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नेताओं पर दर्ज 836 मुकदमे वापस लिए गए - योगी सरकार में दर्ज मुकदमे वापस लिए गए

योगी सरकार में पिछले तीन सालों में राजनेताओं, कार्यकर्ताओं व जनसामान्य पर दर्ज 836 मुकदमे वापस लिए गए हैं. कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि ये सारे मुकदमे राजनीतिक विद्वेष में लिखे गए थे. यह मुकदमे न्यायालय में टिक नहीं पाते.

836 मुकदमे वापस लिए गए
836 मुकदमे वापस लिए गए
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Published : Feb 24, 2021, 10:46 PM IST

लखनऊ: पिछले तीन सालों में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में राजनेताओं, कार्यकर्ताओं व जनसामान्य पर दर्ज 836 मुकदमे वापस लिए गए हैं. कानून मंत्री बृजेश पाठक ने मंगलवार को विधानसभा में एक सवाल के जवाब में लिखित उत्तर दिया है.

जनहित में वापस लिए गए मुकदमे

कानून मंत्री ब्रजेश पाठक से विपक्ष के सदस्य ने सवाल पूछा था कि पिछले तीन वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा वापस लिए गए जघन्य आपराधिक मुकदमों के विवरण क्या हैं ? इस पर कानून मंत्री ने जवाब दिया कि भारतीय दंड संहिता में जघन्य अपराध परिभाषित नहीं किया गया है. राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2018, 2019 और 2020 में कुल 836 मुकदमे जनहित में वापस लिए जाने की संस्तुति की गई है. सरकार की ओर से सामान्यतः राजनेताओं, कार्यकर्ताओं एवं जन सामान्य पर दर्ज किए गए मुकदमें जनहित में वापस लिए गए हैं.

सरकार का मानना है कि ये सारे मुकदमे राजनीतिक विद्वेष में लिखे गए थे. ये मुकदमे न्यायालय में टिक नहीं पाते. लिहाजा सरकार ने इन्हें वापस लेने का कदम उठाया है. राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में लिखे गए मुकदमों का कोई मजबूत आधार नहीं है.

लखनऊ: पिछले तीन सालों में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में राजनेताओं, कार्यकर्ताओं व जनसामान्य पर दर्ज 836 मुकदमे वापस लिए गए हैं. कानून मंत्री बृजेश पाठक ने मंगलवार को विधानसभा में एक सवाल के जवाब में लिखित उत्तर दिया है.

जनहित में वापस लिए गए मुकदमे

कानून मंत्री ब्रजेश पाठक से विपक्ष के सदस्य ने सवाल पूछा था कि पिछले तीन वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा वापस लिए गए जघन्य आपराधिक मुकदमों के विवरण क्या हैं ? इस पर कानून मंत्री ने जवाब दिया कि भारतीय दंड संहिता में जघन्य अपराध परिभाषित नहीं किया गया है. राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2018, 2019 और 2020 में कुल 836 मुकदमे जनहित में वापस लिए जाने की संस्तुति की गई है. सरकार की ओर से सामान्यतः राजनेताओं, कार्यकर्ताओं एवं जन सामान्य पर दर्ज किए गए मुकदमें जनहित में वापस लिए गए हैं.

सरकार का मानना है कि ये सारे मुकदमे राजनीतिक विद्वेष में लिखे गए थे. ये मुकदमे न्यायालय में टिक नहीं पाते. लिहाजा सरकार ने इन्हें वापस लेने का कदम उठाया है. राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में लिखे गए मुकदमों का कोई मजबूत आधार नहीं है.

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