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जानिए क्या है लिलौटीनाथ मंदिर की महिमा, पांडवों ने की थी स्थापना - uttar pradesh

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित लिलौटीनाथ मंदिर की महिमा अपरमपार है. मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां आज भी शिवलिंग की पूजा भक्तों के पहुंचने से पहले हो जाती है और शिवलिंग रंग भी बदलता है.

लिलौटीनाथ मंदिर की महिमा
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Published : Jul 18, 2019, 11:51 AM IST

Updated : Jul 18, 2019, 1:33 PM IST

लखीमपुर खीरीः जिले में लिलौटीनाथ मंदिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी. शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर स्थापित है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव तराई के इस बियाबान जंगल में विचरण करते हुए आए थे. भगवान शिव को खुश करने को पाडंवों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस शिवलिंग की स्थापना की थी. इस मंदिर की खास बात यह है कि आज भी यहां शिवलिंग की पूजा भक्तों के पहुंचने से पहले हो जाती है, यहां श्रावण मास में मेला लगता है.

जानिये लिलौटीनाथ मंदिर की महिमा के बारे में.

महाभारत कालीन है यह मंदिर

शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर है. सावन में मंदिर के पास की हरियाली किसी का भी मन मोह लेती है. मंदिर के पुजारी शंकर गिरी कहते हैं कि मान्यता है कि जो लिलौटी बाबा की शरण मे आ गया उसका बेड़ा पार हो जाता है. लिलौटीनाथ का मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है. शहर से उत्तर दिशा में आज जहां गन्ने की लहलहाती फसल दिखती कभी वहां वन क्षेत्र था, जहां पांडव अज्ञातवास पर आए थे. कुछ लोग अश्वत्थामा तो कुछ आला ऊदल से जोड़कर इस मंदिर की पूजा की कहानी को बताते हैं.

शिवलिंग का बदलता है रंग

जुनई और कंडवा नदी के संगम पर बसे इस मंदिर की मान्यता खीरी ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी है. खास यह है कि शिवलिंग दिन मे कई बार रंग बदलता है. मान्यता है कि सुबह के समय काला, दोपहर में भूरा और रात के समय हल्की सफेदी शिवलिंग को विशेष बनाती है.

लाखों की तादाद में कांवड़िए बाबा को चढ़ाते हैं जल

इससे पहले मंदिर के शिवलिंग को जाल से ढकने को लेकर काफी विवाद भी हो चुका है. सावन के ठीक पहले शिवलिंग के ऊपर से जाल हटवा दिया गया है. सावन भर लिलौटी बाबा मंदिर पर भक्त रामचरितमानस का पाठ, भंडारे, रुद्राभिषेक करते हैं. यहां लाखों की तादाद में कांवड़िए दर्शन के लिये आते हैं.

लखीमपुर खीरीः जिले में लिलौटीनाथ मंदिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी. शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर स्थापित है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव तराई के इस बियाबान जंगल में विचरण करते हुए आए थे. भगवान शिव को खुश करने को पाडंवों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस शिवलिंग की स्थापना की थी. इस मंदिर की खास बात यह है कि आज भी यहां शिवलिंग की पूजा भक्तों के पहुंचने से पहले हो जाती है, यहां श्रावण मास में मेला लगता है.

जानिये लिलौटीनाथ मंदिर की महिमा के बारे में.

महाभारत कालीन है यह मंदिर

शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीनाथ भगवान का मंदिर है. सावन में मंदिर के पास की हरियाली किसी का भी मन मोह लेती है. मंदिर के पुजारी शंकर गिरी कहते हैं कि मान्यता है कि जो लिलौटी बाबा की शरण मे आ गया उसका बेड़ा पार हो जाता है. लिलौटीनाथ का मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है. शहर से उत्तर दिशा में आज जहां गन्ने की लहलहाती फसल दिखती कभी वहां वन क्षेत्र था, जहां पांडव अज्ञातवास पर आए थे. कुछ लोग अश्वत्थामा तो कुछ आला ऊदल से जोड़कर इस मंदिर की पूजा की कहानी को बताते हैं.

शिवलिंग का बदलता है रंग

जुनई और कंडवा नदी के संगम पर बसे इस मंदिर की मान्यता खीरी ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी है. खास यह है कि शिवलिंग दिन मे कई बार रंग बदलता है. मान्यता है कि सुबह के समय काला, दोपहर में भूरा और रात के समय हल्की सफेदी शिवलिंग को विशेष बनाती है.

लाखों की तादाद में कांवड़िए बाबा को चढ़ाते हैं जल

इससे पहले मंदिर के शिवलिंग को जाल से ढकने को लेकर काफी विवाद भी हो चुका है. सावन के ठीक पहले शिवलिंग के ऊपर से जाल हटवा दिया गया है. सावन भर लिलौटी बाबा मंदिर पर भक्त रामचरितमानस का पाठ, भंडारे, रुद्राभिषेक करते हैं. यहां लाखों की तादाद में कांवड़िए दर्शन के लिये आते हैं.

Intro:लखीमपुर-यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में लिलौटीनाथ मन्दिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पाण्डव तराई के इस बियाबान जँगल में विचरण करते हुए आए थे। भगवान शिव को खुश करने को पाण्डवों नेभगवां श्रीकृष्ण के साथ इस शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर की खास बात ये है कि यहाँ आज भी शिवलिंग की पूजा भक्तों के पहुँचने के पहले हो जाती है। शिवलिंग रँग भी बदलता है।


Body:*शहर से आठ किलोमीटर दूर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर लिलौटीं नाथ भगवान का मंदिर है।
*शहर से उत्तर दिशा में आज जहां गन्ने की लहलहाती फसल दिखती कभी वहाँ वन क्षेत्र था। जहाँ पांडव अज्ञातवास में आए थे।
*लिलौटीनाथ महाभारतकालीन मन्दिर माना जाता है।
*मन्दिर में लगा शिवलिंग तीन बार रँग बदलता है। सुबह काला दोपहर में भूरा
शाम को सफेदी लिए होता है।




Conclusion:*जमुई और कंडवा नदी के संगम पर बसे इस मंदिर की मान्यता खीरी ही नहीं आसपास के जिलों में भी है।
*सावन में मन्दिर के पास की हरियाली किसी का भी मन मोह लेती है।
*कुछ लोग अश्वत्थामा तो कुछ आलाऊदल से जोड़कर इस मंदिर की पूजा की कहानी को बताते हैं।
*मन्दिर के पुजारी शकर गिरी कहते हैं कि मन्दिर की मान्यता इतनी है कि जो लिलौटीं बाबा की शरण मे आ गया उसका बेड़ा पार हो जाता।
*मन्दिर के शिवलिंग को जाल से ढकने को लेकर काफी विवाद भी हो चुका। सावन के ठीक पहले शिवलिंग के ऊपर से जाल हटवा दिया गया है।
*सावन भर लिलौटीं बाबा के भक्त रामचरितमानस का पाठ,भंडारे,रुद्राभिषेक करते हैं। अपनी मनौतियाँ मानते हैं,और मेला चलता रहता है। लाखों की तादात में कावड़िया यहां आते हैं।
बाइट-पुजारी,
बाइट भक्त
पीटीसी
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प्रशान्त पाण्डेय
9984152598
Last Updated : Jul 18, 2019, 1:33 PM IST
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