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कासगंज: इस अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं का टोटा, आखिर कैसे होगा मरीजों का इलाज

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भले ही बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराने की बात कर रही हो, लेकिन जनपद कासगंज के नगला अमीर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत देखकर सरकार की बात बेमानी सी लगती है. यह एक ऐसा अस्पताल है, जो महीने में दो या तीन बार ही खुलता है.

अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं का टोटा.
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Published : Aug 23, 2019, 9:17 AM IST

कासगंजः जनपद पहले से ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है, जिसकी वजह से ज्यादातर अस्पतालों पर फार्मेसिस्ट ही तैनात हैं. नगला अमीर में अस्पताल के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका मिला. इस अस्पताल को बनवाने की पहल नगला अमीर के स्थानीय निवासी और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह चौहान ने की थी.

अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं का टोटा.

इसे भी पढ़ें:- रामपुर में आरडीए और स्वास्थ्य विभाग ने फर्जी अस्पताल किया सील

क्या है पूरा मामला-

  • स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह अस्पताल महीने में दो या तीन बार ही खुलता है.
  • फार्मासिस्ट इंजेक्शन या सीरप के पैसे मांगते हैं और कहते हैं कि हम प्राइवेट बाजार से खरीद कर लाए हैं, इसलिए पैसा देना होगा.
  • वहीं दर्जनों मरीज रोजाना यहां से बैरंग लौट जाते हैं, लेकिन फार्मेसिस्ट यदा-कदा ही देखने को मिलते हैं.
  • अस्पताल परिसर में बड़ी-बड़ी घास उगी हुई हैं. अस्पताल के कमरों की खिड़कियों के कांच टूटे हुए हैं.
  • अस्पताल के दो मुख्य दरवाजे थे, जिसमें एक दरवाजा तो मौजूद था, लेकिन एक दरवाजा उखड़ गया.
  • इसकी जगह पर टैम्परेरी दीवाल लगा दी गई है.
  • अस्पताल के बाहर गंदे बदबूदार पानी का तालाब भरा हुआ, जहां मच्छरों का लारवा पनप रहा हैं.
  • कुल मिलाकर बदहाल अस्पताल अपने हालत पर आंसू बहा रहा है.
  • यहां के लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी 20 किलोमीटर दूर पटियाली जाकर इलाज कराने को मजबूर हैं.

इसे भी पढ़ें:- बाराबंकी: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के नए फरमान से निजी अस्पताल संचालकों में हड़कंप

कासगंजः जनपद पहले से ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है, जिसकी वजह से ज्यादातर अस्पतालों पर फार्मेसिस्ट ही तैनात हैं. नगला अमीर में अस्पताल के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका मिला. इस अस्पताल को बनवाने की पहल नगला अमीर के स्थानीय निवासी और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह चौहान ने की थी.

अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं का टोटा.

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क्या है पूरा मामला-

  • स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह अस्पताल महीने में दो या तीन बार ही खुलता है.
  • फार्मासिस्ट इंजेक्शन या सीरप के पैसे मांगते हैं और कहते हैं कि हम प्राइवेट बाजार से खरीद कर लाए हैं, इसलिए पैसा देना होगा.
  • वहीं दर्जनों मरीज रोजाना यहां से बैरंग लौट जाते हैं, लेकिन फार्मेसिस्ट यदा-कदा ही देखने को मिलते हैं.
  • अस्पताल परिसर में बड़ी-बड़ी घास उगी हुई हैं. अस्पताल के कमरों की खिड़कियों के कांच टूटे हुए हैं.
  • अस्पताल के दो मुख्य दरवाजे थे, जिसमें एक दरवाजा तो मौजूद था, लेकिन एक दरवाजा उखड़ गया.
  • इसकी जगह पर टैम्परेरी दीवाल लगा दी गई है.
  • अस्पताल के बाहर गंदे बदबूदार पानी का तालाब भरा हुआ, जहां मच्छरों का लारवा पनप रहा हैं.
  • कुल मिलाकर बदहाल अस्पताल अपने हालत पर आंसू बहा रहा है.
  • यहां के लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी 20 किलोमीटर दूर पटियाली जाकर इलाज कराने को मजबूर हैं.

इसे भी पढ़ें:- बाराबंकी: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के नए फरमान से निजी अस्पताल संचालकों में हड़कंप

Intro:उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भले ही बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराने की बात कर रही हो लेकिन जनपद कासगंज के नगला अमीर के इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत देख कर तो सरकार की बात बेमानी सी लगती है। एक ऐसा अस्पताल जो महीने में दो या तीन बार ही खुलता है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि ईटीवी भारत की पड़ताल में यह बात वहां के स्थानीय निवासियों ने कही है।


Body:वीओ-1- कासगंज जनपद तो पहले से ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है जिसकी वजह से ज्यादातर अस्पतालों पर फार्मेसिस्ट ही तैनात है और वही डॉक्टर का काम कर रहे हैं उसके बावजूद भी हद तो तब है जब अस्पताल खुले ही ना और खुले भी तो महीने में दो या तीन बार। ईटीवी भारत की टीम 12 बजकर 29 मिनट पर कासगंज के नगला अमीर में जब इस अस्पताल की हक़ीक़त जानने पहुंची तो अस्पताल के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका मिला।वहां के स्थानीय निवासियों ने बताया यह अस्पताल महीने में दो या तीन बार ही खुलता है। और जब खुलता है तो फार्मासिस्ट साहब इंजेक्शन या सीरप के पैसे मांगते हैं और कहते हैं कि हम प्राइवेट बाजार से खरीद कर लाए हैं इसलिए पैसा तो देना होगा।

वीओ-2- दर्जनों मरीज रोजाना यहां से लौट जाते हैं लेकिन फार्मेसिस्ट साहब यदा-कदा ही देखने को मिलते हैं ।अस्पताल परिसर में बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है। अस्पताल की कमरों की खिड़कियों के कांच टूटे हुए थे। अस्पताल के दो मुख्य दरवाजे थे जिसमें एक दरवाजा तो मौजूद था लेकिन एक दरवाजा उखड़ गया जिसकी जगह पर टैम्परेरी दीवाल लगा दी गई है। अस्पताल के बाहर गंदे बदबूदार पानी का तालाब भरा हुआ। जहां मच्छरों के बैक्टीरिया पनप रहे हैं। ना ही अस्पताल परिसर के अंदर कोई नल है जिससे मरीज अपनी प्यास बुझा सके। कुल मिलाकर बदहाल अस्पताल अपनी हालत पर आंसू बहा रहा है। और यहां के लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी 20 किलोमीटर दूर पटियाली जाकर इलाज कराने को मजबूर है। आपको बता दें इस अस्पताल को बनवाने की पहल नगला अमीर के स्थानीय निवासी और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह चौहान ने की थी।


बाइट- स्थानीय निवासी



Conclusion:आखिर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के बाद भी स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर क्यों नहीं हो पा रही हैं। कहीं ना कहीं इसमें स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है। अस्पताल का न खुलना कर्मचारियों की निरंकुशता को प्रदर्शित कर रहा है। अब जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग कितनी जर्जर है, परिसर में बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है, अस्पताल के कमरों की खिड़कियों के कांच टूटे हुए हैं तो सवाल यह उठता है कि अस्पताल की बिल्डिंग की मरम्मत के लिए प्रतिवर्ष आने वाला फंड आखिर जाता कहां है। निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं विभाग के आला अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह कार्य नहीं हो सकता। ऐसे में जरूरत है सरकार को ऐसे अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करने की।
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