लखीमपुर: उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां पर आधी आबादी ने आजादी के बाद से कभी मतदान नहीं किया है. यहां पर पुरुषवादी परंपरा आज भी हावी है. यानी इस गांव के पुरुषों ने अपने घर की महिलाओं के वोट देने के लिए नियम बना रखे हैं. इसके बाद ये कभी घर की चौखट लांघने की हिम्मत नहीं कर सकीं.
सेहरुआ गांव की जबीना 40 साल पहले ब्याह के यहां आई थीं. न जाने कितने चुनाव आए गए पर जबीना मतदान केंद्र की चौखट तक नहीं पहुंच पाईं. न ही उन्होंने कभी अपने गांव की महिलाओं को घर की देहरी लांघ मतदान केंद्र पर वोट डालने जाते देखा. दरअसल खीरी जिले की धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में महिलाओं को वोट डालने पर पुरुषों ने नियम बना रखा है. ये नियम आजादी के बाद बनाया गया था, जिसका पालन आज तक ये लोग कर रहे हैं.
न विधानसभा का वोट दिया न लोकसभा का
गांव की पुरुषवादी सोच के आगे घूंघट से घिरी महिलाएं कभी घर की चौखट पार करने की हिम्मत नहीं कर सकीं. चौके-चूल्हे तक सीमित रहने वाली महिलाएं प्रधानी के चुनाव हों या विधायकी के, कभी घर की देहरी पार नहीं कर सकीं. जबीना कहती हैं जब कोई नहीं डालता तो हम भी नहीं जाते वोट डालने. अब जब कोई जाएगा तो वो भी जाएंगी.
सेहरुआ गांव में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समाज के लोग रहते हैं. गांव के ही रहने वाले 90 साल के नसीर खान बताते हैं कि पुराने जमाने में पुरुषों ने यह तय कर लिया था कि गांव की महिलाएं घर का चौका-चूल्हा करेंगी. वोट से उनको क्या लेना देना. प्रधानी का चुनाव हो या विधायकी का या लोकसभा का, गांव के पुरुष तय कर लेते थे कि जो जिस पार्टी में जहां वोट डालना चाहे वहां पुरुष जाएं. महिलाएं घर से क्यों बेवजह निकलें.
लगभग तीन हजार के करीब हैं मतदाता
नसीर खान बताते हैं कि यह खबर जब गांव से बाहर निकलकर मीडिया के जरिए चुनाव आयोग और प्रशासन तक पहुंचीं तो अब बदलाव आया है. पिछली बार प्रधानी के चुनाव में कुछ वोट पड़े थे, लेकिन लोकसभा में अभी तक वोट नहीं पड़े. उम्मीद है कि इस बार लोकसभा में भी वोट पड़ेंगे. धौरहरा लोकसभा में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में करीब तीन हजार से ज्यादा मतदाता हैं. कैमरा देखते ही महिलाएं आज भी घूंघट की आड़ ले लेती हैं.
पिछली प्रधानी के चुनाव में महिलाओं ने वोट डाले थे. इस लोकसभा में भी महिलाएं पाबन्दी की लक्ष्मणरेखा पार कर पाएंगी या नहीं ये सवाल बना हुआ है. पिछले सालों में प्रशासन ने इस गांव मे कई जागरूकता अभियान चलाए, जिससे बदलाव की बयार घरों की देहरी पारकर घरों में घुसी. महिलाएं भी अपने हक को पहचान गई हैं. वोट की ताकत भी.
गांव के रहने वाले राजाराम बताते हैं कि जमीदारी के समय से गांव के पुरुषों ने ये तय कर लिया था कि महिलाएं वोट नहीं डालेंगी.कोई भी चुनाव हो, पुरुष ही अपना वोट डालकर अपना नेता चुन लेंगे. राजाराम खुश भी हैं कि शायद इस बार लोकसभा चुनाव में गांव के पुरुष महिलाओं को वोट डालने की आजादी देने वाले हैं.