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MRI के भवन पर 95 लाख खर्च, लेकिन एमआरआई मशीन लगाना हुआ सिरदर्द, जाने पूरा मामला - मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

लखनऊ जिला अस्पताल में 95 लाख रुपये खर्च करके एमआरआई भवन बनाया गया था. लेकिन, भवन में अभी तक एमआरआई मशीन नहीं लगाई गई है. इस कारण मरीज को परेशानी हो रही है. मरीजों को प्राइवेट संस्थानों की तरफ भागना पड़ता है.

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MRI के भवन पर 95 लाख खर्च,
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Published : Apr 14, 2022, 5:10 PM IST

गोरखपुर: सीएम योगी के शहर का जिला अस्पताल खुद ही बीमार है. यहां कई सुविधाएं ऐसी हैं जो शिलान्यास होने के बाद भी परिसर में शुरू नहीं हो पाई हैं. जिला अस्पताल जैसी बड़ी संस्था में न्यूरो समेत कई स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं बैठते हैं, तो हृदय रोग विभाग की इको मशीन ही महीनों से खराब पड़ी है. अस्पताल के सीएमएस शासन से पत्राचार तो कर रहे हैं, लेकिन व्यवस्था है कि सुधरने का नाम नहीं ले रही.

वहीं सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि परिसर के अंदर करीब 95 लाख रुपये खर्च कर एमआरआई मशीन की स्थापना के लिए भवन बनाया गया था. लेकिन, इस भवन में अब तक मशीन स्थापित नहीं हो पाई है. जबकि इस भवन का शिलान्यास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(Chief Minister Yogi Adityanath) ने किया था. यहां आने वाले मरीजों को सुविधा का लाभ नहीं मिल रहा है. जिसका नतीजा है कि लोग परेशान होकर प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल कॉलेज की तरफ भागने को मजबूर हैं.

MRI के भवन पर 95 लाख खर्च, लेकिन एमआरआई मशीन लगाना हुआ सिरदर्द
स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी और सूत्रों के आधार पर यह बात स्पष्ट हुई है कि परिसर में स्थापित MRI भवन में मशीन इसलिए नहीं लगी है. क्योंकि इस पर करीब ₹70 करोड़ का खर्च आएगा और शासन इसे वहन नहीं करना चाहता. स्वास्थ्य विभाग के पास रिपोर्ट है कि जिला अस्पताल में MRI के प्रतिदिन करीब 10 से 12 मरीज ही पहुंचते हैं. ऐसी स्थिति में करोड़ों की मशीन के लगाने और उसके संचालन में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च करना विभाग नहीं चाहता है.
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च

अधिकारी इसके पीछे एक तर्क देते हैं कि यहां आने वाले मरीजों को बीआरडी मेडिकल कॉलेज MRI के लिए भेजा जाए. जहां पहले से एमआरआई मशीन स्थापित है. शहर से बीआरडी मेडिकल कॉलेज की दूरी 10 किलोमीटर है. यह किसी भी गरीब और आम मरीज को परेशान करने जैसी सोच है. आखिरकार सवाल उठता है कि वर्ष 2018 में यह भवन किस रिपोर्ट के आधार पर शुरू हुआ. क्या उस समय मरीजों की संख्या ज्यादा थी, जो अब घटकर कम हो गई है. 2021 में यह बनकर तैयार भी हो गया.

MRI के भवन पर 95 लाख खर्च
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च

इसी तरह ह्रदय विभाग में ईको मशीन खराब है, एक्सरे से जुड़ी हुई मशीनों के कंडम होने का दौर है. इस बात को जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक एसपीएम सिंह खुद स्वीकार करते हैं. वह कहते हैं कि शासन से पहल की गई मशीनें मिल जाती हैं, तो ठीक है. स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी ने खनन विभाग से कुछ पैसे डोनेट कराने का आश्वासन दिया है. उसके मिलने पर इको मशीन और टीएमटी की स्थापना हो सकेगी.

अस्पताल परिसर भवन में मशीन की स्थापना न करने, साल भर से हृदय रोग विभाग में ईको और टीएमटी मशीन के खराब होने के सवाल पर विपक्षी दल के लोग भाजपा सरकार को घेरने और अधिकारियों को योगी को गुमराह करने की बात कहते हैं. समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता कीर्तिनिधि पांडेय कहते हैं कि जिला अस्पताल के चारों तरफ MRI और अल्ट्रासाउंड मशीनों के कई प्राइवेट सेंटर संचालित हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें:उत्तर प्रदेश में दोबारा प्रतिनियुक्ति पर आ सकते हैं शिवपाल यादव के दामाद आईएएस अजय कुमार

यहां प्रतिदिन सैकड़ों और हजारों की संख्या में मरीज अपनी जांच करा रहे हैं. तो आखिरकार किस रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य महकमे ने कहा कि जिला अस्पताल में सिर्फ 10 से 12 मरीज ही एमआरआई के आते हैं. शासन को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए और जिला अस्पताल परिसर में ही मशीन की स्थापना करनी चाहिए. इसे अस्पताल के मरीजों के अलावा बाहरी मरीजों के लिए भी खोल देना चाहिए. इससे लोगों को सस्ती और सुलभ सुविधा मिलेगी और अस्पताल की आमदनी भी प्रभावित नहीं होगी.

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गोरखपुर: सीएम योगी के शहर का जिला अस्पताल खुद ही बीमार है. यहां कई सुविधाएं ऐसी हैं जो शिलान्यास होने के बाद भी परिसर में शुरू नहीं हो पाई हैं. जिला अस्पताल जैसी बड़ी संस्था में न्यूरो समेत कई स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं बैठते हैं, तो हृदय रोग विभाग की इको मशीन ही महीनों से खराब पड़ी है. अस्पताल के सीएमएस शासन से पत्राचार तो कर रहे हैं, लेकिन व्यवस्था है कि सुधरने का नाम नहीं ले रही.

वहीं सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि परिसर के अंदर करीब 95 लाख रुपये खर्च कर एमआरआई मशीन की स्थापना के लिए भवन बनाया गया था. लेकिन, इस भवन में अब तक मशीन स्थापित नहीं हो पाई है. जबकि इस भवन का शिलान्यास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(Chief Minister Yogi Adityanath) ने किया था. यहां आने वाले मरीजों को सुविधा का लाभ नहीं मिल रहा है. जिसका नतीजा है कि लोग परेशान होकर प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल कॉलेज की तरफ भागने को मजबूर हैं.

MRI के भवन पर 95 लाख खर्च, लेकिन एमआरआई मशीन लगाना हुआ सिरदर्द
स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी और सूत्रों के आधार पर यह बात स्पष्ट हुई है कि परिसर में स्थापित MRI भवन में मशीन इसलिए नहीं लगी है. क्योंकि इस पर करीब ₹70 करोड़ का खर्च आएगा और शासन इसे वहन नहीं करना चाहता. स्वास्थ्य विभाग के पास रिपोर्ट है कि जिला अस्पताल में MRI के प्रतिदिन करीब 10 से 12 मरीज ही पहुंचते हैं. ऐसी स्थिति में करोड़ों की मशीन के लगाने और उसके संचालन में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च करना विभाग नहीं चाहता है.
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च

अधिकारी इसके पीछे एक तर्क देते हैं कि यहां आने वाले मरीजों को बीआरडी मेडिकल कॉलेज MRI के लिए भेजा जाए. जहां पहले से एमआरआई मशीन स्थापित है. शहर से बीआरडी मेडिकल कॉलेज की दूरी 10 किलोमीटर है. यह किसी भी गरीब और आम मरीज को परेशान करने जैसी सोच है. आखिरकार सवाल उठता है कि वर्ष 2018 में यह भवन किस रिपोर्ट के आधार पर शुरू हुआ. क्या उस समय मरीजों की संख्या ज्यादा थी, जो अब घटकर कम हो गई है. 2021 में यह बनकर तैयार भी हो गया.

MRI के भवन पर 95 लाख खर्च
MRI के भवन पर 95 लाख खर्च

इसी तरह ह्रदय विभाग में ईको मशीन खराब है, एक्सरे से जुड़ी हुई मशीनों के कंडम होने का दौर है. इस बात को जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक एसपीएम सिंह खुद स्वीकार करते हैं. वह कहते हैं कि शासन से पहल की गई मशीनें मिल जाती हैं, तो ठीक है. स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी ने खनन विभाग से कुछ पैसे डोनेट कराने का आश्वासन दिया है. उसके मिलने पर इको मशीन और टीएमटी की स्थापना हो सकेगी.

अस्पताल परिसर भवन में मशीन की स्थापना न करने, साल भर से हृदय रोग विभाग में ईको और टीएमटी मशीन के खराब होने के सवाल पर विपक्षी दल के लोग भाजपा सरकार को घेरने और अधिकारियों को योगी को गुमराह करने की बात कहते हैं. समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता कीर्तिनिधि पांडेय कहते हैं कि जिला अस्पताल के चारों तरफ MRI और अल्ट्रासाउंड मशीनों के कई प्राइवेट सेंटर संचालित हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें:उत्तर प्रदेश में दोबारा प्रतिनियुक्ति पर आ सकते हैं शिवपाल यादव के दामाद आईएएस अजय कुमार

यहां प्रतिदिन सैकड़ों और हजारों की संख्या में मरीज अपनी जांच करा रहे हैं. तो आखिरकार किस रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य महकमे ने कहा कि जिला अस्पताल में सिर्फ 10 से 12 मरीज ही एमआरआई के आते हैं. शासन को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए और जिला अस्पताल परिसर में ही मशीन की स्थापना करनी चाहिए. इसे अस्पताल के मरीजों के अलावा बाहरी मरीजों के लिए भी खोल देना चाहिए. इससे लोगों को सस्ती और सुलभ सुविधा मिलेगी और अस्पताल की आमदनी भी प्रभावित नहीं होगी.

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