ETV Bharat / state

कौशांबी के इस गांव में निकाली जाती है रावण की शव यात्रा

उत्तर प्रदेश के कौशांबी में रावण की शव यात्रा निकालने की अनोखी परंपरा करीब 300 साल से चली आ रही है. जिले में लोग रावण दहन के बाद उसकी शव यात्रा निकालते हैं, जिसे देखने के लिए लाखों की भीड़ जमा होती है.

ऐसे निकाली जाती है रावण की शव यात्रा.
author img

By

Published : Oct 10, 2019, 7:24 PM IST

कौशांबी: दशहरे के मौके पर रावण दहन के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन रावण का शव यात्रा निकालने के बारे में शायद ही सुना हो. रावण के शव यात्रा की यह अनोखी परंपरा जिले में देखने को मिलती है. यहां पर लोग दशहरे की मौके पर रावण की शव यात्रा निकालते हैं. असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देते हुए यहां ये शव यात्रा निकाली जाती है. यह कोई नई परंपरा नहीं हैं बल्कि यह परंपरा लगभग 300 साल से चली आ रही है. इस यात्रा को देखने के लिए आसपास के कई गांवों के लोग इकट्ठा होते हैं.

ऐसे निकाली जाती है रावण की शव यात्रा.
सिराथू तहसील के नारा गांव में दशकों से चली आ रही शव यात्रा का उद्देश्य समाज में फैली बुराइयों को दूर करने और अधर्मियों का नाश करना है. नारा गांव में नवरात्रि की शुरुआती दौर से ही रामलीला का मंचन होता है. इसके बाद दशमी वाले दिन दशहरा के अवसर पर मेला और शाम को रावण दहन होता है. दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद रात करीब 3:00 बजे रावण की अर्थी निकाली जाती है.

इसकी शुरुआत गांव के ही रहने वाले देउव बाबा ने की थी. उन्होंने इसे घईयल का जुलूस नाम दिया था, जो आज भी जारी है. इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर कफन, फूल और माला डाल दिया जाता है. रावण की शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है. वहीं इस दौरान सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र अर्थी पर लेटा जीवित व्यक्ति होता है.

इसे भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र के साथ रामलीला का हुआ समापन, बुराई के प्रतीक रावण का किया गया दहन

इसकी कला देखकर लोग दंग रह जाते हैं. उसके ऊपर कफन और फूल माला जरूर पड़ा होता है, लेकिन उसका सिर एक थाली में रखा रहता है जो कटा हुआ अभास होता है. वहीं हाथ और पैर को भी अलग दिखाने का प्रयास होता है. देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि दशानन के सिर, हाथ और पैर कटे हुए हैं. मसाल की रोशनी में निकाले जाने वाली यह शव यात्रा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ गांव में इकट्ठा होती है. इसी के साथ जय श्री राम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख इस शव यात्रा के माध्यम से दी जाती है.

कौशांबी: दशहरे के मौके पर रावण दहन के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन रावण का शव यात्रा निकालने के बारे में शायद ही सुना हो. रावण के शव यात्रा की यह अनोखी परंपरा जिले में देखने को मिलती है. यहां पर लोग दशहरे की मौके पर रावण की शव यात्रा निकालते हैं. असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देते हुए यहां ये शव यात्रा निकाली जाती है. यह कोई नई परंपरा नहीं हैं बल्कि यह परंपरा लगभग 300 साल से चली आ रही है. इस यात्रा को देखने के लिए आसपास के कई गांवों के लोग इकट्ठा होते हैं.

ऐसे निकाली जाती है रावण की शव यात्रा.
सिराथू तहसील के नारा गांव में दशकों से चली आ रही शव यात्रा का उद्देश्य समाज में फैली बुराइयों को दूर करने और अधर्मियों का नाश करना है. नारा गांव में नवरात्रि की शुरुआती दौर से ही रामलीला का मंचन होता है. इसके बाद दशमी वाले दिन दशहरा के अवसर पर मेला और शाम को रावण दहन होता है. दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद रात करीब 3:00 बजे रावण की अर्थी निकाली जाती है.

इसकी शुरुआत गांव के ही रहने वाले देउव बाबा ने की थी. उन्होंने इसे घईयल का जुलूस नाम दिया था, जो आज भी जारी है. इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर कफन, फूल और माला डाल दिया जाता है. रावण की शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है. वहीं इस दौरान सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र अर्थी पर लेटा जीवित व्यक्ति होता है.

इसे भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र के साथ रामलीला का हुआ समापन, बुराई के प्रतीक रावण का किया गया दहन

इसकी कला देखकर लोग दंग रह जाते हैं. उसके ऊपर कफन और फूल माला जरूर पड़ा होता है, लेकिन उसका सिर एक थाली में रखा रहता है जो कटा हुआ अभास होता है. वहीं हाथ और पैर को भी अलग दिखाने का प्रयास होता है. देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि दशानन के सिर, हाथ और पैर कटे हुए हैं. मसाल की रोशनी में निकाले जाने वाली यह शव यात्रा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ गांव में इकट्ठा होती है. इसी के साथ जय श्री राम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख इस शव यात्रा के माध्यम से दी जाती है.

Intro:दशहरे के मौके पर रावण दहन के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन शव यात्रा निकालने के बारे में शायद ही सुना होगा। लेकिन कौशांबी जिले में यह अनोखी परंपरा देखने को मिलती है। यहां पर लोग दशहरे की मौके पर रावण की शव यात्रा निकालते हैं। असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देते हुए यहाँ ये शव यात्रा निकाली जाती है। यह कोई नई परंपरा नही है लगभग 300 साल से चली आ रही है। इस यात्रा को देखने के लिए आसपास के कई गांवों के श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।


Body:सिराथू तहसील के नारा गांव में दशकों से चली आ रही शव यात्रा का उद्देश्य समाज में फैली बुराइयों को दूर करने और अधर्मी का नाश करना है। नारा गांव में नवरात्रि की शुरुआती दौर से रामलीला का मंचन गांव में होता है। इसके बाद दशमी वाले दिन दशहरा के अवसर पर मेला और शाम को रावण दहन होता है। दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद रात करीब 3:00 बजे रावण की अर्थी निकाली जाती है। इसकी शुरुआत गांव के ही रहने वाले देउव बाबा ने की थी। उन्होंने इसे घईयल का जुलूस नाम दिया था। जो आज भी जारी है। इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर का कफन, फूल और माला डाल दिया जाता है। रावण की शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है। रावण की शव यात्रा निकालने के दौरान सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र अर्थी पर लेटा जीवित व्यक्ति होता है। इसकी कला देखकर लोग हाथ पर रह जाते हैं। उसके ऊपर कफन और फूल माला जरूर पढ़ा होता है। लेकिन उसका सिर एक थाली में रखा रहता है। जो कटा हुआ अभास होता है। वही हाथ और पैर को भी अलग दिखाने का प्रयास होता है। देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि दशानन के सिर, हाथ और पैर कटे हुए हैं। मसाल की रोशनी में निकाले जाने वाली शव यात्रा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ गांव में इकट्ठा होती है। इसी के साथ जय श्री राम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख इस शव यात्रा के माध्यम से दी जाती है। बाइट-- अनुपम त्रिपाठी शव यात्रा जुलुस के कार्यकर्ता


Conclusion:नारा गांव में निकाले जाने वाली यह शव यात्रा का मकसद होता है कि लोगों को बुराइयों से दूर रखा जाए। बुराई व अधर्म करने वाले लोगों का हश्रर क्या होता है वह इस यात्रा के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया जाता है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.