कौशांबी: भाषा किसी धर्म की मोहताज नहीं होती, वो नदी की बहती धारा है. कौशांबी के हयात उल्ला चतुर्वेदी इस बहती धारा के संग सफर पर निकले हैं. 75 बसंत देख चुके और चारों वेदों के ज्ञाता हयात उल्ला चतुर्वेदी आज भी बच्चों को संस्कृत का ज्ञान दे रहे हैं और वो भी मुफ्त...देखिए ये खास रिपोर्ट
वो जन्म और धर्म से मुसलमान हैं...वो पांच वक्त के नमाजी भी हैं...जी हां हम बात कर रहे हैं कौशांबी के हयात उल्ला की जो पेशे से शिक्षक थे और 14 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. उम्र के 75वें पड़ाव में भी उनका पढ़ाने का जज्बा जिंदा है और इसी को लेकर हयात उल्ला स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों को बिना पैसों के पढ़ाते हैं. पढ़ाते भी है तो एक ऐसा विषय जो देवो की भाषा कहा जाता है. जी हां वो संस्कृत पढ़ाते हैं.
लोग हयात उल्ला को देव भाषा संस्कृत का मुस्लिम सिपाही कहते हैं! जी हां बात कुछ अटपटी जरुर है, पर है सोलह आने सच...कौशांबी जिले के रहने वाले हयात उल्ला कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जो मुस्लिम होते हुए भी पिछले 50 सालों से संस्कृत के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.
हयात उल्ला को मिली चतुर्वेदी की उपाधि
हयात उल्ला को चारों वेदों का भी ज्ञान है. उनका संस्कृत के प्रति ऐसा लगाव है कि घर में भी संस्कृत भाषा में बात की जाती है. इन्हें चतुर्वेदी की उपाधि 1967 में राष्ट्रीय कार्यक्रम में संस्कृत के प्रति अनन्य भक्ति के स्वरुप में दी गई. इन्हें समय-समय पर जिलाधिकारी सहित कई लोगों ने सम्मानित किया.
जब बात संस्कृत के विद्वानों की होती है तो बरबस हयात उल्ला चतुर्वेदी का नाम बुद्धिजीवियों की जुबान पर आ जाता है. धर्म से मुस्लिम होने के बाद भी हयात उल्ला साहब की लगन ने उन्हें संस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया. हयात उल्ला मानते हैं कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहबी दीवार को तोड़ कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है. यही कारण है कि इस उम्र में भी स्कूल-दर-स्कूल बच्चों को पढ़ाने में उनके कदम कभी नहीं रुकते. उन्होंने संस्कृत विषय में कई किताबें भी लिखी हैं.
नये हिन्दुस्तान के निर्माण के लिए हमें ऐसे लोगों की तरफ रुख करना होगा जहां धर्मों से ऊपर उठकर हयात उल्ला जैसी शख्सियत देश के बच्चों का भविष्य सुधार रहे हैं. भाषा एक बहती नदी है जो अपने किनारे आने वालों से उसका मजहब नहीं पूछा करती. और इसी में भाषा की खूबसूरती भी समाहित है. हयात उल्ला उसी खूबसूरती के वाहक हैं.