कौशांबी: दशहरे के मौके पर रावण दहन के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन रावण का शव यात्रा निकालने के बारे में शायद ही सुना हो. रावण के शव यात्रा की यह अनोखी परंपरा जिले में देखने को मिलती है. यहां पर लोग दशहरे की मौके पर रावण की शव यात्रा निकालते हैं. असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देते हुए यहां ये शव यात्रा निकाली जाती है. यह कोई नई परंपरा नहीं हैं बल्कि यह परंपरा लगभग 300 साल से चली आ रही है. इस यात्रा को देखने के लिए आसपास के कई गांवों के लोग इकट्ठा होते हैं.
इसकी शुरुआत गांव के ही रहने वाले देउव बाबा ने की थी. उन्होंने इसे घईयल का जुलूस नाम दिया था, जो आज भी जारी है. इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर कफन, फूल और माला डाल दिया जाता है. रावण की शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है. वहीं इस दौरान सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र अर्थी पर लेटा जीवित व्यक्ति होता है.
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इसकी कला देखकर लोग दंग रह जाते हैं. उसके ऊपर कफन और फूल माला जरूर पड़ा होता है, लेकिन उसका सिर एक थाली में रखा रहता है जो कटा हुआ अभास होता है. वहीं हाथ और पैर को भी अलग दिखाने का प्रयास होता है. देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि दशानन के सिर, हाथ और पैर कटे हुए हैं. मसाल की रोशनी में निकाले जाने वाली यह शव यात्रा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ गांव में इकट्ठा होती है. इसी के साथ जय श्री राम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख इस शव यात्रा के माध्यम से दी जाती है.