लखीमपुर खीरीः जिले में लिलौटीनाथ मंदिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी. शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर स्थापित है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव तराई के इस बियाबान जंगल में विचरण करते हुए आए थे. भगवान शिव को खुश करने को पाडंवों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस शिवलिंग की स्थापना की थी. इस मंदिर की खास बात यह है कि आज भी यहां शिवलिंग की पूजा भक्तों के पहुंचने से पहले हो जाती है, यहां श्रावण मास में मेला लगता है.
महाभारत कालीन है यह मंदिर
शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर है. सावन में मंदिर के पास की हरियाली किसी का भी मन मोह लेती है. मंदिर के पुजारी शंकर गिरी कहते हैं कि मान्यता है कि जो लिलौटी बाबा की शरण मे आ गया उसका बेड़ा पार हो जाता है. लिलौटीनाथ का मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है. शहर से उत्तर दिशा में आज जहां गन्ने की लहलहाती फसल दिखती कभी वहां वन क्षेत्र था, जहां पांडव अज्ञातवास पर आए थे. कुछ लोग अश्वत्थामा तो कुछ आला ऊदल से जोड़कर इस मंदिर की पूजा की कहानी को बताते हैं.
शिवलिंग का बदलता है रंग
जुनई और कंडवा नदी के संगम पर बसे इस मंदिर की मान्यता खीरी ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी है. खास यह है कि शिवलिंग दिन मे कई बार रंग बदलता है. मान्यता है कि सुबह के समय काला, दोपहर में भूरा और रात के समय हल्की सफेदी शिवलिंग को विशेष बनाती है.
लाखों की तादाद में कांवड़िए बाबा को चढ़ाते हैं जल
इससे पहले मंदिर के शिवलिंग को जाल से ढकने को लेकर काफी विवाद भी हो चुका है. सावन के ठीक पहले शिवलिंग के ऊपर से जाल हटवा दिया गया है. सावन भर लिलौटी बाबा मंदिर पर भक्त रामचरितमानस का पाठ, भंडारे, रुद्राभिषेक करते हैं. यहां लाखों की तादाद में कांवड़िए दर्शन के लिये आते हैं.