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जानिए, जलकुंभी और मूंज ने कैसे बदल दी इन थारू महिलाओं की जिंदगी?

तालाबों में उगने वाली जलकुंभी और खेतों के किनारे उगने वाली मूंज (एक तरह की घास) ने थारू महिलाओं का जीवन बदलकर रख दिया है. वह कैसे?, चलिए जानते हैं.

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जानिए, जलकुंभी और मूंज ने कैसे बदल दी इन थारू महिलाओं की जिंदगी
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Published : Jul 15, 2022, 7:24 PM IST

लखीमपुर खीरीः थारू जनजाति की महिलाओं का जीवन तेजी से बदल रहा है. यह संभव हुआ है तालाबों में उगने वाली जलकुंभी और खेतों के किनारे उगने वाली मूंज (एक तरह की घास) की वजह से. इन महिलाओं के घरों के चूल्हे अब इन्हीं की बदौलत जल रहे हैं.

यूपी के इंडो नेपाल बॉर्डर पर दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों के बीच थारू जनजाति के 24 से ज्यादा गांव हैं. अब ये गांव जंगलों पर आश्रित नहीं रहे. यहां की महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो रहीं हैं. दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं ने जलकुम्भी के पौधों के रेशों से सुंदर बैग और जंगलों में उगने वाली मूंज से पर्स और अन्य कलात्मक वस्तुएं बनानी शुरू कर दी हैं. यह पूरी तरह से नेचुरल (इको फ्रेंडली) और बायोडिग्रेडेबल हैं.

मूंज और जलकुंभी के रेशों से थारू महिलाएं बना रहीं कलात्मक सामान.

थारू महिला आरती करीब दो हजार महिलाओं के साथ मिलकर यह काम कर रहीं हैं. उनका कहना है कि वह पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद तैयार कर रहीं हैं. जलकुंभी से बना हुआ सुंदर बैग दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इस बैग की कीमत 800 से 1000 रुपए है. पहले गांव के तालाब में उगने वाली जलकुंभी को कोई पूछता नहीं था, अब हालत ये है कि ये तालाबों में मिल नहीं रही है. यह बैग पूरी तरह से नेचुरल है. उन्होंने कहा कि इसी तरह मूंज का कभी काफी सामान तैयार किया जा रहा है. जब दुधवा टाइगर रिजर्व खुलेगा तो काफी सैलानी घूमने आएंगे, उस दौरान इस सामान की काफी बिक्री होगी.

वहीं, गोबरौला गांव की सुनीता भी जूट की रस्सी से मोबाइल पर्स बना रहीं. वह जूट से बैग और चप्पलें भी बनातीं हैं. मोबाइल बैग से लेकर महिलाओं के लिए हैंडबैग, टोपियां आदि वह बनाती हैं. सुनीता के मुताबिक यहां जूट सनई बोना बंद हो गया था. इससे जूट बनता था. हमारे जूट बैग की काफी डिमांड होने से फिर से इसकी खेती शुरू हो गई है. हम 40 रुपए किलो तक जूट खरीद लेते हैं. इससे किसानों को भी मुनाफा हो रहा है और हम पर्यावरण का नुकसान होने से बचा रहे हैं.

थारू महिलाओं के इस हुनर को बढाने में जंगलों को बचाने की मदद में लगे डब्लूडब्लूएफ, राष्ट्रीय आजीविका मिशन और अब यूपी सरकार की ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट) भी मदद कर रही है.

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लखीमपुर खीरीः थारू जनजाति की महिलाओं का जीवन तेजी से बदल रहा है. यह संभव हुआ है तालाबों में उगने वाली जलकुंभी और खेतों के किनारे उगने वाली मूंज (एक तरह की घास) की वजह से. इन महिलाओं के घरों के चूल्हे अब इन्हीं की बदौलत जल रहे हैं.

यूपी के इंडो नेपाल बॉर्डर पर दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों के बीच थारू जनजाति के 24 से ज्यादा गांव हैं. अब ये गांव जंगलों पर आश्रित नहीं रहे. यहां की महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो रहीं हैं. दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं ने जलकुम्भी के पौधों के रेशों से सुंदर बैग और जंगलों में उगने वाली मूंज से पर्स और अन्य कलात्मक वस्तुएं बनानी शुरू कर दी हैं. यह पूरी तरह से नेचुरल (इको फ्रेंडली) और बायोडिग्रेडेबल हैं.

मूंज और जलकुंभी के रेशों से थारू महिलाएं बना रहीं कलात्मक सामान.

थारू महिला आरती करीब दो हजार महिलाओं के साथ मिलकर यह काम कर रहीं हैं. उनका कहना है कि वह पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद तैयार कर रहीं हैं. जलकुंभी से बना हुआ सुंदर बैग दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इस बैग की कीमत 800 से 1000 रुपए है. पहले गांव के तालाब में उगने वाली जलकुंभी को कोई पूछता नहीं था, अब हालत ये है कि ये तालाबों में मिल नहीं रही है. यह बैग पूरी तरह से नेचुरल है. उन्होंने कहा कि इसी तरह मूंज का कभी काफी सामान तैयार किया जा रहा है. जब दुधवा टाइगर रिजर्व खुलेगा तो काफी सैलानी घूमने आएंगे, उस दौरान इस सामान की काफी बिक्री होगी.

वहीं, गोबरौला गांव की सुनीता भी जूट की रस्सी से मोबाइल पर्स बना रहीं. वह जूट से बैग और चप्पलें भी बनातीं हैं. मोबाइल बैग से लेकर महिलाओं के लिए हैंडबैग, टोपियां आदि वह बनाती हैं. सुनीता के मुताबिक यहां जूट सनई बोना बंद हो गया था. इससे जूट बनता था. हमारे जूट बैग की काफी डिमांड होने से फिर से इसकी खेती शुरू हो गई है. हम 40 रुपए किलो तक जूट खरीद लेते हैं. इससे किसानों को भी मुनाफा हो रहा है और हम पर्यावरण का नुकसान होने से बचा रहे हैं.

थारू महिलाओं के इस हुनर को बढाने में जंगलों को बचाने की मदद में लगे डब्लूडब्लूएफ, राष्ट्रीय आजीविका मिशन और अब यूपी सरकार की ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट) भी मदद कर रही है.

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