कुशीनगर: जल ही जीवन है, ये तो अपने सुना ही होगा. लेकिन वही जल अगर दूषित हो तो वो जहर बन जाता है. कुशीनगर जिले में भूमिगत पानी के स्रोतों के दूषित होने से जलजनित बीमारियां भी देखी जा रही हैं. सरकार लोगों के लिए शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए योजनाएं चला रही है.
कुटीर उद्योगों में लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए आरओ और बोतलबंद पानी का कारोबार इलाके में तेजी से फैल रहा है. जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी से लोगों को जीवन देने वाले जल के कारोबार में कुछ ऐसे भी धंधेबाज उतर चुके हैं, जिनके लिए मुनाफा ही सब कुछ है. आपकी सेहत से उनका कोई मतलब नहीं है. मानकों और विभागों के नियमों को दरकिनार कर बेखौफ बोतलों में पानी भर मार्केट में भेज रहे हैं.
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फाजिलनगर कस्बे में स्थित पानी के ब्रांड का नाम है 'जीवन ड्रॉप' पर बोतल में मिनरल्स की मात्रा पर गौर करेंगे तो मानकों के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही मिलती है. इतना ही नहीं बोतलों की पैकिंग हो रही हैं, वहा लैब टेक्निशियन भी नहीं रहता, तो समझ रहे होंगे कि मानक का निर्धारण अंदाजे पर ही होता होगा.
जीवन ड्राप प्लांट के मालिक रामविभूति कुशवाहा से इस मामले पर बात की गई तो उन्होंने बताया कि हमारा मिनरल वाटर का प्लांट हैं. डेली बेसिस पर रोज 6 से 7 वर्कर्स काम करते हैं, जहां डिमांड होती हैं वहां भेजी जाती हैं. खासकर कसया, देवरिया और गोपालगंज (बिहार). हमारे पास लैब टेक्नीशियन और लैब हैं, जब प्लांट चलता है तब उनका काम आता है. पानी के गुणवक्ता के बारे में हमारे लैब टेक्नीशियन ही बता सकते हैं. लेकिन वे अवकाश पर है. हमारे पास लाइसेंस है और अधिकारी भी आते रहते हैं.
दरअसल, बोतलबंद पानी के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की स्पष्ट गाइडलाइन है, जिसके आधार पर भारत में भी FSSI ने गाइडलाइन बनाई है, जिसके मुताबिक इन पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 से 1.5 मिली लीटर होनी चाहिए. घुलनशील लवण 500 मिलीलीटर से 1500 मिलीलीटर, सोडियम 9 से 14, कैल्शियम 30 से 55, मैग्निशियम 0 से 15, बिकारबोनिट 100 से 250, नाइट्रेट 0 से 45, क्लोराइड 10 से 500 और पीएचपीए की मात्रा 6.5 से 8.5 मिलीलीटर होनी चाहिए.
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इतना ही नहीं क्वालिटी कंट्रोल से लाइसेंस, स्थानीय प्रशासन से अनुमति, सरकारी अस्पताल की एनओसी अनिवार्य है. साथ ही प्लांट में लैब होनी चाहिए जिसमें प्रतिदिन लैब टैक्निशियन की जांच रिपोर्ट भेजना भी अनिवार्य है. बैच नंबर पानी की एक्सपायरी डेट समेत कई ऐसे मानक हैं जो अनिवार्य हैं लेकिन कुशीनगर के प्लांट में ऐसा कोई मानक नहीं दिखता.
कुशीनगर डीईओ मानिकचंद (Kushinagar DEO Manikchand) ने बताया कि हमारे ओर से जिले में तीन प्लांटों को लाइसेंस दी गयी है, जो पूरी तरह मानकों के अनुरूप हैं. हो सकता हैं उनमें कुछ कमियां भी हों, पर लोकल स्तर पर हम साल भर में एक बार चेक कराते हैं.
WHO ने ब्रांडेड कम्पनियों के लिए 6 माह का मानक रखा हैं, बिना बीच नम्बर के तो कोई बोतल मार्केट में उतर ही नहीं सकती. हो सकता है किसी बोतल पर कुछ छपाई में दिक्कत हो, अगर बिना किसी लैबटैक्निशियन के अगर कोई यूनिट चल रही तो हम उसकी जांच कराएंगे.
कुल मिलाकर जिले के जिम्मेदार अधिकारियों को ये सारा गोरख धंधा सावन के अंधे की तरह हरा ही दिखता है. जनपद में पानी के नाम पर चल रहे इस गोरखधंधे की भनक ऊपर से नीचे तक सबको है. लेकिन सभी जिम्मेदार आंखों पर पट्टी बांधे बैठे हैं. नतीजा भुगत रहे हैं आप और हम जो पानी के नाम पर धीमा जहर हर रोज पी रहे हैं.
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