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पल-पल मौत की ओर बढ़ रहा मासूम, गरीब मां और पिता लाचार... - मेडिकल की खबरें

गरीबी बहुत खराब होती है. कभी-कभी यह इतनी खराब होती है कि आंखों के सामने अपने मौत के आगोश में चले जाते हैं और लाचार परिवार कुछ नहीं कर पाता. आज कुछ ऐसी ही दास्तां आपको बयां करने जा रहे हैं. इस गरीब परिवार में एक बेबस मां है और एक लाचार पिता और उनका एक मासूम बेटा जो पल-पल मौत की ओर बढ़ रहा है. आखिर क्या वजह है आइए जानते हैं.

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Published : Dec 30, 2021, 5:23 PM IST

Updated : Dec 30, 2021, 5:52 PM IST

कुशीनगर : कुशीनगर जिले स्थित रामकोला ब्लाक के परोरहा गांव में एक ऐसा परिवार है जो इस वक्त अपनी लाचारी और बेबसी पर आंसू बहा रहा है. मां-बाप आंखों के सामने मासूम को पल-पल मौत की ओर बढ़ते देख रहे हैं लेकिन वे कर कुछ नहीं सकते. मां-बाप ने भी अब सब भगवान पर छोड़ दिया है.

दरअसल, रामकोला क्षेत्र के परोरहा गांव मे दलित परशुराम के एक वर्षीय बेटे रोहन की पीठ पर ट्यूमर है. अब यह काफी बड़ा हो चुका है. पिता परशुराम के मुताबिक उनका आठ सदस्यों का परिवार हैं. सबसे छोटे बेटे रोहन की पीठ पर पहले गांठ बनी जो अब काफी बड़े ट्यूमर का रुप ले चुका है. यह रोज बढ़ता जा रहा है यही कारण हैं कि रोहन बैठ भी नही पाता.

मां की गोद में रोहन.

उनका कहना है कि उसे जब इलाज के लिए एक अस्पताल ले गए तो डॉक्टर ने एक लाख से ज्यादा का खर्च बताया. बहुत मिन्नतें की पर उन्होंने इनकार कर दिया. तबसे बच्चे को घर लेकर आ गया और भगवान के भरोसे छोड़ दिया. ये मान लिया है कि अगर किस्मत होगी तो बेटा साथ देगा. परशुराम के मुताबिक आठ सदस्यीय परिवार का इकलौता सहारा हूं. सरकार से कोई सुविधा नहीं मिली है. राशन कार्ड तो दूर की बात है रहने को घर और पानी के लिए नल भी नही है.


रोहन की मां सुमन कभी बच्चे को दुलारती हैं और उसके ट्यूमर को देखकर भावुक हो जाती हैं. वह उसे कभी गोद मे लेकर खुले आसमान के नीचे चूल्हे पर खाना बनाती ताकि सबका पेट भर सके.

अब मां और बेटे की पीड़ा भी घर के रुटीन कार्य का हिस्सा बनकर रह गयी है. परिवार के पास आर्थिक संसाधन नही होने के कारण पूरा परिवार अपने बच्चे को तिल-तिल मरता देखने को मजबूर है. एक कमरे के बेहद जर्जर घर मे बिस्तर की जगह जमीन पर पुआल बिछाकर परिवार जिंदगी बिता रहा है. परिवार के मुखिया की मेहनत मजदूरी के कारण दो वक्त की रोटी तो मिल जाती हैं पर रोहन के इलाज में लगने वाले पैसे वे कहां से लाएं.

ये भी पढ़ेंः राजनीतिक दल समय पर चाहते हैं चुनाव : मुख्य निर्वाचन आयुक्त



पीड़ित रोहन की मां सुमन से जब बात की गई तो वो रोने लगी और फिर खुद को संभालती हुई उन्होंने बच्चे की पीठ दिखाई और उसकी पीड़ा बताई. उसने कहा कि उनकी जिंदगी बेहद गरीबी में गुजर रही हैं. ऐसे में बेटे के ट्यूमर के लिए लाखों रुपये कहां से लाएं. कोई स्वास्थ्य कार्ड भी नही मिला, जिससे बच्चे का इलाज करवा सकें. मैं चाहती हूं की ये ठीक होकर मेरा साथ दे लेकिन गरीब हूं क्या करूं. अब बस उसकी पीड़ा देखकर ईश्वर से उसे जल्द अपने पास बुलाने का प्रार्थना प्रतिदिन करती हूं.



कप्तानगंज क्षेत्र के उप जिलाधिकारी कल्पना जायसवाल से इस मामले में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि जैसे ही पीड़ित परिवार की सूचना मिली तत्काल मानवीय दृष्टिकोण से क्षेत्रीय लेखपाल योगेन्द्र गुप्ता को उनके घर भेजा गया. प्रशासन की तरफ से कम्बल आदि दिया गया है. शासन का लाभ क्यों नही मिला, इसके लिए परिवार से जुड़ी पूरी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है. कल पीड़ित बच्चे को स्थानीय सीएचसी में प्राथमिक चिकित्सा भी दिलाने का प्रयास होगा.

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कुशीनगर : कुशीनगर जिले स्थित रामकोला ब्लाक के परोरहा गांव में एक ऐसा परिवार है जो इस वक्त अपनी लाचारी और बेबसी पर आंसू बहा रहा है. मां-बाप आंखों के सामने मासूम को पल-पल मौत की ओर बढ़ते देख रहे हैं लेकिन वे कर कुछ नहीं सकते. मां-बाप ने भी अब सब भगवान पर छोड़ दिया है.

दरअसल, रामकोला क्षेत्र के परोरहा गांव मे दलित परशुराम के एक वर्षीय बेटे रोहन की पीठ पर ट्यूमर है. अब यह काफी बड़ा हो चुका है. पिता परशुराम के मुताबिक उनका आठ सदस्यों का परिवार हैं. सबसे छोटे बेटे रोहन की पीठ पर पहले गांठ बनी जो अब काफी बड़े ट्यूमर का रुप ले चुका है. यह रोज बढ़ता जा रहा है यही कारण हैं कि रोहन बैठ भी नही पाता.

मां की गोद में रोहन.

उनका कहना है कि उसे जब इलाज के लिए एक अस्पताल ले गए तो डॉक्टर ने एक लाख से ज्यादा का खर्च बताया. बहुत मिन्नतें की पर उन्होंने इनकार कर दिया. तबसे बच्चे को घर लेकर आ गया और भगवान के भरोसे छोड़ दिया. ये मान लिया है कि अगर किस्मत होगी तो बेटा साथ देगा. परशुराम के मुताबिक आठ सदस्यीय परिवार का इकलौता सहारा हूं. सरकार से कोई सुविधा नहीं मिली है. राशन कार्ड तो दूर की बात है रहने को घर और पानी के लिए नल भी नही है.


रोहन की मां सुमन कभी बच्चे को दुलारती हैं और उसके ट्यूमर को देखकर भावुक हो जाती हैं. वह उसे कभी गोद मे लेकर खुले आसमान के नीचे चूल्हे पर खाना बनाती ताकि सबका पेट भर सके.

अब मां और बेटे की पीड़ा भी घर के रुटीन कार्य का हिस्सा बनकर रह गयी है. परिवार के पास आर्थिक संसाधन नही होने के कारण पूरा परिवार अपने बच्चे को तिल-तिल मरता देखने को मजबूर है. एक कमरे के बेहद जर्जर घर मे बिस्तर की जगह जमीन पर पुआल बिछाकर परिवार जिंदगी बिता रहा है. परिवार के मुखिया की मेहनत मजदूरी के कारण दो वक्त की रोटी तो मिल जाती हैं पर रोहन के इलाज में लगने वाले पैसे वे कहां से लाएं.

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पीड़ित रोहन की मां सुमन से जब बात की गई तो वो रोने लगी और फिर खुद को संभालती हुई उन्होंने बच्चे की पीठ दिखाई और उसकी पीड़ा बताई. उसने कहा कि उनकी जिंदगी बेहद गरीबी में गुजर रही हैं. ऐसे में बेटे के ट्यूमर के लिए लाखों रुपये कहां से लाएं. कोई स्वास्थ्य कार्ड भी नही मिला, जिससे बच्चे का इलाज करवा सकें. मैं चाहती हूं की ये ठीक होकर मेरा साथ दे लेकिन गरीब हूं क्या करूं. अब बस उसकी पीड़ा देखकर ईश्वर से उसे जल्द अपने पास बुलाने का प्रार्थना प्रतिदिन करती हूं.



कप्तानगंज क्षेत्र के उप जिलाधिकारी कल्पना जायसवाल से इस मामले में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि जैसे ही पीड़ित परिवार की सूचना मिली तत्काल मानवीय दृष्टिकोण से क्षेत्रीय लेखपाल योगेन्द्र गुप्ता को उनके घर भेजा गया. प्रशासन की तरफ से कम्बल आदि दिया गया है. शासन का लाभ क्यों नही मिला, इसके लिए परिवार से जुड़ी पूरी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है. कल पीड़ित बच्चे को स्थानीय सीएचसी में प्राथमिक चिकित्सा भी दिलाने का प्रयास होगा.

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Last Updated : Dec 30, 2021, 5:52 PM IST
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