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International Tiger Day: तराई के बाघों को रास आ रहे गन्ने के खेत! - गन्ने के खेत में बाघ

पूरे विश्व में 29 जुलाई को International Tiger Day मनाया जाता है. बाघों की सरंक्षण को लेकर देश में सरकार प्रमुखता से कदम उठा रही है. लेकिन, बीते कुछ समय से बाघ जंगलों से निकलकर उससे सटे गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बना रहे हैं, जिसके चलते जंगलों के आसपास रहने वाले किसानों को बाघों के असली संरक्षक माना जा रहा है. लेकिन बाघों के जंगलों से निकलने की असली वजह क्या है. चलिए आपको बताते हैं.

International Tiger Day
International Tiger Day
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Published : Jul 29, 2023, 1:31 PM IST

गन्ने के खेत को तराई के बाघ बना रहे अपना नया आशियाना.

लखीमपुर खीरीः कहते है कि बाघ बचेंगे तभी जंगल बचेंगे, पर यूपी की तराई के बाघ जंगलों से निकलकर गन्ने के खेतों को अपना नया आशियाना बनाते जा रहे. जितने बाघ जंगल में हैं, कमोवेश उतने ही बाघ गन्ने के खेतों में अपना परिवार पाल रहे. पर सवाल ये है कि क्या बाघों को जंगल रास नहीं आ रहा या जंगलों में कोई डिस्टर्बेंस है, जिससे बाघ जंगलों को छोड़ गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बना रहे. क्या जंगल में बाघों के लिए भोजन की कमी है. ऐसे कई सवाल शायद जो इस वक्त हमारे सामने है.

Tigers in india
बरसात के दिनों में जंगल से सटे गन्ने के खेतों में आ जाते हैं बाघ.

दुधवा के फील्ड डायरेक्टर रहे संजय कुमार पाठक कहते हैं, 'जंगलों के किनारे तक आदमी ने घुसपैठ कर ली, बाघ तो अपनी सरजमीं में ही रह रहे. उन्हें क्या पता गन्ना क्या और नरकुल और खागर क्या. बाघों को तो गन्ने के खेत भी जंगल ही नजर आते हैं. जंगलों में घुसपैठ और मानवीय दबाव तो है ही पर भोजन की कमी नहीं.' सीनियर आईएफएस और दुधवा टाइगर रिजर्व में फील्ड डायरेक्टर रह चुके रमेश पाण्डेय कहते हैं, 'बाघों को बचाने में तराई के किसानों का भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जंगलों के आसपास रह रहे किसान बाघों के असली संरक्षक हैं.'

Tigers in india
बरसात के महीनों में गन्ने के खेतों में उन्हें नहीं होती कोई परेशानी.

बाघों का शिकारः यूपी की तराई की सरजमीं बाघों की पसंदीदा जगह रही है. आजादी के पहले से इस इलाके में बाघों का साम्राज्य रहा है. लेकिन राजे रजवाड़े के शौक और शिकारियों की नजर इन जंगलों पर लगी तो बाघों को बेतहाशा शिकार कर मारा गया. लखीमपुर खीरी जिले के पलिया इलाके में रहने वाले बुजुर्ग किसान बेनी सिंह बताते हैं, '4-4 बाघों को एक साथ मारा गया, उसके साथ फोटो खिंचवाई गईं. बाघों की खालें शील्ड के रूप में रजवाड़ो के ड्राइंग रूम की शोभा बनीं. पर जंगल किनारे जब से गन्ने की फसल होने लगी बाघों को एक सुरक्षित जगह मिल गई. हमारे खेतों में कई बार बाघिन ने शावकों को जन्म दिया. हम भी उन्हें परेशान नहीं करते.'

Tigers in india
जंगल से सटे इलाकों में कई बाघिन ने दिया शावकों को जन्म.

प्रोजेक्ट टाइगरः भारत में 1 अप्रैल 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर लागू किया गया. उद्देश्य था बाघों का संरक्षण और संवर्धन. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने व्यक्तिगत रुचि लेकर बाघों के संरक्षण को देश के नौ टाइगर रिजर्व में प्रोजेक्ट टाइगर लागू किया. तब से बाघों के शिकार को लेकर नए नियम कानून बने. जंगलों को भी रिजर्व टाइगर के रूप में विकसित किया गया.

यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व को भी 1987 में टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला. यहां बाघों की तादात तब तक काफी कम हो गई थी. पर जंगल में रह रही थारू जनजाति और आसपास के किसानों को भी बाघों को संरक्षित करने को प्रेरित किया गया. तराई के इस इलाके में जंगल किनारे गन्ने की खेती होने लगी, जो बाघों के लिए एक तरफ चुनौती थी तो दूसरी तरफ एक बेहतर पर्यावास उपलब्ध कराने वाली.

Tigers in india
तराई के बाघ जंगलों से निकलकर गन्ने के खेतों को बना रहे अपना नया आशियाना.

गन्ने के खेत सुरक्षित ठिकानाः दक्षिण खीरी वन प्रभाग के डीएफओ संजय बिस्वाल कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि सब के सब बाघ जंगल छोड़ गन्ने के खेतों में आ गए. इन बाघों को नहीं पता होता कि कौन गन्ने का खेत है और कौन फूस. उसे बस सुरक्षित ठिकाना चाहिए होता है. कभी-कभी ज्यादातर बरसात के दिनों में बाघ जंगल से सटे गन्ने के खेतों में आ जाते है. 4 से 5 महीनों तक गन्ने के खेतों में कोई डिस्टर्बेंस नहीं रहता. फिर बाघों को जंगली सुअर, नीलगाय जैसा बढ़िया शिकार भी मिल जाता. बाघ हो या कोई भी इंसान दाना पानी और सुरक्षित रहने का ठिकाना सबको अच्छा लगता.'

बढ़ता जा रहा बाघों और मनुष्य में द्वंद्वः 18 जुलाई को 22 साल के रोहित की महेशपुर रेंज के उदयपुर गांव शव मिला. गन्ने के खेत में बाघ के हमले से उसकी मौत हो गई. वहीं, 27 जुलाई को पीलीभीत जिले के माडोटांडा के सेल्हा गांव में 10 साल की बच्ची को बाघ उठा ले गया. बाद में बच्ची का शव जंगल में मिला. जंगल किनारे तक फैल चुके गन्ने के खेतों में बाघों की संतति के फलने-फूलने के साथ ही मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ गई हैं. आए दिन बाघों के हमलों में मौतें हो रही हैं. इससे बाघों को लेकर दहशत भी बढ़ गई है. जानकारों का कहना है कि बाघ जंगल छोड़ इन दिनों गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाए हुए हैं. ऐसे में जब किसान या लोग खेतों में चारा लेने या जानवर चराने जा रहे तो बाघ से उनका आमना सामना हो जा रहा. वो रिहायशी इलाकों में भी घुस जा रहे.

Tigers in india
जंगल से सटे इलाकों में बढ़ी बाघों को लेकर दहशत.

बाघों के हमले से मौतः दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रहे संजय पाठक कहते हैं,' ज्यादातर घटनाएं जंगल के आसपास होती हैं. इन इलाकों में हो रही बारिश की वजह से जंगलों में पानी भर गया है. बाघ जंगल छोड़ गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाए हुए हैं. ऐसे में जब कभी आदमी से उनका आमना-सामना हो जा रहा है तो बाघ अपनी सुरक्षा में हमलावर हो जा रहे हैं. खीरी जिले में एक साल में करीब 24 से ज्यादा लोगों की मौत बाघों के हमलों में हो चुकी है. ये तादात इसलिए चिंताजनक है कि ये आंकड़ा पिछले डेढ़ सालों का है.'

आबादी के करीब पहुंच रहे बाघः दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की तादाद बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं. पिछले 2 सालों से बाघों की आमद की सूचनाएं पूरे जिले में जंगल से सटे इलाकों से आती रहती हैं. कभी बाघ किसी के पशु पर हमला कर दे रहे हैं. तो कभी खेतों में गए लोगों पर. अब सवाल उठता है कि क्या विभाग की तादाद इतनी बढ़ गई है कि उनकी रिहाई की जगह कम पड़ गई जो बाघ जंगल से निकलकर गन्ने के खेतों और आबादी के नजदीक पहुंच रहे हैं?

बढ़ी है बाघों की तादादः डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कोऑर्डिनेटर मुदित गुप्ता कहते हैं, 'यह बात सच है कि पिछले कुछ सालों में बाघों की तादाद यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व और आसपास पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बढ़ी है. पर बाघ ऐसे ही किसी मनुष्य पर हमले नहीं करता. उसका स्वभाव हमलावर नहीं होता. कभी-कभी एक्सिडेंटल तो कभी शावकों की सुरक्षा को लेकर बाघिन के आसपास जब मनुष्य टकरा जाता तो घटनाएं हो जातीं.'

वन विभाग की लापरवाही या कमजोर मैनेजमेंटः बाघों के बढ़ते हमलों में वन विभाग को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. वन विभाग के पास कोई ऐसा मैकेनिज्म नहीं है, जिससे बाघों के हमलों को कम किया जा सके. संजय पाठक कहते हैं,' यह सही है कि कुछ कमियां विभाग में हैं. मैन पावर की भी कमी है. पर बाघों के बढ़ते हमलों के मामले में वन विभाग लापरवाही या कोताही बरतता है ऐसा नहीं. जहां से भी हमलों की या बाघ के लोकेशन की खबर मिलती तुरन्त टीमों को लगा कर मानीटरिंग की जाती है.'

क्या बाढ़ ने बढ़ा दिए बाघों के हमलेः इन दिनों शारदा, मोहाना, सुहेली, घाघरा आदि नदियां उफान पर हैं. नेपाल की नदियों से आने वाला पानी तराई के इस पूरे इलाके में फैला हुआ है और इस पूरे इलाके में ही बाघों के हमले अचानक बढ़ गए हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व के आसपास के बेलरायां, भीरा, मैलानी, पलिया, धौरहरा रेंज में बाघों के हमलों की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.

हैबिटेट डिस्टर्बेंस असली समस्याः वाइल्ड लाइफ को नजदीक से जानने और परखने वाले मोहम्मद शकील कहते हैं, 'ये सच है कि बरसात में बाघों को जंगल में पानी बढ़ने और बाढ़ आने से ऊंचे स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है. पर बाढ़ उसके लिए परेशानी नहीं. बाघ बेहतरीन तैराक होता है. जंगल में पानी भरने से ज्यादातर हर्बीवोरस ऊंची जगहों पर चले जाते. उनके पीछे-पीछे बाघ भी भोजन की तलाश में पहुंच जाते. ये समस्या हैबिटेट डिस्टर्बेंस की है. तराई के जंगलों में बाघ आज से नहीं रह रहे. वो उनके पुरखों की धरती रही है. हां मनुष्यों ने जरूर बाघों के घरों को काटकर अपने घर आबाद कर लिए हैं, बाघों का 'फूड शेल्टर' डिस्टर्ब हो रहा. इसलिए बाघ माइग्रेट कर रहे हैं.'

ये भी पढ़ेंः पर्यावरण से खिलवाड़ के कारण प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ा, उठाने होंगे जरूरी कदम

गन्ने के खेत को तराई के बाघ बना रहे अपना नया आशियाना.

लखीमपुर खीरीः कहते है कि बाघ बचेंगे तभी जंगल बचेंगे, पर यूपी की तराई के बाघ जंगलों से निकलकर गन्ने के खेतों को अपना नया आशियाना बनाते जा रहे. जितने बाघ जंगल में हैं, कमोवेश उतने ही बाघ गन्ने के खेतों में अपना परिवार पाल रहे. पर सवाल ये है कि क्या बाघों को जंगल रास नहीं आ रहा या जंगलों में कोई डिस्टर्बेंस है, जिससे बाघ जंगलों को छोड़ गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बना रहे. क्या जंगल में बाघों के लिए भोजन की कमी है. ऐसे कई सवाल शायद जो इस वक्त हमारे सामने है.

Tigers in india
बरसात के दिनों में जंगल से सटे गन्ने के खेतों में आ जाते हैं बाघ.

दुधवा के फील्ड डायरेक्टर रहे संजय कुमार पाठक कहते हैं, 'जंगलों के किनारे तक आदमी ने घुसपैठ कर ली, बाघ तो अपनी सरजमीं में ही रह रहे. उन्हें क्या पता गन्ना क्या और नरकुल और खागर क्या. बाघों को तो गन्ने के खेत भी जंगल ही नजर आते हैं. जंगलों में घुसपैठ और मानवीय दबाव तो है ही पर भोजन की कमी नहीं.' सीनियर आईएफएस और दुधवा टाइगर रिजर्व में फील्ड डायरेक्टर रह चुके रमेश पाण्डेय कहते हैं, 'बाघों को बचाने में तराई के किसानों का भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जंगलों के आसपास रह रहे किसान बाघों के असली संरक्षक हैं.'

Tigers in india
बरसात के महीनों में गन्ने के खेतों में उन्हें नहीं होती कोई परेशानी.

बाघों का शिकारः यूपी की तराई की सरजमीं बाघों की पसंदीदा जगह रही है. आजादी के पहले से इस इलाके में बाघों का साम्राज्य रहा है. लेकिन राजे रजवाड़े के शौक और शिकारियों की नजर इन जंगलों पर लगी तो बाघों को बेतहाशा शिकार कर मारा गया. लखीमपुर खीरी जिले के पलिया इलाके में रहने वाले बुजुर्ग किसान बेनी सिंह बताते हैं, '4-4 बाघों को एक साथ मारा गया, उसके साथ फोटो खिंचवाई गईं. बाघों की खालें शील्ड के रूप में रजवाड़ो के ड्राइंग रूम की शोभा बनीं. पर जंगल किनारे जब से गन्ने की फसल होने लगी बाघों को एक सुरक्षित जगह मिल गई. हमारे खेतों में कई बार बाघिन ने शावकों को जन्म दिया. हम भी उन्हें परेशान नहीं करते.'

Tigers in india
जंगल से सटे इलाकों में कई बाघिन ने दिया शावकों को जन्म.

प्रोजेक्ट टाइगरः भारत में 1 अप्रैल 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर लागू किया गया. उद्देश्य था बाघों का संरक्षण और संवर्धन. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने व्यक्तिगत रुचि लेकर बाघों के संरक्षण को देश के नौ टाइगर रिजर्व में प्रोजेक्ट टाइगर लागू किया. तब से बाघों के शिकार को लेकर नए नियम कानून बने. जंगलों को भी रिजर्व टाइगर के रूप में विकसित किया गया.

यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व को भी 1987 में टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला. यहां बाघों की तादात तब तक काफी कम हो गई थी. पर जंगल में रह रही थारू जनजाति और आसपास के किसानों को भी बाघों को संरक्षित करने को प्रेरित किया गया. तराई के इस इलाके में जंगल किनारे गन्ने की खेती होने लगी, जो बाघों के लिए एक तरफ चुनौती थी तो दूसरी तरफ एक बेहतर पर्यावास उपलब्ध कराने वाली.

Tigers in india
तराई के बाघ जंगलों से निकलकर गन्ने के खेतों को बना रहे अपना नया आशियाना.

गन्ने के खेत सुरक्षित ठिकानाः दक्षिण खीरी वन प्रभाग के डीएफओ संजय बिस्वाल कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि सब के सब बाघ जंगल छोड़ गन्ने के खेतों में आ गए. इन बाघों को नहीं पता होता कि कौन गन्ने का खेत है और कौन फूस. उसे बस सुरक्षित ठिकाना चाहिए होता है. कभी-कभी ज्यादातर बरसात के दिनों में बाघ जंगल से सटे गन्ने के खेतों में आ जाते है. 4 से 5 महीनों तक गन्ने के खेतों में कोई डिस्टर्बेंस नहीं रहता. फिर बाघों को जंगली सुअर, नीलगाय जैसा बढ़िया शिकार भी मिल जाता. बाघ हो या कोई भी इंसान दाना पानी और सुरक्षित रहने का ठिकाना सबको अच्छा लगता.'

बढ़ता जा रहा बाघों और मनुष्य में द्वंद्वः 18 जुलाई को 22 साल के रोहित की महेशपुर रेंज के उदयपुर गांव शव मिला. गन्ने के खेत में बाघ के हमले से उसकी मौत हो गई. वहीं, 27 जुलाई को पीलीभीत जिले के माडोटांडा के सेल्हा गांव में 10 साल की बच्ची को बाघ उठा ले गया. बाद में बच्ची का शव जंगल में मिला. जंगल किनारे तक फैल चुके गन्ने के खेतों में बाघों की संतति के फलने-फूलने के साथ ही मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ गई हैं. आए दिन बाघों के हमलों में मौतें हो रही हैं. इससे बाघों को लेकर दहशत भी बढ़ गई है. जानकारों का कहना है कि बाघ जंगल छोड़ इन दिनों गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाए हुए हैं. ऐसे में जब किसान या लोग खेतों में चारा लेने या जानवर चराने जा रहे तो बाघ से उनका आमना सामना हो जा रहा. वो रिहायशी इलाकों में भी घुस जा रहे.

Tigers in india
जंगल से सटे इलाकों में बढ़ी बाघों को लेकर दहशत.

बाघों के हमले से मौतः दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रहे संजय पाठक कहते हैं,' ज्यादातर घटनाएं जंगल के आसपास होती हैं. इन इलाकों में हो रही बारिश की वजह से जंगलों में पानी भर गया है. बाघ जंगल छोड़ गन्ने के खेतों को अपना आशियाना बनाए हुए हैं. ऐसे में जब कभी आदमी से उनका आमना-सामना हो जा रहा है तो बाघ अपनी सुरक्षा में हमलावर हो जा रहे हैं. खीरी जिले में एक साल में करीब 24 से ज्यादा लोगों की मौत बाघों के हमलों में हो चुकी है. ये तादात इसलिए चिंताजनक है कि ये आंकड़ा पिछले डेढ़ सालों का है.'

आबादी के करीब पहुंच रहे बाघः दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की तादाद बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं. पिछले 2 सालों से बाघों की आमद की सूचनाएं पूरे जिले में जंगल से सटे इलाकों से आती रहती हैं. कभी बाघ किसी के पशु पर हमला कर दे रहे हैं. तो कभी खेतों में गए लोगों पर. अब सवाल उठता है कि क्या विभाग की तादाद इतनी बढ़ गई है कि उनकी रिहाई की जगह कम पड़ गई जो बाघ जंगल से निकलकर गन्ने के खेतों और आबादी के नजदीक पहुंच रहे हैं?

बढ़ी है बाघों की तादादः डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कोऑर्डिनेटर मुदित गुप्ता कहते हैं, 'यह बात सच है कि पिछले कुछ सालों में बाघों की तादाद यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व और आसपास पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बढ़ी है. पर बाघ ऐसे ही किसी मनुष्य पर हमले नहीं करता. उसका स्वभाव हमलावर नहीं होता. कभी-कभी एक्सिडेंटल तो कभी शावकों की सुरक्षा को लेकर बाघिन के आसपास जब मनुष्य टकरा जाता तो घटनाएं हो जातीं.'

वन विभाग की लापरवाही या कमजोर मैनेजमेंटः बाघों के बढ़ते हमलों में वन विभाग को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. वन विभाग के पास कोई ऐसा मैकेनिज्म नहीं है, जिससे बाघों के हमलों को कम किया जा सके. संजय पाठक कहते हैं,' यह सही है कि कुछ कमियां विभाग में हैं. मैन पावर की भी कमी है. पर बाघों के बढ़ते हमलों के मामले में वन विभाग लापरवाही या कोताही बरतता है ऐसा नहीं. जहां से भी हमलों की या बाघ के लोकेशन की खबर मिलती तुरन्त टीमों को लगा कर मानीटरिंग की जाती है.'

क्या बाढ़ ने बढ़ा दिए बाघों के हमलेः इन दिनों शारदा, मोहाना, सुहेली, घाघरा आदि नदियां उफान पर हैं. नेपाल की नदियों से आने वाला पानी तराई के इस पूरे इलाके में फैला हुआ है और इस पूरे इलाके में ही बाघों के हमले अचानक बढ़ गए हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व के आसपास के बेलरायां, भीरा, मैलानी, पलिया, धौरहरा रेंज में बाघों के हमलों की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.

हैबिटेट डिस्टर्बेंस असली समस्याः वाइल्ड लाइफ को नजदीक से जानने और परखने वाले मोहम्मद शकील कहते हैं, 'ये सच है कि बरसात में बाघों को जंगल में पानी बढ़ने और बाढ़ आने से ऊंचे स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है. पर बाढ़ उसके लिए परेशानी नहीं. बाघ बेहतरीन तैराक होता है. जंगल में पानी भरने से ज्यादातर हर्बीवोरस ऊंची जगहों पर चले जाते. उनके पीछे-पीछे बाघ भी भोजन की तलाश में पहुंच जाते. ये समस्या हैबिटेट डिस्टर्बेंस की है. तराई के जंगलों में बाघ आज से नहीं रह रहे. वो उनके पुरखों की धरती रही है. हां मनुष्यों ने जरूर बाघों के घरों को काटकर अपने घर आबाद कर लिए हैं, बाघों का 'फूड शेल्टर' डिस्टर्ब हो रहा. इसलिए बाघ माइग्रेट कर रहे हैं.'

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