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जंगल हुए पराए, अब गन्ने के खेतों में बाघ बना रहे अपना आशियाना

दुधवा टाइगर रिजर्व के बाघों को अब जंगल नहीं गन्ने के खेत भा रहे हैं. जंगल, बाघों को पराए लगने लगे हैं और गन्ने के खेत बाघों को जंगल से ज्यादा रहने और रिहायश के लिए रास आ रहे हैं. यह खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने किया है. जिसके मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघों को जंगल के बजाए गन्ने के खेत ज्यादा लुभा रहे हैं.

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Published : Dec 1, 2020, 2:17 PM IST

tiger in sugarcane fields
गन्ने के खेतों को आशियाना बना रहे बाघ

लखीमपुर खीरीः दुधवा टाइगर रिजर्व के बाघों को अब जंगल नहीं गन्ने के खेत भा रहे हैं. जंगल, बाघों को पराए लगने लगे हैं और गन्ने के खेत बाघों को जंगल से ज्यादा रहने और रिहायश के लिए रास आ रहे हैं. यह खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने किया है. जिसके मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघों को जंगल के बजाए गन्ने के खेत ज्यादा लुभा रहे हैं.

lakhimpur khiri
गन्ने के खेतों को आशियाना बना रहे बाघ

भारतीय वन्यजीन संस्थान का खुलासा
दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व में कुल 107, तो पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 65 बाघ की गिनती कैमरा ट्रैप में मिली है. लेकिन दोनों ही जगहों पर जितने बाघ जंगलों में रह रहे हैं. उतने आसपास गन्ने के खेतों में भी मिले. बाघ प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह खुशखबरी है, कि दुधवा टाइगर रिजर्व में इस बार 39 बाघों की संख्या बढ़ी है. जबकि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 40 बाघ बढ़े हैं.

'बाघ खुद बनाते हैं अपना क्षेत्र'
दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक बताते हैं, बाघ एक ऐसा जानवर है, जो अपने रहने के लिए टेरेटरी खुद बनाते हैं. ऐसे में कुछ बाघ जंगलों से निकलकर आसपास के गन्ने के खेतों में रहने लगते हैं. कभी-कभी यह ब्रीडिंग भी गन्ने के खेतों में करते हैं. संजय पाठक के मुताबिक बाघों को जंगल और गन्ने में कोई फर्क नहीं महसूस होता. लेकिन बाघों की तादात बढ़ना एक शुभ संकेत है और यह जंगल किनारे रहने वाले लोगों और विभाग की मॉनिटरिंग के साझा प्रयासों का प्रतिफल है.

lakhimpur khiri
जंगल से खेतों की तरफ रुख कर रहे बाघ
बाघों की संख्या बढ़ाने की हो रही कोशिश जारीइंडो-नेपाल बॉर्डर के तराई इलाके में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे को बढाने के प्रयास एनजीओ के साथ मिलकर वन विभाग लगातार कर रहा है. हर चार साल बाद होने वाले बाघों की गणना में बाघों की तादात का पता चलता है. दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत में बाघों की कैमरा ट्रैप विधि से स्टीमेशन डब्लूडब्लूएफ ने की थी. जिसकी आखिरी पड़ताल भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में होने के बाद, अब दुधवा के आंकड़े जारी किए गए हैं.

दुधवा, पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बढ़ी बाघों की संख्या
दुधवा टाइगर रिजर्व में 2014 के मुकाबले 2018 की गणना में 107 बाघों की तादात सामने आई है. वहीं पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 25 से बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गई है. इन दोनों ही टाइगर रिजर्व में बड़ी तादात में बाघ जंगलों के बाहर गन्ने के खेतों में रहने का भी खुलासा हुआ है.

गन्ने के खेतों में बाघों का आशियाना
दुधवा टाइगर रिजर्व में 20, किशनपुर सेंचुरी में 33 और कर्तनियाघाट वन्यजीव प्रभाग में 29 बाघ मिले हैं. इसके अलावा दुधवा टाइगर रिजर्व के बफर जोन और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के जंगलों में रह रहे बाघों ने गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाया है. जंगल के बाहर गन्ने के खेत बाघों की पसंद बनते जा रहे. दुधवा और उसके आसपास वन्यजीवों पर कई सालों से काम कर रहे तराई नेचर कंजर्वेशन सोसायटी के सचिव डॉक्टर वीपी सिंह कहते हैं खीरी और पीलीभीत जिलों में बाघों की बढ़ना जहां शुभ संकते हैं. वहीं जंगल के बाहर गन्ने के खेतों में बाघों का मिलना चिंता भी बढ़ाता है.

लखीमपुर खीरीः दुधवा टाइगर रिजर्व के बाघों को अब जंगल नहीं गन्ने के खेत भा रहे हैं. जंगल, बाघों को पराए लगने लगे हैं और गन्ने के खेत बाघों को जंगल से ज्यादा रहने और रिहायश के लिए रास आ रहे हैं. यह खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने किया है. जिसके मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघों को जंगल के बजाए गन्ने के खेत ज्यादा लुभा रहे हैं.

lakhimpur khiri
गन्ने के खेतों को आशियाना बना रहे बाघ

भारतीय वन्यजीन संस्थान का खुलासा
दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व में कुल 107, तो पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 65 बाघ की गिनती कैमरा ट्रैप में मिली है. लेकिन दोनों ही जगहों पर जितने बाघ जंगलों में रह रहे हैं. उतने आसपास गन्ने के खेतों में भी मिले. बाघ प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह खुशखबरी है, कि दुधवा टाइगर रिजर्व में इस बार 39 बाघों की संख्या बढ़ी है. जबकि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 40 बाघ बढ़े हैं.

'बाघ खुद बनाते हैं अपना क्षेत्र'
दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक बताते हैं, बाघ एक ऐसा जानवर है, जो अपने रहने के लिए टेरेटरी खुद बनाते हैं. ऐसे में कुछ बाघ जंगलों से निकलकर आसपास के गन्ने के खेतों में रहने लगते हैं. कभी-कभी यह ब्रीडिंग भी गन्ने के खेतों में करते हैं. संजय पाठक के मुताबिक बाघों को जंगल और गन्ने में कोई फर्क नहीं महसूस होता. लेकिन बाघों की तादात बढ़ना एक शुभ संकेत है और यह जंगल किनारे रहने वाले लोगों और विभाग की मॉनिटरिंग के साझा प्रयासों का प्रतिफल है.

lakhimpur khiri
जंगल से खेतों की तरफ रुख कर रहे बाघ
बाघों की संख्या बढ़ाने की हो रही कोशिश जारीइंडो-नेपाल बॉर्डर के तराई इलाके में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे को बढाने के प्रयास एनजीओ के साथ मिलकर वन विभाग लगातार कर रहा है. हर चार साल बाद होने वाले बाघों की गणना में बाघों की तादात का पता चलता है. दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत में बाघों की कैमरा ट्रैप विधि से स्टीमेशन डब्लूडब्लूएफ ने की थी. जिसकी आखिरी पड़ताल भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में होने के बाद, अब दुधवा के आंकड़े जारी किए गए हैं.

दुधवा, पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बढ़ी बाघों की संख्या
दुधवा टाइगर रिजर्व में 2014 के मुकाबले 2018 की गणना में 107 बाघों की तादात सामने आई है. वहीं पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 25 से बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गई है. इन दोनों ही टाइगर रिजर्व में बड़ी तादात में बाघ जंगलों के बाहर गन्ने के खेतों में रहने का भी खुलासा हुआ है.

गन्ने के खेतों में बाघों का आशियाना
दुधवा टाइगर रिजर्व में 20, किशनपुर सेंचुरी में 33 और कर्तनियाघाट वन्यजीव प्रभाग में 29 बाघ मिले हैं. इसके अलावा दुधवा टाइगर रिजर्व के बफर जोन और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के जंगलों में रह रहे बाघों ने गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाया है. जंगल के बाहर गन्ने के खेत बाघों की पसंद बनते जा रहे. दुधवा और उसके आसपास वन्यजीवों पर कई सालों से काम कर रहे तराई नेचर कंजर्वेशन सोसायटी के सचिव डॉक्टर वीपी सिंह कहते हैं खीरी और पीलीभीत जिलों में बाघों की बढ़ना जहां शुभ संकते हैं. वहीं जंगल के बाहर गन्ने के खेतों में बाघों का मिलना चिंता भी बढ़ाता है.

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