनत्व पर कितना जोखिम है. उसको समझने की कोशिश की गयी है.
समशीतोष्ण क्षेत्रों में ज्यादा पनपता है वायरस
पर्यावरण कारकों में विशिष्ट आद्रता और औसत तापमान का प्रभाव विश्व के कई क्षेत्रों में पाया गया है. प्रायः यह देखा गया है कि समशीतोष्ण क्षेत्रों में, सामान्यतः ठण्ड के मौसम में जब तापमान कम हो और सापेक्षिक आद्रता ज्यादा हो, तब कोरोना वायरस एयरोसोल या विविक्त कण (जिनका व्यास 5 माइक्रोमीटर से कम) उनके साथ चिपककर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं. वहीं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बरसात के मौसम में जब अधिक तापमान और ज्यादा आद्रता हो, तब विषाणु का हस्तांतरण संभव है. अगर इन दोनों क्षेत्रों की तुलना करें तो यह विषाणु समशीतोष्ण जलवायु में ज्यादा दिन तक जिन्दा रह सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोरोना वायरस एयरोसोल या विविक्त कणों में 3 घंटे या उससे ज्यादा देर तक जिन्दा रह सकते हैं और हवा में 1 से 3 मीटर तक छींकने पर फ़ैल सकते हैं. इसी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी को मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया, जिससे कि सामान्य आदमी इस विषाणु के संक्रमण से बचा रहे, जब भी वह किसी संक्रमित व्यक्ति की चपेट में आये.
A रक्त समूह में सबसे ज्यादा संक्रमण
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, कोरोना वायरस एल्यूमीनियम, धातु, चश्मा, प्लास्टिक आदि जैसे ठोस सतहों पर कई घंटों तक जीवित रह सकते हैं. इसीलिए इस प्रकार की सतहों से संक्रमण का खतरा अस्पतालों, जहां पर संक्रमित व्यक्ति का इलाज चल रहा हो, वहां साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें. जमे हुए भोजन और पैकेजिंग सतह वायरस की उपस्थिति का संकेत देते हैं. संक्रमण की गंभीरता के साथ रक्त समूहों में A रक्त समूह में सबसे ज्यादा संक्रमण देखा गया है. O रक्त समूह में सबसे कम संक्रमण होता है. स्मोकिंग करने वाले व्यक्तियों के लिए कोरोना वायरस सबसे खतरनाक है. महिलाओं की तुलना में पुरुषों में जोखिम अधिक होता है, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो.