कुशीनगर : UP Assembly Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की तारीखों के एलान के साथ ही बीजेपी में बड़ा सियासी उलटफेर हो गया है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. साथ ही ओबीसी के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा का दामन थाम लिया है. इस्तीफे के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनके साथ तस्वीर भी ट्वीट की है.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1996 में बसपा की सदस्यता ली और प्रदेश महासचिव बने. इसके बाद उन्होंने बसपा के टिकट पर डलमऊ रायबरेली से विधानसभा सदस्य बने और चार बार विधायक बने. मई 2002 से अगस्त 2003 तक उन्हें मंत्री का दर्जा मिला और अगस्त 2003 से सितंबर 2003 तक नेता प्रतिपक्ष भी रहे. वर्ष 2007 से 2009 तक मंत्री रहे. जनवरी 2008 में उन्हें बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. 2009 में हुए उपचुनाव में पडरौना विधानसभा से केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह की मां को हरा स्वामी प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल की.
2012 में मिली हार के बाद मायावती ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर नेता प्रतिपक्ष बनाया और उनकी जगह रामअचल राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद 2016 में उन्होंने बसपा से बगावत कर स्तीफा दिया. इसके बाद सपा में शामिल होने की चर्चा तेज हुई, लेकिन वो भाजपा में शामिल हुए. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर एक बार सदर विधानसभा सीट पडरौना से विधायक बने. पडरौना सदर विधायक प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री पद पर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर इसबार पार्टी में ही अन्तः कलह थी जो उनके पार्टी छोड़ते ही सामने आ गयी.
बता दें, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक और एमए की डिग्री की हासिल की है. 1980 में उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से कदम रखा. वह इलाहाबाद युवा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य बने और जून 1981 से सन 1989 तक महामंत्री पद पर रहे. इसके बाद 1989 से सन 1991 तक यूपी लोकदल के मुख्य सचिव रहे. मौर्य 1991 से 1995 तक उत्तर प्रदेश जनता दल के महासचिव पद पर रहे. 2009 में बसपा पार्टी की टिकट पर उपचुनाव सदर विधानसभा पडरौना के विधायक बने. इस चुनाव में कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह की माता से प्रतिद्वंद्वी रही. ओबीसी की जातियों ने इस विधानसभा के 28% जातियों ने 6 फीसदी कब्जा रखने वाले कुशवाहा वोट इनके समर्थक माने जाते हैं.
सदर विधायक स्वामी प्रसाद से आम लोगों में भी नाराजगी
कुशीनगर में 12 साल से पैर जमाये रखे स्वामी प्रसाद मौर्या के बारे में राजनैतिक जानकार संजय श्रीवास्तव का कहना है कि इनका जनाधार काफी कम हुआ है. क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए इस बार लोगों में नाराजगी भी बहुत देखी जा रही है. यही कारण है कि इस बार सदर विधानसभा से उनके टिकट का भाजपा से कटने की बात चर्चा में थी, लेकिन फिर भी अगर भाजपा से लड़ते तो बेहतर टक्कर देते, लेकिन एकतरफा जीत की उम्मीद कम थी. और इस बार पार्टी में अंतर विरोध के कारण टिकट भी कटने की संभावना थी.
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यादव और कुशवाहा को एक करने की कोशिश
कुशीनगर जिले में यादव बिरादरी और कुशवाहा बिरादरी के बीच एक कहावत काफी चर्चित रही है. कुशीनगर में "भंटा (बैगन-कोयरी) और डांटा (लाठी-अहीर) कभी एक नहीं होंगे." इसका प्रभाव भी देखा जाता हैं. लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में सपा ने नाथुनी कुशीनगर को अपना प्रत्याशी बनाया. सपा ने लोकसभा चुनाव में सीट तो नहीं निकली, पर 2017 विधानसभा चुनाव में जिले की सभी सीटों के हारने के बाद कुछ स्थिति सुधरी दिखाई दी. इसमें भाजपा पहली तो सपा दूसरा स्थान पर रही.
इस बार स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़कर सपा में शामिल होने से पडरौना विधानसभा में कुछ खास असर तो नहीं होगा. क्योंकि कुछ कुशवाहा जातियों को छोड़ दिया जाए तो स्थानीय लोगों में विधायक से नाराजगी हैं. साथ ही अगर स्वामी प्रसाद मौर्या को टिकट दिया गया तो पुराने नेताओं और यादव जाती के लोगों की नाराजगी भी देखी जा सकती है. वहीं भाजपा भी कुशवाहा वोटरों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली हैं.
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