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उत्तर प्रदेश का ऐसा गांव जहां आजादी के बाद से महिलाओं ने नहीं किया है मतदान

आजादी के बाद से भारत न जाने कितना आगे बढ़ गया. भारत की महिलाओं ने देश का मस्तक पूरी दुनिया के सामने गर्व से ऊंचा किया. वहीं यूपी का एक ऐसा गांव है जहां आजादी के बाद से आजतक महिलाएं मतदान नहीं कर सकी हैं.

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Published : May 3, 2019, 12:19 PM IST

लखीमपुर: उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां पर आधी आबादी ने आजादी के बाद से कभी मतदान नहीं किया है. यहां पर पुरुषवादी परंपरा आज भी हावी है. यानी इस गांव के पुरुषों ने अपने घर की महिलाओं के वोट देने के लिए नियम बना रखे हैं. इसके बाद ये कभी घर की चौखट लांघने की हिम्मत नहीं कर सकीं.

सेहरुआ गांव की जबीना 40 साल पहले ब्याह के यहां आई थीं. न जाने कितने चुनाव आए गए पर जबीना मतदान केंद्र की चौखट तक नहीं पहुंच पाईं. न ही उन्होंने कभी अपने गांव की महिलाओं को घर की देहरी लांघ मतदान केंद्र पर वोट डालने जाते देखा. दरअसल खीरी जिले की धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में महिलाओं को वोट डालने पर पुरुषों ने नियम बना रखा है. ये नियम आजादी के बाद बनाया गया था, जिसका पालन आज तक ये लोग कर रहे हैं.

न विधानसभा का वोट दिया न लोकसभा का
गांव की पुरुषवादी सोच के आगे घूंघट से घिरी महिलाएं कभी घर की चौखट पार करने की हिम्मत नहीं कर सकीं. चौके-चूल्हे तक सीमित रहने वाली महिलाएं प्रधानी के चुनाव हों या विधायकी के, कभी घर की देहरी पार नहीं कर सकीं. जबीना कहती हैं जब कोई नहीं डालता तो हम भी नहीं जाते वोट डालने. अब जब कोई जाएगा तो वो भी जाएंगी.

सेहरुआ गांव में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समाज के लोग रहते हैं. गांव के ही रहने वाले 90 साल के नसीर खान बताते हैं कि पुराने जमाने में पुरुषों ने यह तय कर लिया था कि गांव की महिलाएं घर का चौका-चूल्हा करेंगी. वोट से उनको क्या लेना देना. प्रधानी का चुनाव हो या विधायकी का या लोकसभा का, गांव के पुरुष तय कर लेते थे कि जो जिस पार्टी में जहां वोट डालना चाहे वहां पुरुष जाएं. महिलाएं घर से क्यों बेवजह निकलें.

उत्तर प्रदेश का ऐसा गांव जहां आजादी के बाद से महिलाओं ने नहीं किया है मतदान

लगभग तीन हजार के करीब हैं मतदाता
नसीर खान बताते हैं कि यह खबर जब गांव से बाहर निकलकर मीडिया के जरिए चुनाव आयोग और प्रशासन तक पहुंचीं तो अब बदलाव आया है. पिछली बार प्रधानी के चुनाव में कुछ वोट पड़े थे, लेकिन लोकसभा में अभी तक वोट नहीं पड़े. उम्मीद है कि इस बार लोकसभा में भी वोट पड़ेंगे. धौरहरा लोकसभा में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में करीब तीन हजार से ज्यादा मतदाता हैं. कैमरा देखते ही महिलाएं आज भी घूंघट की आड़ ले लेती हैं.

पिछली प्रधानी के चुनाव में महिलाओं ने वोट डाले थे. इस लोकसभा में भी महिलाएं पाबन्दी की लक्ष्मणरेखा पार कर पाएंगी या नहीं ये सवाल बना हुआ है. पिछले सालों में प्रशासन ने इस गांव मे कई जागरूकता अभियान चलाए, जिससे बदलाव की बयार घरों की देहरी पारकर घरों में घुसी. महिलाएं भी अपने हक को पहचान गई हैं. वोट की ताकत भी.

गांव के रहने वाले राजाराम बताते हैं कि जमीदारी के समय से गांव के पुरुषों ने ये तय कर लिया था कि महिलाएं वोट नहीं डालेंगी.कोई भी चुनाव हो, पुरुष ही अपना वोट डालकर अपना नेता चुन लेंगे. राजाराम खुश भी हैं कि शायद इस बार लोकसभा चुनाव में गांव के पुरुष महिलाओं को वोट डालने की आजादी देने वाले हैं.

लखीमपुर: उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां पर आधी आबादी ने आजादी के बाद से कभी मतदान नहीं किया है. यहां पर पुरुषवादी परंपरा आज भी हावी है. यानी इस गांव के पुरुषों ने अपने घर की महिलाओं के वोट देने के लिए नियम बना रखे हैं. इसके बाद ये कभी घर की चौखट लांघने की हिम्मत नहीं कर सकीं.

सेहरुआ गांव की जबीना 40 साल पहले ब्याह के यहां आई थीं. न जाने कितने चुनाव आए गए पर जबीना मतदान केंद्र की चौखट तक नहीं पहुंच पाईं. न ही उन्होंने कभी अपने गांव की महिलाओं को घर की देहरी लांघ मतदान केंद्र पर वोट डालने जाते देखा. दरअसल खीरी जिले की धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में महिलाओं को वोट डालने पर पुरुषों ने नियम बना रखा है. ये नियम आजादी के बाद बनाया गया था, जिसका पालन आज तक ये लोग कर रहे हैं.

न विधानसभा का वोट दिया न लोकसभा का
गांव की पुरुषवादी सोच के आगे घूंघट से घिरी महिलाएं कभी घर की चौखट पार करने की हिम्मत नहीं कर सकीं. चौके-चूल्हे तक सीमित रहने वाली महिलाएं प्रधानी के चुनाव हों या विधायकी के, कभी घर की देहरी पार नहीं कर सकीं. जबीना कहती हैं जब कोई नहीं डालता तो हम भी नहीं जाते वोट डालने. अब जब कोई जाएगा तो वो भी जाएंगी.

सेहरुआ गांव में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समाज के लोग रहते हैं. गांव के ही रहने वाले 90 साल के नसीर खान बताते हैं कि पुराने जमाने में पुरुषों ने यह तय कर लिया था कि गांव की महिलाएं घर का चौका-चूल्हा करेंगी. वोट से उनको क्या लेना देना. प्रधानी का चुनाव हो या विधायकी का या लोकसभा का, गांव के पुरुष तय कर लेते थे कि जो जिस पार्टी में जहां वोट डालना चाहे वहां पुरुष जाएं. महिलाएं घर से क्यों बेवजह निकलें.

उत्तर प्रदेश का ऐसा गांव जहां आजादी के बाद से महिलाओं ने नहीं किया है मतदान

लगभग तीन हजार के करीब हैं मतदाता
नसीर खान बताते हैं कि यह खबर जब गांव से बाहर निकलकर मीडिया के जरिए चुनाव आयोग और प्रशासन तक पहुंचीं तो अब बदलाव आया है. पिछली बार प्रधानी के चुनाव में कुछ वोट पड़े थे, लेकिन लोकसभा में अभी तक वोट नहीं पड़े. उम्मीद है कि इस बार लोकसभा में भी वोट पड़ेंगे. धौरहरा लोकसभा में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में करीब तीन हजार से ज्यादा मतदाता हैं. कैमरा देखते ही महिलाएं आज भी घूंघट की आड़ ले लेती हैं.

पिछली प्रधानी के चुनाव में महिलाओं ने वोट डाले थे. इस लोकसभा में भी महिलाएं पाबन्दी की लक्ष्मणरेखा पार कर पाएंगी या नहीं ये सवाल बना हुआ है. पिछले सालों में प्रशासन ने इस गांव मे कई जागरूकता अभियान चलाए, जिससे बदलाव की बयार घरों की देहरी पारकर घरों में घुसी. महिलाएं भी अपने हक को पहचान गई हैं. वोट की ताकत भी.

गांव के रहने वाले राजाराम बताते हैं कि जमीदारी के समय से गांव के पुरुषों ने ये तय कर लिया था कि महिलाएं वोट नहीं डालेंगी.कोई भी चुनाव हो, पुरुष ही अपना वोट डालकर अपना नेता चुन लेंगे. राजाराम खुश भी हैं कि शायद इस बार लोकसभा चुनाव में गांव के पुरुष महिलाओं को वोट डालने की आजादी देने वाले हैं.

Intro:लखीमपुर-आइए आपको ले चलते हैं यूपी के एक ऐसे गाँव जिसमें आधी आवादी ने आजादी के बाद से कभी वोट नहीं डाला। जी हाँ यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के सेहरुआ गाँव की महिलाओं ने लोकसभा में कभी वोट नहीं डाला। ईटीवी भारत की टीम इस गाँव में पहुँची।
सेहरुआ गाँव की जबीना 40 साल पहले इस गाँव में ब्याह के आई थीं। न जाने कितने चुनाव आए गए पर जबीना मतदान केंद्र की चौखट तक नहीं पहुँच पाई। न ही उन्होंने कभी अपने गाँव की महिलाओं को घर की देहरी लांघ मतदान केंद्र पर वोट डालने जाते नहीं देखा। दरसल खीरी जिले की धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सेहरुआ गाँव में महिलाओं को वोट डालने पर पुरुषों ने पाबन्दी लगा रखी थी। गाँव की पुरुषवादी सोंच के आगे घूँघट से घिरी महिलाएँ कभी घर की चौखट पार करने की हिम्मत नहीं कर सकी। चौके चूल्हे तक सीमित रहने वाली महिलाएं प्रधानी के चुनाव हों या विधायकी के,कभी घर की देहरी पार नहीं कर सकी। जबीना कहती हैं जब कोई नहीं डालता तो हम भी नहीं जाते वोट डालने। पर अबकी हवा बदली है।
बाइट-जबीना(महिला सेहरुआ गाँव)



Body:सेहरुआ गाँव में दरसल हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही बिरादरी के लोग रहते हैं। गांव के ही रहने वाले 90 बरस के नसीर खान बताते हैं की पुराने जमाने में पुरुषों ने यह तय कर लिया था कि गांव की महिलाएं घर का चौका चूल्हा करेंगे वोट से उनको क्या लेना देना। प्रधानी का चुनाव हो या विधायकी का लोकसभा का गांव के पुरुष तय कर लेते थे कि जो जिस पार्टी में जहां वोट डालना चाहे वहां पुरुष डालने महिलाएं घर से क्यों बेवजह निकले। नसीर खान बताते हैं कि हालांकि यह खबर जब गांव से बाहर निकल कर मीडिया के जरिए चुनाव आयोग और प्रशासन तक पहुँचीं तो अब बदलाव आया है। पिछली बार प्रधानी के चुनाव में कुछ वोट पड़े थे लेकिन लोकसभा में अभी तक वोट नहीं पड़े। उम्मीद है कि इस बार लोकसभा में भी वोट पड़ेंगे।
बाइट-नसीर खान(बुजुर्ग निवासी सेहरुआ)



Conclusion:धौरहरा लोकसभा में पड़ने वाले सेहरुआ गांव में करीब तीन हजार से ज्यादा मतदाता हैं। कैमरा देखते ही महिलाएं आज भी घूँघट की आड़ ले लेती हैं। या किनारे हट जाती। यहाँ आजादी के बाद से ही या महिलाओं को घुंघट की ओट में रखा गया। लोकतंत्र का कोई भी पर्व हो यहां पर पुरुष ही अकेले उसे मना लेते थे और आधी आबादी उस से महरूम रहती थी। पिछली प्रधानी के चुनाव में महिलाओं ने वोट डाले थे। इस लोकसभा में भी महिलाएं पाबन्दी की लक्ष्मणरेखा पार कर पाएंगे या नहीं ये सवाल बना हुआ है। पिछले सालों में प्रशाशन ने इस गाँव मे कई जागरूकता अभियान चलाए। जिससे बदलाव की बयार घरों की देहरी पार कर घरों में घुसी है। महिलाएं भी अपने हक हुकूक को पहचान गई हैं। वोट की ताकत भी। गांव के रहने वाले राजाराम बताते हैं कि जमीदारी के समय से गांव के पुरुषों ने ये तय कर लिया था कि महिलाएं वोट नहीं डालेंगी। कोई भी चुनाव हो,पुरुष ही अपना वोट डालकर अपना नेता चुन लेंगे। राजाराम खुश भी हैं कि शायद इस बार लोकसभा चुनाव में गांव के पुरुष महिलाओं को वोट डालने की आजादी देने वाले हैं। पर क्या महिलाएँ पाबन्दी की इस बरसों से बनी सामाजिक दीवार को ढहा पाएँगी ये सवाल है।
बाइट-राजाराम(निवासी सेहरुआ)
पीटीसी-प्रशान्त पाण्डेय
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प्रशान्त पाण्डेय
9984152598
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