लखनऊः उत्तर प्रदेश के 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है. वहीं सपा को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई है, जिसमें एक सीट पर उसका पहले से ही कब्जा था यानी उसे दो सीटों का फायदा हुआ है, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जलालपुर की सीट भी गंवा दी है. इस प्रकार से बसपा और कांग्रेस के खाते में 11 सीटों में से एक भी नहीं गई. चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी चुनावी सूझ-बूझ से लड़ती तो निश्चित तौर पर चुनावी नतीजों की तस्वीर कुछ और ही होती.
रामपुर सीट बचाने के लिए सपा ने झोंकी थी पूरी ताकत
रामपुर सीट पर पहले से ही समाजवादी पार्टी की जीत पक्की मानी जा रही थी. भारतीय जनता पार्टी ने आजम खां की पत्नी तंजीन फातिमा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. अपने समर्थकों को बांधे रखने के लिए आजम खान को चुनाव प्रचार के दौरान मंच तक से रोना तक पड़ा था. वहीं खास बात यह भी रही कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव केवल रामपुर विधानसभा सीट पर ही चुनाव प्रचार करने गए.
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जैदपुर विधानसभा सीट पर सपा ने मारी बाजी
बाराबंकी की जैदपुर सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी और उपेंद्र सिंह रावत विधायक हुए थे, जिनके संसद पहुंचने के बाद यह सीट खाली थी. इस उपचुनाव में भाजपा ने अंबरीष रावत को टिकट दिया. वहीं भाजपा के इस निर्णय से स्थानीय सांसद सहमत नहीं बताए जा रहे थे. इस सीट पर बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका रावत भी पार्टी से टिकट मांग रही थीं. भाजपा नेतृत्व ने 2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद प्रियंका का टिकट काट कर उपेंद्र रावत को दिया था. जानकारों का मानना है कि यदि प्रियंका को टिकट मिला होता तो ही भाजपा के खाते में यह सीट बची रह जाती, लेकिन आपसी खींचतान और प्रत्याशी का ठीक चयन नहीं होने से उसे नुकसान हुआ. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया भी अपने बेटे को चुनाव नहीं जिता सके.
ऐसे ही सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी. शुरुआत से लेकर कई चक्र की मतगणना तक कांग्रेस जीतती दिख रही थी, लेकिन आखिरी में भाजपा ने बाजी मार ली.
क्या कहते हैं विश्लेषक
चुनावी विश्लेषक मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी से कहीं न कहीं चूक हुई है. भारतीय जनता पार्टी के खाते में सात सीटें हैं. एक सीट सहयोगी अपना दल को मिली है. 11 में से नौ सीटें भाजपा के पास थीं. वह अपनी सभी सीटें बचा पाने में असफल रही है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाजपा के रणनीतिकारों से कहीं न कहीं चूक हुई है.
वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि 11 में से 8 सीटें जीतना बहुत खराब स्थिति नहीं कही जा सकती, लेकिन इसे बहुत अच्छा भी नहीं कहा जा सकता. इतनी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा को सीटें गवानी पड़ी. इसके लिए भाजपा को मंथन करना होगा.
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भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र सिंह राणा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को आठ सीटें मिली हैं. जनता को इसके लिए बधाई है. भाजपा की पहले नौ सीटें थीं. एक सीट कम हुई है. इसको लेकर मंथन करेंगे कि आखिर हमारी पार्टी सभी सीटों पर जीत क्यों नहीं दर्ज कर पाई.