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47 साल बाद मिली पिता के पट्टे की जमीन

कासगंज जिले में प्रशासनिक व्यवस्था की लापरवाही देखने को मिली है. यहां एक व्यक्ति को पिता की जमीन पाने के संघर्ष करते-करते मौत हो गई. इसके बाद उसके बेटे को लंबी लड़ाई-लड़ने के बाद जमीन हासिल की. इस खबर के जरिए पढ़िए संघर्ष की पूरी कहानी..

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पट्टा धारक गजाधर
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Published : Aug 7, 2022, 10:01 PM IST

कासगंजः प्रशासनिक व्यवस्था कितनी लाचार और कमजोर हैं इसका ताजा उदाहरण कासगंज में देखने को मिला है. जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र में एक व्यक्ति को अपने पट्टे की जमीन पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष करता रहा और उसकी मौत हो गई. इसके बाद उसी पट्टे की जमीन को पाने के लिए बेटे को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. अब लगभग 47 साल बाद उस पट्टे की भूमि पर पीड़ित को कब्जा मिल पाया. पट्टा धारक गजाधर ने ईटीवी भारत को इस पूरे मामले की जानकारी दी.

दरअसल, पटियाली तहसील क्षेत्र और सिढ़पुरा ब्लॉक के हमीरपुर गांव के रहने वाले भजनलाल को 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत खेती के लिए जमीन का पट्टा दिया गया था. यह पट्टा उन्हें उत्तर दिशा में दिया जाना था, लेकिन राजस्व विभाग की लापरवाही से जमीन का पट्टा दक्षिण दिशा में दे दिया गया. इसकी शिकायत भजनलाल द्वारा तहसील में की गई. इसी बीच उक्त जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर लिया. कब्जा मुक्त कराने के लिए भजनलाल तहसील के चक्कर काटते रहे. 1983 में भजनलाल की मृत्यु हो गयी. इसके बाद 1984-85 में उक्त पट्टे की भूमि भजनलाल के बेटे गजाधर के नाम हो गयी.

पट्टा धारक गजाधर.

गजाधर ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद जमीन कब्जामुक्त कराने के लिए उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से लिखित शिकायतें की. तहसील और अधिकारियों के चक्कर काटते-काटते आखिर 23 साल बाद वर्ष 2008 को उन्हें प्रशासनिक अधिकारियों ने कब्जा दिलाया. इसके बाद दोबारा 2011 में उन्हीं दबंगों ने उस जमीन पर कब्जा कर लिया. इसके बाद फिर शिकायतों का दौर चला लेकिन सालों तक प्रशासन उन्हें कब्जा न दिला सका.

पढ़ेंः मायावती बोलीं, बुलडोजर से हमेशा गरीबों को ही क्यों उजाड़ती रहती हैं सरकारें?

आखिर में उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत की जिसके बाद आयोग के निर्देश पर पुनः प्रशासन हरकत में आया. वर्तमान में कासगंज की जिलाधिकारी हर्षिता माथुर के निर्देश पर दिनांक 14 मई 2022 को कब्युजाक्त पट्टे की भूमि की राजस्व टीम द्वारा निशानदेही की गई. इसके बाद दिनांक 30 जुलाई को राजस्व टीम ने उनकी पट्टे की भूमि को कब्जामुक्त कराया. इसके बाद दिनांक 6 अगस्त को उन्हें कब्जामुक्त कराने का आदेश पत्र प्राप्त हुआ. इस तरह उन्हें 47 वर्ष बाद न्याय मिला.

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कासगंजः प्रशासनिक व्यवस्था कितनी लाचार और कमजोर हैं इसका ताजा उदाहरण कासगंज में देखने को मिला है. जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र में एक व्यक्ति को अपने पट्टे की जमीन पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष करता रहा और उसकी मौत हो गई. इसके बाद उसी पट्टे की जमीन को पाने के लिए बेटे को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. अब लगभग 47 साल बाद उस पट्टे की भूमि पर पीड़ित को कब्जा मिल पाया. पट्टा धारक गजाधर ने ईटीवी भारत को इस पूरे मामले की जानकारी दी.

दरअसल, पटियाली तहसील क्षेत्र और सिढ़पुरा ब्लॉक के हमीरपुर गांव के रहने वाले भजनलाल को 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत खेती के लिए जमीन का पट्टा दिया गया था. यह पट्टा उन्हें उत्तर दिशा में दिया जाना था, लेकिन राजस्व विभाग की लापरवाही से जमीन का पट्टा दक्षिण दिशा में दे दिया गया. इसकी शिकायत भजनलाल द्वारा तहसील में की गई. इसी बीच उक्त जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर लिया. कब्जा मुक्त कराने के लिए भजनलाल तहसील के चक्कर काटते रहे. 1983 में भजनलाल की मृत्यु हो गयी. इसके बाद 1984-85 में उक्त पट्टे की भूमि भजनलाल के बेटे गजाधर के नाम हो गयी.

पट्टा धारक गजाधर.

गजाधर ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद जमीन कब्जामुक्त कराने के लिए उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से लिखित शिकायतें की. तहसील और अधिकारियों के चक्कर काटते-काटते आखिर 23 साल बाद वर्ष 2008 को उन्हें प्रशासनिक अधिकारियों ने कब्जा दिलाया. इसके बाद दोबारा 2011 में उन्हीं दबंगों ने उस जमीन पर कब्जा कर लिया. इसके बाद फिर शिकायतों का दौर चला लेकिन सालों तक प्रशासन उन्हें कब्जा न दिला सका.

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आखिर में उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत की जिसके बाद आयोग के निर्देश पर पुनः प्रशासन हरकत में आया. वर्तमान में कासगंज की जिलाधिकारी हर्षिता माथुर के निर्देश पर दिनांक 14 मई 2022 को कब्युजाक्त पट्टे की भूमि की राजस्व टीम द्वारा निशानदेही की गई. इसके बाद दिनांक 30 जुलाई को राजस्व टीम ने उनकी पट्टे की भूमि को कब्जामुक्त कराया. इसके बाद दिनांक 6 अगस्त को उन्हें कब्जामुक्त कराने का आदेश पत्र प्राप्त हुआ. इस तरह उन्हें 47 वर्ष बाद न्याय मिला.

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