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गुरुवार से प्रारंभ हो रहा श्रावण माह, जाने रुद्राभिषेक की विधि और उसके फायदे

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Published : Jul 10, 2022, 5:54 PM IST

श्रावण माह गुरुवार को प्रारम्भ हो रहा है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए और अपने कष्टों को काटने के लिए इस माह में रुद्राभिषेक किया जाता है. जाने रिपोर्ट में रुद्राभिषेक के तरीके...

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रुद्राभिषेक की विधि

कुशीनगर: इस वर्ष श्रावण माह गुरुवार को प्रारम्भ हो रहा है. गुरुवार को प्रतिपदा तिथि के दिन, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है. महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है कि इस माह में शिव आराधना, शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रावण माघ में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है.

रुद्राभिषेक की विधि
रुद्राभिषेक की विधि
इस बार श्रावण में चार सोमवार पड़ रहे है.पूजन में भगवान शिव को सर्वप्रथम जल धारा से स्नान कराकर पंचामृत स्नान व बृहदजलधारा स्नान कराकर भष्मादि लगाने के बाद भांग, बेल पत्र, सफेद कनेर का पुष्प, सफेद मदार का पुष्प, धतूरा, शमीपत्र, तुलसी मंजरी, विशेष रूप से चढ़ाकर पूजन किया जाता है. पूजन के पश्चात…ॐ नमःशिवाय मन्त्र या महामृत्युंजय मन्त्र का जप यथा सम्भव करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय
ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय
रुद्राभिषेक करने से कार्य की सिद्धि शीघ्र होती है. धन की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को स्फटिक शिवलिगं पर गोदुग्ध या गन्ने के रस से, सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को गोदुग्ध में चीनी व मेवे के घोल से, शत्रु विनाश के लिए सरसों के तेल से, पुत्र प्राप्ति के लिए मक्खन या घी से, अभीष्ट की प्राप्ति के लिए गोघृत से तथा भूमि भवन एवं वाहन की प्राप्ति के लिए शहद से रुद्राभिषेक करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नव ग्रहों के पीड़ा के निवारणार्थ निम्न द्रव्य विहित है. ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है यदि जन्म कुण्डली में सूर्य से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो, तो श्वेतार्क के पत्तो को पीस कर गंगाजल में मिलाकर रुद्राभिषेक करें.
गुरुवार से प्रारंभ हो रहा श्रावण माह,
गुरुवार से प्रारंभ हो रहा श्रावण माह,

यह भी पढ़ेंःप्राचीन शिव मंदिर में रुद्राभिषेक के साथ मनाया गया नववर्ष


चन्द्रमा से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो तो काले तिल को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, मंगल से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो तो अमृता के रस को गंगाजल में मिलाकर, बुध जनित रोग या कष्ट हो तो विधारा के रस से, गुरु जन्य कष्ट या रोग हो तो हल्दी मिश्रित गोदुग्ध से, शुक्र से सम्बन्धित रोग एवं कष्ट हो तो गोदुग्ध के छाछ से, शनि से सम्बन्धित रोग या कष्ट होने पर शमी के पत्ते को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, राहु जनित कष्ट व पीड़ा होने पर दूर्वा मिश्रित गंगा जल से, केतु जनित कष्ट या रोग होने पर कुश की जड़ को पीसकर गंगाजल में मिश्रित करके रुद्राभिषेक करने पर कष्टों का निवारण होता है व समस्त ग्रह जनित रोग का समन होता है.

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कुशीनगर: इस वर्ष श्रावण माह गुरुवार को प्रारम्भ हो रहा है. गुरुवार को प्रतिपदा तिथि के दिन, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है. महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है कि इस माह में शिव आराधना, शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रावण माघ में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है.

रुद्राभिषेक की विधि
रुद्राभिषेक की विधि
इस बार श्रावण में चार सोमवार पड़ रहे है.पूजन में भगवान शिव को सर्वप्रथम जल धारा से स्नान कराकर पंचामृत स्नान व बृहदजलधारा स्नान कराकर भष्मादि लगाने के बाद भांग, बेल पत्र, सफेद कनेर का पुष्प, सफेद मदार का पुष्प, धतूरा, शमीपत्र, तुलसी मंजरी, विशेष रूप से चढ़ाकर पूजन किया जाता है. पूजन के पश्चात…ॐ नमःशिवाय मन्त्र या महामृत्युंजय मन्त्र का जप यथा सम्भव करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय
ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय
रुद्राभिषेक करने से कार्य की सिद्धि शीघ्र होती है. धन की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को स्फटिक शिवलिगं पर गोदुग्ध या गन्ने के रस से, सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को गोदुग्ध में चीनी व मेवे के घोल से, शत्रु विनाश के लिए सरसों के तेल से, पुत्र प्राप्ति के लिए मक्खन या घी से, अभीष्ट की प्राप्ति के लिए गोघृत से तथा भूमि भवन एवं वाहन की प्राप्ति के लिए शहद से रुद्राभिषेक करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नव ग्रहों के पीड़ा के निवारणार्थ निम्न द्रव्य विहित है. ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है यदि जन्म कुण्डली में सूर्य से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो, तो श्वेतार्क के पत्तो को पीस कर गंगाजल में मिलाकर रुद्राभिषेक करें.
गुरुवार से प्रारंभ हो रहा श्रावण माह,
गुरुवार से प्रारंभ हो रहा श्रावण माह,

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चन्द्रमा से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो तो काले तिल को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, मंगल से सम्बन्धित कष्ट या रोग हो तो अमृता के रस को गंगाजल में मिलाकर, बुध जनित रोग या कष्ट हो तो विधारा के रस से, गुरु जन्य कष्ट या रोग हो तो हल्दी मिश्रित गोदुग्ध से, शुक्र से सम्बन्धित रोग एवं कष्ट हो तो गोदुग्ध के छाछ से, शनि से सम्बन्धित रोग या कष्ट होने पर शमी के पत्ते को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, राहु जनित कष्ट व पीड़ा होने पर दूर्वा मिश्रित गंगा जल से, केतु जनित कष्ट या रोग होने पर कुश की जड़ को पीसकर गंगाजल में मिश्रित करके रुद्राभिषेक करने पर कष्टों का निवारण होता है व समस्त ग्रह जनित रोग का समन होता है.

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