लखनऊ : दरअसल जमीनों में किसी न किसी प्रकार के विवाद को लेकर लोग अपने मुकदमे नायब तहसीलदार, उप जिलाधिकारी, जिलाधिकारी, मंडल आयुक्त कार्यालय से लेकर राजस्व परिषद मुख्यालय में दायर करते हैं. फिलवक्त ऐसे तमाम न्यायालयों में स्टाफ की जबरदस्त कमी है. निचली अदालतों से पूर्व में दर्ज आदेश के कंप्लायंस आदि को लेकर लेट लतीफे के चलते मुकदमों का निस्तारण तेजी के साथ नहीं हो पा रहा है. प्रदेश के 18 मंडलों से संबंधित राजस्व वादों की कुल संख्या की बात करें तो 18 लाख से अधिक मुकदमे इन जिला मुख्यालयों से संबंधित राजस्व परिषद न्यायालयों में विचाराधीन हैं. इसके अलावा नायब तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी कार्यालय तक कि न्यायालयों में लाखों की संख्या में मुकदमे पेंडिंग हैं.
आंकड़ों के अनुसार प्रदेश की सभी राजस्व अदालतों में इस समय करीब 20 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं. मुकदमों के निस्तारण में जिला स्तर की अदालतों में लंबा समय लगने के पीछे सबसे बड़ा कारण अधिकारियों के प्रशासनिक कार्यों में व्यवस्था सबसे बड़ी वजह है. दरअसल न्यायिक अधिकारियों को अपने अदालती दायित्व के निर्वहन के साथ-साथ प्रशासनिक दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है. जिसकी वजह से मुकदमों की सुनवाई में लेट लतीफी होती चली जाती है और कई कई साल तक मुकदमा का निस्तारण नहीं हो पाता है. ऐसे में वादियों प्रतिवादियों को सिर्फ तारीख ही मिलती है.
राजस्व परिषद से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि लंबित मुकदमों में 50% से अधिक मुकदमे पारिवारिक सदस्यों की तरफ से दर्ज किए जाते हैं कहीं पिता पुत्र तो कहीं भाई-भाई तो कहीं भाई बहन हुआ चाचा भतीजे के बीच जमीनों के विवाद चलते हैं. मुकदमों में निचली अदालतों से पूर्व में पारित आदेशों को साक्ष्य आदि एकत्रित करने, नोटिस तामील कराने में भी समय लगता है. अधिकारियों के न्यायिक कार्यों के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यों के दायित्वों के निर्वहन के चलते मुकदमों का निस्तारण लंबित होता चला जाता है. अगर स्टाफ की कमी की बात करें तो प्रदेश में तहसीलदार के 766 पद सृजित हैं. इनमें करीब 493 पदों पर तहसीलदार कार्यरत हैं. 273 पद अभी रिक्त चल रहे हैं. इसी प्रकार नायब तहसीलदार के करीब 180 पद खाली हैं. ऐसे में जब पद ही खाली चल रहे हैं तो इन अदालतों में लंबित मुकदमे भी लगातार पीछे हो रहे हैं.