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लेखपाल बन लखीमपुर की महिलाओं ने बदली जिंदगी, अब खेतों में जाकर कर रही पैमाइश - लखीमपुर में महिला लेखपाल

लखीमपुर खीरी जिले में महिला लेखपालों ने अपने काम से तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर ईटीवी भारत ने महिला लेखपालों के काम को देखा. अपने हौंसलों से ये महिला लेखपाल अब चौका चूल्हा और पुरुष मानसिकता की बनी सामाजिक बंदिशों की चहारदीवारी तोड़कर आगे निकल रहीं हैं.

lakhimpur kheri
महिला लेखपाल बनी मिसाल
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Published : Mar 8, 2021, 4:05 PM IST

लखीमपुर खीरीः यूपी में महिला लेखपालों ने अपने काम से तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर ईटीवी भारत ने महिला लेखपालों के काम को देखा. अपने हौंसलों से ये महिला लेखपाल अब चौका चूल्हा और पुरुष मानसिकता की बनी सामाजिक बंदिशों की चारदीवारी तोड़कर आगे निकल रहीं हैं. पारुल पाण्डेय, प्रियंका मिश्रा, दीपांशी कश्यप अपनी साथी लेखपाल संगीता, पुष्पलता, कीर्ति, दीपांशी के साथ स्कूटी से झंडी जरीब लेकर खेत नापने को निकली हैं. जरीब ने इन महिला लेखपालों की जिंदगी बदल दी है. घर के चूल्हे चौके और सामाजिक बन्धनों से निकल, पढ़ लिखकर ये महिला लेखपाल अब पुरुषों के समान काम कर रही हैं. मेड़ों पर चलकर पुरुषों के समान खेतों की पैमाइश कर रही हैं.

महिला लेखपाल बन रही प्रेरणा

महिला लेखपालों की बदली जिंदगी
जरीब ने महिला लेखपालों की जिंदगी बदल दी है. गांव, खेत खलिहान, बागान और मेड़ अब इन महिला लेखपालों के कार्यक्षेत्र हैं, तो जरीब, गुनिया, खसरा खतौनी अब इन महिला लेखपालों के दोस्त बन गए. घर की दहलीज की बंदिशें पारकर ये महिला लेखपाल अपने काम को बखूबी निभा रहीं हैं. लेखपाल प्रियंका मिश्रा कहती हैं शुरू में जब हम गांवोंं में गए तो लोग हमको देखकर आश्चर्य चकित होते थे. लेकिन अब अपने काम से लोगों से वो कनेक्ट हो गईं हैं.

जिले में हैं 45 महिला लेखपाल
खीरी जिले के 7 तहसीलों में करीब 45 महिला लेखपाल काम कर रही हैं. खेत मेड अब इनकी नई पहचान बन गई है. लेखपाली का जो काम पुरुषों की बपौती माना जाता था, वो मिथक ये महिला लेखपाल अपने हौंसलों के पंखों की उड़ान से तोड़ रही हैं. इनका काम अब बोल रहा. ऑफिस हो या फील्ड वर्क ये महिला लेखपाल अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभा रहीं हैं.

लखीमपुर खीरीः यूपी में महिला लेखपालों ने अपने काम से तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर ईटीवी भारत ने महिला लेखपालों के काम को देखा. अपने हौंसलों से ये महिला लेखपाल अब चौका चूल्हा और पुरुष मानसिकता की बनी सामाजिक बंदिशों की चारदीवारी तोड़कर आगे निकल रहीं हैं. पारुल पाण्डेय, प्रियंका मिश्रा, दीपांशी कश्यप अपनी साथी लेखपाल संगीता, पुष्पलता, कीर्ति, दीपांशी के साथ स्कूटी से झंडी जरीब लेकर खेत नापने को निकली हैं. जरीब ने इन महिला लेखपालों की जिंदगी बदल दी है. घर के चूल्हे चौके और सामाजिक बन्धनों से निकल, पढ़ लिखकर ये महिला लेखपाल अब पुरुषों के समान काम कर रही हैं. मेड़ों पर चलकर पुरुषों के समान खेतों की पैमाइश कर रही हैं.

महिला लेखपाल बन रही प्रेरणा

महिला लेखपालों की बदली जिंदगी
जरीब ने महिला लेखपालों की जिंदगी बदल दी है. गांव, खेत खलिहान, बागान और मेड़ अब इन महिला लेखपालों के कार्यक्षेत्र हैं, तो जरीब, गुनिया, खसरा खतौनी अब इन महिला लेखपालों के दोस्त बन गए. घर की दहलीज की बंदिशें पारकर ये महिला लेखपाल अपने काम को बखूबी निभा रहीं हैं. लेखपाल प्रियंका मिश्रा कहती हैं शुरू में जब हम गांवोंं में गए तो लोग हमको देखकर आश्चर्य चकित होते थे. लेकिन अब अपने काम से लोगों से वो कनेक्ट हो गईं हैं.

जिले में हैं 45 महिला लेखपाल
खीरी जिले के 7 तहसीलों में करीब 45 महिला लेखपाल काम कर रही हैं. खेत मेड अब इनकी नई पहचान बन गई है. लेखपाली का जो काम पुरुषों की बपौती माना जाता था, वो मिथक ये महिला लेखपाल अपने हौंसलों के पंखों की उड़ान से तोड़ रही हैं. इनका काम अब बोल रहा. ऑफिस हो या फील्ड वर्क ये महिला लेखपाल अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभा रहीं हैं.

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