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लखनऊ: महज 12 साल की उम्र से शुरू किया था ढोल बजाना, लड़कियों के लिए मिसाल है यह शख्सियत!

ढोल की थाप पर लोगों को नाचते तो आपने खूब देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी किसी लड़की को ढोल बजाते हुए देखा है. शायद ही आपने कभी किसी ऐसी लड़की के बारे में सुना होगा या देखा होगा. हम आपको बताएंगे ऐसी एक लड़की के बारे में जो बड़े-बड़े मंचों पर ढोल बजाती हैं. आज वह दूसरी लड़कियों के लिए भी किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं.

12 साल की उम्र से शुरू किया था ढोल बजाना
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Published : Nov 25, 2019, 3:23 PM IST

लखनऊ: राजधानी में 25 नवंबर को होने वाले 'इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वॉयलेंस अगेंस्ट वूमेन' पर पंजाब से आई जहांगीत ने अपने ढोल बजाने की कला से लोगों को दीवाना बना दिया. वह उन तमाम लड़कियों के लिए मिसाल हैं जो अपने इस तरह के अनोखे सपनों को जीना चाहती हैं.

12 साल की उम्र से शुरू किया था ढोल बजाना

21 साल की जहांगीत ने जीता सबका दिल
वह शख्सियत हैं जहांगीत, जो 21 साल की हैं और भारत की इकलौती ढोल बजाने वाली स्टेज परफॉर्मर हैं. इन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन करके सभी को अपना दीवाना बना दिया. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने न केवल इस सफर के बारे में बात की साथ ही 25 नवंबर को होने वाले 'इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वॉयलेंस अगेंस्ट वूमेन' पर भी समाज की हर महिला को अपना संदेश दिया.

सुनने पड़े ताने लेकिन नहीं मानी हार
ये काम करना जहांगीत के लिए आसान नहीं था. उन्हें भी बाकी लड़कियों की तरह रोका-टोका गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि उनका इरादा और पक्का हो गया. इस पक्के इरादे के साथ उन्होंने ढोल बजाना शुरू किया और अब वो इसी की वजह से पूरे देश में अपनी पहचान बना रही हैं.

इसे भी पढ़ें:- जितनी बढ़ रही इन फूलों की खुशबू, उतना बढ़ रहा किसानों का व्यापार

12 वर्ष की उम्र में ही शुरू किया ढोल बजाना
जहांगीत महज 12 वर्ष की उम्र से ही ढोल बजाना शुरू कर चुकी हैं इस बाबत वह कहती हैं कि 'मैं पंजाब से हूं और पंजाबियों की रग रग में ढोल और नगाड़े की धुन बजती रहती है अगर यह न हो तो पंजाबियों को कहीं भी चैन नहीं पड़ता. मेरी भी रगों में ढोल लगातार बजता रहता था. जब 12 वर्ष की उम्र में मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं ढोल बजाना चाहती हूं उन्होंने कभी कोई ना नुकुर नहीं किया पर मुझे समाज के उस चेहरे को देखने का मौका मिला जो महज 12 वर्ष की उम्र में देखना मेरे लिए मुमकिन नहीं था'.

काफी मशक्कत करनी पड़ी एक गुरु ढूंढने में

जहांगीत कहती हैं कि 'समाज में एक सोच विकसित हो चुकी है कि ढोल बजाना लड़कों का काम है और लड़कियां इसे नहीं कर सकतीं. यही वजह थी कि सीखने वाला तो तैयार था लेकिन सिखाने वालों में से कोई सामने नहीं आ रहा था. सभी लोगों को यह लगता था कि एक लड़की को ढोल सिखाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यहां हमारी परंपरा को आगे नहीं लेकर जा सकती, मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी एक गुरु ढूंढने में जो मुझे ढोल सिखा सके. मैं अभी भी सीख ही रही हूं और चाहती हूं कि इतना सीख लूं कि सुनने वाले यह न कह सके कि मैं किसी से कम हूं'.

मेरे माता पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया

वह कहती हैं कि 'जब मैंने स्टेज पर ढोल बजाना शुरू किया तो लोग मुझे बड़ी अजीब नजरों से देखते थे उन्हें लगता था कि यह मेरा काम नहीं है जो मैं कर रही हूं या मुझे नहीं करना चाहिए क्योंकि ढोल बजाना लड़कों का काम है और उन्हीं पर फिट बैठता है. मैं इस बात की बेहद शुक्रगुजार हूं कि इस मौके पर मेरे माता पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया और मेरे गुरु का आशीर्वाद भी हमेशा मुझ पर बना रहा'. जहांगीत कहती है कि मैं चाहती हूं कि पितृसत्तात्मक सोच से आगे बढ़कर भी जो जिंदगी है लोग उसे जियें क्योंकि मैं भी उसे जी रही हूं और मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार मिल रहा है, आशीर्वाद मिल रहा है इसलिए मैं आगे बढ़ती जा रही हूं.

हर लड़की अपने सपनों की ओर बढ़ाए कदम

हर साल 25 नवंबर को यूनाइटेड नेशंस के द्वारा महिलाओं पर होने वाली हिंसा के प्रति आवाज उठाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस पर जहांगीत कहती हैं कि जैसे मैं आगे बढ़ी हूं वैसे ही मैं चाहती हूं कि हर लड़की अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाए. अपने चाहने वालों के सपोर्ट के साथ हर उस मुकाम तक पहुंचे जहां वह पहुंचना चाहती है क्योंकि हमें दबाने की कोशिश तो हर कोई कर सकता है पर अपना सपना पूरा करना और अपने मुकाम तक पहुंचना हमारा खुद का काम है. यह दिन भी हमारे लिए है और हमें महिलाओं पर होने वाली हर हिंसा के खिलाफ सामने आना होगा.

लखनऊ: राजधानी में 25 नवंबर को होने वाले 'इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वॉयलेंस अगेंस्ट वूमेन' पर पंजाब से आई जहांगीत ने अपने ढोल बजाने की कला से लोगों को दीवाना बना दिया. वह उन तमाम लड़कियों के लिए मिसाल हैं जो अपने इस तरह के अनोखे सपनों को जीना चाहती हैं.

12 साल की उम्र से शुरू किया था ढोल बजाना

21 साल की जहांगीत ने जीता सबका दिल
वह शख्सियत हैं जहांगीत, जो 21 साल की हैं और भारत की इकलौती ढोल बजाने वाली स्टेज परफॉर्मर हैं. इन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन करके सभी को अपना दीवाना बना दिया. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने न केवल इस सफर के बारे में बात की साथ ही 25 नवंबर को होने वाले 'इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वॉयलेंस अगेंस्ट वूमेन' पर भी समाज की हर महिला को अपना संदेश दिया.

सुनने पड़े ताने लेकिन नहीं मानी हार
ये काम करना जहांगीत के लिए आसान नहीं था. उन्हें भी बाकी लड़कियों की तरह रोका-टोका गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि उनका इरादा और पक्का हो गया. इस पक्के इरादे के साथ उन्होंने ढोल बजाना शुरू किया और अब वो इसी की वजह से पूरे देश में अपनी पहचान बना रही हैं.

इसे भी पढ़ें:- जितनी बढ़ रही इन फूलों की खुशबू, उतना बढ़ रहा किसानों का व्यापार

12 वर्ष की उम्र में ही शुरू किया ढोल बजाना
जहांगीत महज 12 वर्ष की उम्र से ही ढोल बजाना शुरू कर चुकी हैं इस बाबत वह कहती हैं कि 'मैं पंजाब से हूं और पंजाबियों की रग रग में ढोल और नगाड़े की धुन बजती रहती है अगर यह न हो तो पंजाबियों को कहीं भी चैन नहीं पड़ता. मेरी भी रगों में ढोल लगातार बजता रहता था. जब 12 वर्ष की उम्र में मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं ढोल बजाना चाहती हूं उन्होंने कभी कोई ना नुकुर नहीं किया पर मुझे समाज के उस चेहरे को देखने का मौका मिला जो महज 12 वर्ष की उम्र में देखना मेरे लिए मुमकिन नहीं था'.

काफी मशक्कत करनी पड़ी एक गुरु ढूंढने में

जहांगीत कहती हैं कि 'समाज में एक सोच विकसित हो चुकी है कि ढोल बजाना लड़कों का काम है और लड़कियां इसे नहीं कर सकतीं. यही वजह थी कि सीखने वाला तो तैयार था लेकिन सिखाने वालों में से कोई सामने नहीं आ रहा था. सभी लोगों को यह लगता था कि एक लड़की को ढोल सिखाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यहां हमारी परंपरा को आगे नहीं लेकर जा सकती, मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी एक गुरु ढूंढने में जो मुझे ढोल सिखा सके. मैं अभी भी सीख ही रही हूं और चाहती हूं कि इतना सीख लूं कि सुनने वाले यह न कह सके कि मैं किसी से कम हूं'.

मेरे माता पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया

वह कहती हैं कि 'जब मैंने स्टेज पर ढोल बजाना शुरू किया तो लोग मुझे बड़ी अजीब नजरों से देखते थे उन्हें लगता था कि यह मेरा काम नहीं है जो मैं कर रही हूं या मुझे नहीं करना चाहिए क्योंकि ढोल बजाना लड़कों का काम है और उन्हीं पर फिट बैठता है. मैं इस बात की बेहद शुक्रगुजार हूं कि इस मौके पर मेरे माता पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया और मेरे गुरु का आशीर्वाद भी हमेशा मुझ पर बना रहा'. जहांगीत कहती है कि मैं चाहती हूं कि पितृसत्तात्मक सोच से आगे बढ़कर भी जो जिंदगी है लोग उसे जियें क्योंकि मैं भी उसे जी रही हूं और मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार मिल रहा है, आशीर्वाद मिल रहा है इसलिए मैं आगे बढ़ती जा रही हूं.

हर लड़की अपने सपनों की ओर बढ़ाए कदम

हर साल 25 नवंबर को यूनाइटेड नेशंस के द्वारा महिलाओं पर होने वाली हिंसा के प्रति आवाज उठाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस पर जहांगीत कहती हैं कि जैसे मैं आगे बढ़ी हूं वैसे ही मैं चाहती हूं कि हर लड़की अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाए. अपने चाहने वालों के सपोर्ट के साथ हर उस मुकाम तक पहुंचे जहां वह पहुंचना चाहती है क्योंकि हमें दबाने की कोशिश तो हर कोई कर सकता है पर अपना सपना पूरा करना और अपने मुकाम तक पहुंचना हमारा खुद का काम है. यह दिन भी हमारे लिए है और हमें महिलाओं पर होने वाली हर हिंसा के खिलाफ सामने आना होगा.

Intro:लखनऊ। भारत में एक सोच चलती है और उस सोच के आगे बड़े-बड़े लोग भी कुछ नहीं बोल पाते यह सोच पुरुष प्रधान समाज में पितृसत्तात्मक सोच के नाम से जानी जाती है इस समाज में ही यदि इस सोच के खिलाफ कोई काम करता है तो उसे तमाम तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती है लेकिन इन यात्राओं से ऊपर उठकर जो अपने मुकाम को हासिल करता है फिर उसे पूरी दुनिया सर आंखों पर बिठा देती है। एक ऐसी ही शख्सियत का नाम है जहांगीत जो 21 साल की है और भारत की इकलौती ढोल बजाने वाली लड़की है। जहां गीत ने ईटीवी भारत से एक खास बातचीत की। उन्होंने न केवल इस सफर के बारे में बात की और साथ ही 25 नवंबर को होने वाले 'इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वायलेंस अगेंस्ट वूमेन' पर भी हमारे समाज में रहे रही हर महिला को अपना संदेश दिया।


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जहांगीत महज 12 वर्ष की उम्र से ही ढोल बजाना शुरू कर चुकी है इस बाबत वह कहती हैं कि मैं पंजाब से हूं और पंजाबियों की रग रग में ढोल और नगाड़े की धुन बजती रहती है अगर यह न हो तो पंजाबियों को कहीं भी चैन नहीं पड़ता। मेरी भी रगों में ही ढोल लगातार बजता रहता था। जब 12 वर्ष की उम्र में मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं ढोल बजाना चाहती हूं उन्होंने कभी कोई ना नुकुर नहीं किया पर मुझे समाज के उस चेहरे को देखने का मौका मिला जो महज 12 वर्ष की उम्र में देखना मेरे लिए मुमकिन नहीं था।

जहांगीत कहती हैं कि समाज में एक सोच विकसित हो चुकी है कि ढोल बजाना लड़कों का काम है और लड़कियां इसे नहीं कर सकती यही वजह थी कि सीखने वाला तो तैयार था लेकिन सिखाने वालों में से कोई सामने नहीं आ रहा था। सभी लोगों को यह लगता था कि एक लड़की को ढोल सिखाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यहां हमारी परंपरा को आगे नहीं लेकर जा सकती। मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी एक गुरु ढूंढने में जो मुझे ढोल सिखा सके। मैं अभी भी सीख ही रही हूं और चाहती हूं कि इतना सीख लूं कि सुनने वाले यह न कह सके कि मैं किसी से कम हूं।

वह कहती है कि जब मैं ने स्टेज पर ढोल बजाना शुरू किया समाज में खड़े होना शुरू किया तो लोग मुझे बड़ी अजीब नजरों से देखते थे उन्हें लगता था कि मेरा काम नहीं है जो मैं कर रही हूं या मुझे नहीं करना चाहिए क्योंकि ढोल बजाना लड़कों का काम है और उन्हीं पर फिट बैठता है। मैं इस बात की बेहद शुक्रगुजार हूं कि इस मौके पर मेरे माता पिता ने मेरा हमेशा साथ दिया और मेरे गुरु का आशीर्वाद भी हमेशा मुझ पर बना रहा।

जहांगीत कहती है कि मैं हर उस लड़की को आगे बढ़ते देखना चाहती हूं जो नहीं सपने देखती हूं मैं चाहती हूं कि पितृसत्तात्मक सोच से आगे बढ़कर भी जो जिंदगी है लोगों उसे जियें क्योंकि मैं भी उसे जी रही हूं और मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार मिल रहा है, आशीर्वाद मिल रहा है इसलिए मैं आगे बढ़ती जा रही हूं।


Conclusion:हर साल 25 नवंबर को यूनाइटेड नेशंस के द्वारा महिलाओं पर होने वाली हिंसा के प्रति आवाज उठाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस पर जहांगीत कहती हैं कि जैसे मैं आगे बढ़ी हूं वैसे ही मैं चाहती हूं कि हर लड़की अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाए। अपने चाहने वालों के सपोर्ट के साथ हर उस मुकाम तक पहुंचे जहां वह पहुंचना चाहती है क्योंकि हमें दबाने की कोशिश तो हर कोई कर सकता है पर अपना सपना पूरा करना और अपने मुकाम तक पहुंचना हमारा खुद का काम है। यह दिन भी हमारे लिए है और हमें महिलाओं पर होने वाली हर हिंसा के खिलाफ सामने आना होगा।

बाइट- जहांगीत सिंह, पंजाब

रामांशी मिश्रा
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