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हयात उल्ला चतुर्वेदी हैं संस्कृत के एक अनोखे सिपाही

उत्तर प्रदेश के कौशांबी के हयात उल्ला चतुर्वेदी संस्कृत के मुस्लिम सिपाही के नाम से विख्यात है. चारों वेद के ज्ञाता 75 साल के होने के बावजूद बच्चों को आज भी मुफ्त में संस्कृत पढ़ा रहे हैं.

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Published : Nov 28, 2019, 3:59 PM IST

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देखिए खास रिपोर्ट

कौशांबी: भाषा किसी धर्म की मोहताज नहीं होती, वो नदी की बहती धारा है. कौशांबी के हयात उल्ला चतुर्वेदी इस बहती धारा के संग सफर पर निकले हैं. 75 बसंत देख चुके और चारों वेदों के ज्ञाता हयात उल्ला चतुर्वेदी आज भी बच्चों को संस्कृत का ज्ञान दे रहे हैं और वो भी मुफ्त...देखिए ये खास रिपोर्ट

देखिए खास रिपोर्ट.

वो जन्म और धर्म से मुसलमान हैं...वो पांच वक्त के नमाजी भी हैं...जी हां हम बात कर रहे हैं कौशांबी के हयात उल्ला की जो पेशे से शिक्षक थे और 14 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. उम्र के 75वें पड़ाव में भी उनका पढ़ाने का जज्बा जिंदा है और इसी को लेकर हयात उल्ला स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों को बिना पैसों के पढ़ाते हैं. पढ़ाते भी है तो एक ऐसा विषय जो देवो की भाषा कहा जाता है. जी हां वो संस्कृत पढ़ाते हैं.

लोग हयात उल्ला को देव भाषा संस्कृत का मुस्लिम सिपाही कहते हैं! जी हां बात कुछ अटपटी जरुर है, पर है सोलह आने सच...कौशांबी जिले के रहने वाले हयात उल्ला कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जो मुस्लिम होते हुए भी पिछले 50 सालों से संस्कृत के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

हयात उल्ला को मिली चतुर्वेदी की उपाधि
हयात उल्ला को चारों वेदों का भी ज्ञान है. उनका संस्कृत के प्रति ऐसा लगाव है कि घर में भी संस्कृत भाषा में बात की जाती है. इन्हें चतुर्वेदी की उपाधि 1967 में राष्ट्रीय कार्यक्रम में संस्कृत के प्रति अनन्य भक्ति के स्वरुप में दी गई. इन्हें समय-समय पर जिलाधिकारी सहित कई लोगों ने सम्मानित किया.

जब बात संस्कृत के विद्वानों की होती है तो बरबस हयात उल्ला चतुर्वेदी का नाम बुद्धिजीवियों की जुबान पर आ जाता है. धर्म से मुस्लिम होने के बाद भी हयात उल्ला साहब की लगन ने उन्हें संस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया. हयात उल्ला मानते हैं कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहबी दीवार को तोड़ कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है. यही कारण है कि इस उम्र में भी स्कूल-दर-स्कूल बच्चों को पढ़ाने में उनके कदम कभी नहीं रुकते. उन्होंने संस्कृत विषय में कई किताबें भी लिखी हैं.
नये हिन्दुस्तान के निर्माण के लिए हमें ऐसे लोगों की तरफ रुख करना होगा जहां धर्मों से ऊपर उठकर हयात उल्ला जैसी शख्सियत देश के बच्चों का भविष्य सुधार रहे हैं. भाषा एक बहती नदी है जो अपने किनारे आने वालों से उसका मजहब नहीं पूछा करती. और इसी में भाषा की खूबसूरती भी समाहित है. हयात उल्ला उसी खूबसूरती के वाहक हैं.

कौशांबी: भाषा किसी धर्म की मोहताज नहीं होती, वो नदी की बहती धारा है. कौशांबी के हयात उल्ला चतुर्वेदी इस बहती धारा के संग सफर पर निकले हैं. 75 बसंत देख चुके और चारों वेदों के ज्ञाता हयात उल्ला चतुर्वेदी आज भी बच्चों को संस्कृत का ज्ञान दे रहे हैं और वो भी मुफ्त...देखिए ये खास रिपोर्ट

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वो जन्म और धर्म से मुसलमान हैं...वो पांच वक्त के नमाजी भी हैं...जी हां हम बात कर रहे हैं कौशांबी के हयात उल्ला की जो पेशे से शिक्षक थे और 14 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. उम्र के 75वें पड़ाव में भी उनका पढ़ाने का जज्बा जिंदा है और इसी को लेकर हयात उल्ला स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों को बिना पैसों के पढ़ाते हैं. पढ़ाते भी है तो एक ऐसा विषय जो देवो की भाषा कहा जाता है. जी हां वो संस्कृत पढ़ाते हैं.

लोग हयात उल्ला को देव भाषा संस्कृत का मुस्लिम सिपाही कहते हैं! जी हां बात कुछ अटपटी जरुर है, पर है सोलह आने सच...कौशांबी जिले के रहने वाले हयात उल्ला कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जो मुस्लिम होते हुए भी पिछले 50 सालों से संस्कृत के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

हयात उल्ला को मिली चतुर्वेदी की उपाधि
हयात उल्ला को चारों वेदों का भी ज्ञान है. उनका संस्कृत के प्रति ऐसा लगाव है कि घर में भी संस्कृत भाषा में बात की जाती है. इन्हें चतुर्वेदी की उपाधि 1967 में राष्ट्रीय कार्यक्रम में संस्कृत के प्रति अनन्य भक्ति के स्वरुप में दी गई. इन्हें समय-समय पर जिलाधिकारी सहित कई लोगों ने सम्मानित किया.

जब बात संस्कृत के विद्वानों की होती है तो बरबस हयात उल्ला चतुर्वेदी का नाम बुद्धिजीवियों की जुबान पर आ जाता है. धर्म से मुस्लिम होने के बाद भी हयात उल्ला साहब की लगन ने उन्हें संस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया. हयात उल्ला मानते हैं कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहबी दीवार को तोड़ कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है. यही कारण है कि इस उम्र में भी स्कूल-दर-स्कूल बच्चों को पढ़ाने में उनके कदम कभी नहीं रुकते. उन्होंने संस्कृत विषय में कई किताबें भी लिखी हैं.
नये हिन्दुस्तान के निर्माण के लिए हमें ऐसे लोगों की तरफ रुख करना होगा जहां धर्मों से ऊपर उठकर हयात उल्ला जैसी शख्सियत देश के बच्चों का भविष्य सुधार रहे हैं. भाषा एक बहती नदी है जो अपने किनारे आने वालों से उसका मजहब नहीं पूछा करती. और इसी में भाषा की खूबसूरती भी समाहित है. हयात उल्ला उसी खूबसूरती के वाहक हैं.

Intro:संस्कृत का मुस्लिम सिपाही pkg-01

Anchor-- वो जन्म और धर्म से मुसलमान है ... पांच वक्त का नमाजी है , लेकिन फिर भी लोग उसे वेदों की भाषा संस्कृत का मुस्लिम सिपाही कहते है ! जी हाँ बात कुछ अटपटी जरुर है, पर है सोलह आने सच ....... कौशाम्बी जिले के हयात उल्ला कुछ ऐसी ही शख्सियत है जो धर्म से मुस्लिम है लेकिन पिछले 50 सालो से संस्कृत के लिए लड़ाई लड़ रहे है | यही नहीं हिन्दू धर्म के चारो वेदों में पारंगत हयात उल्ला को चतुर्वेदी की उपाधि मिली है | 75 की उम्र पार कर चुके हयात उल्ला मानते है कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहबी दीवार को तोड़ कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है | यही कारण है कि इस उम्र में भी स्कूल-दर-स्कूल बच्चो को पढ़ाने में उनके कदम कभी नहीं रुकते है | ........


Body:नाम हयात उल्ला चतुर्वेदी। उम्र करीब 75 साल। 14 साल पहले रिटायर हो चुके हैं, लेकिन पढ़ाने का मोह नहीं छूटा। विषय भी ऐसा कि लोग पसीना छोड़ देते हैं, लेकिन यही विषय उनकी पहचान बना और आज वह देश के कोने-कोने में जाने जाते हैं। चतुर्वेदी की उपाधि उनको दशकों पहले राष्ट्रिय कार्यक्रम में संस्कृत के प्रति अनन्य भक्ति के स्वरुप दी गई । लेकिन नहीं मिला तो राष्ट्रपति पुरस्कार। इसका उन्हें मलाल भी नहीं है। लेकिन जब बात पुरस्कार की होती है तो बरबस हयात उल्ला चतुर्वेदी का नाम बुद्धिजीवियों की जुबान पर आ जाता है। धर्म से मुस्लिम होने के बाद भी हयात उल्ला साहब की लगन ने सस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया । हयात उल्ला चतुर्वेदी साहब का मानना है कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है । बच्चो के बीच ज्ञान बाटने का ऐसा जज्बा है कि उम्र की लाचारी की आड़े नहीं आती ।

छात्र भी उनका बहुत सम्मान करते हैं। हयात उल्ला चतुर्वेदी ने अपने संरक्षण में कई लड़कों को पढ़ाया। आज वह संस्कृत विषय से शिक्षक हैं और अपने गुरू का गुणगान गा रहे हैं। बच्चो का कहना है कि उनको गर्व है की वह एक अनोखी धरोहर रुपी अध्यापक से शिक्षा प्राप्त करते है । बच्चो के मुताबिक हयात उल्ला चतुर्वेदी का पढ़ने का तरीका दुसरे अध्यापको से अलग है वह बच्चो को समझाने के लिए हिंदी उर्दू और सस्कृत भाषा का जब प्रयोग करते है तो उन्हें बेहतर समझ में आता है ।
Conclusion:Slug--नए हिंदुस्तान को बनाने की ललक है दिल में pkg-02

Anchor--गंगा यमुनी तहजीब की धरती पर आज भी ऐसे लोग है, जिन्होंने अपनी विद्वता का लोहा देश और दुनिया में मनवाया है कौशाम्बी जिले के हयात उल्ला भी एक ऐसी ही शख्सियत है | मुस्लिम परिवार में जन्मे हयात उल्ला को बचपन से ही देवो की भाषा संस्कृत से प्रेम रहा और यही कारण रहा कि उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री भी संस्कृत से ली | जिन्दगी के सफ़र की शुरूआत एक शिक्षक के रूप में की और अनवरत रिटार्यड मेंट के बाद भी यह शिक्षक आज भी बच्चो में संस्कृत का अलख जगा रहा है |

छीता हर्रायपुर निवासी हयात उल्ला पुत्र बरकत उल्ला को संस्कृत से प्यार और लगाव है। चारों वेदों का उन्हें ज्ञान है। घर में भी उनके संस्कृत भाषा से बातचीत होती है। 1967 में हयात उल्ला को एक राष्ट्रीय सम्मेलन में चतुर्वेदी की उपाधि दी गई तो पूरा देश गदगद हो गया। हयातउल्ला एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे। 2003 में वह रिटायर हुए। इसके बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा। महगांव इंटर कॉलेज में वह छात्रों को पढ़ाते हैं। संस्कृत विषय में उन्होंने कई किताबे लिखी हैं। हाईस्कूल की परिचायिका को भी उन्होंने अनुवादित कर सरल बनाया है। इसके अलावा दिग्दर्शिका छपने वाली है। संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए वह राष्ट्रीय एकता के लिए अमेरिका, नेपाल आदि देशों में सेमिनार भी कर चुके हैं।

हिन्दुतान को समझाना है तो उसके गांवो का रुख करना होगा । जहाँ आप को हयात उल्ला चतुर्वेदी जैसी हजारो हज़ार सख्सियत आज भी मिलेगी जो दुनिया में आज भी धर्म और मजहब की कडवाहट से दूर एक ऐसा नई पीढ़ी तैयार करने में लगे है जो सही मायने में भारत के भाग्य विधाता बन सके |
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