कुशीनगर: हर मां-बाप का सपना होता हैं कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बुढ़ापे में उसका सहारा बने. लेकिन सांस की बीमारी ने कुशीनगर में एक पिता के इकलौते 35 वर्षीय बेटे अंकुर को इतना मजबूर कर दिया है कि उसने अपने पिता के हाथों अपनी इच्छा मृत्यु की अनुमति का आवेदन राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश को भेजा है. अंकुर का कहना है समय रहते या तो सरकार उसका इलाज करा दे नहीं तो उसे इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी जाए, क्योंकि वह अपने पिता और बूढ़ी दादी का सहारा तो नहीं बन सका पर अब और अधिक बोझ नहीं बनना चाहता. अंकुर की बूढ़ी दादी के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे हैं. वो सभी से अपने पोते को बचाने की गुहार लगाते रहती हैं.
मदद की आस में दर-दर भटक रहा बेबस पिता
नगरपालिका पडरौना साहबगंज मोहल्ले के रहने वाले राकेश श्रीवास्तव मूल रूप से गोरखपुर के सहजनवा पाली के रहने वाले थे. लेकिन चाचा की नौकरी कटकुई मिल कुशीनगर में होने के कारण उन्हीं के साथ यहां आ गए थे. यही पढ़ाई लिखाई किए और फिर शादी के बाद पडरौना में एक किराए के मकान में 40 वर्षों से रह रहे हैं. यही पत्नी संजीता देवी को श्वास रोग ने 18 वर्ष पहले ही मौत की नींद सुला दिया.
राकेश श्रीवास्तव एक निजी कंपनी में बीमा एजेंट हैं और इकलौते बेटे अंकुर जिसको श्वास रोग (अस्थमा) की समस्या है का इलाज करा रहे हैं. पत्नी और पिता की मौत के बाद बेटे अंकुर को पढ़ाया, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा होकर उनका और उनकी 95 वर्षीय मां सुभावती को सहारा दे. अंकुर हैदराबाद से ग्राफिक्स डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रहा था, जहां बीते अक्टूबर से ही उसकी तबीयत काफी बिगड़ गई और तभी से पिता अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं. आज उनका बेटा 24 घंटे ऑक्सीजन पर ही जी रहा है.
इसी बीमारी ने ली थी मां की जान
मां से मिले श्वास रोग ने अंकुर के पिता का सपना सिर्फ तोड़ा ही नहीं, बल्कि जिसके सहारे उन्होंने अपने बुढ़ापे को बिताने की चाहत पाल रखी थी, आज वो भी बिस्तर पर बीमार पड़ा है. हालांकि, पिता ने बेटे के इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ा. कई महीनों से दिल्ली के एम्स, मेदांता और राष्ट्रीय क्षय एवं श्वास रोग संस्थान जैसे अस्पतालों के चक्कर लगाकर इलाज कराते रहे, जिसमें उनकी पूरी जमा पूंजी टूट गई. यहां तक कि आज उन पर लाखों रुपये का कर्ज है.
पिता राकेश ने अपनी सामर्थ के अनुसार पूरी कोशिश किया पर डॉक्टरों ने साफ कर दिया है कि दो माह के अंदर अगर हैदराबाद में अंकुर का फेफड़ों का ट्रांसप्लांट नहीं हुआ तो उसे बचाना मुश्किल है. वहीं, इसमें करीब 60 लाख रुपयों का खर्च है. राकेश ने बताया कि उनका व उनके परिवार के लोगों का आयुष्मान योजना का कार्ड भी नहीं बना है.
वे गरीब आदमी भला इतने पैसे कहां से लाएं. एक तरफ बूढ़ी मां को देखना है तो दूसरी तरफ बीमार बेटे को. 24 घंटे ऑक्सीजन की जरूरत होती है. पत्र लिखकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से भी मदद मांगी गई पर आज तक कोई जवाब नहीं मिला. ऐसे में अब मेरे बेटे ने मेरे हाथों में इच्छामृत्यु की अनुमति को राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश को देने के लिए पत्र दिया है.
अंकुर का कहना है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा है, उसकी पीड़ा और अधिक बढ़ते जा रही है. इस उम्र में उसे अपने पिता और दादी का सहारा बनना चाहिए था, लेकिन वो उनपर बोझ बन गया है. उसके इलाज में पिता की जमा पूंजी तक टूट गई है. अब बामुश्किल घर किसी तरह से चल रहा है. आलम यह है कि पिता लाखों रुपये के कर्ज तले बदे हैं. हालांकि, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई गई लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. यही कारण है कि वो अब इच्छामृत्यु को राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति चाहता है.
वहीं, पडरौना नगर पालिका अध्यक्ष विनय जायसवाल ने बताया कि हम लोगों ने एक मुहिम चलाई है. जिससे अंकुर को नया जीवन दिया जा सके. इसी क्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अंकुर के इलाज के लिए मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से हर संभव मदद कराने की कोशिश करूंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार हमारा साथ देगी और हम हैदराबाद में होने वाले फेफड़ा प्रत्यारोपण को जल्द से जल्द करा कर अंकुर को बचा लेंगे.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप