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धान की फसल में लग रहा बकानी रोग, बचाव के लिए किसान करें ये उपाय - कासगंज ताजा खबर

धान की फसल करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है. इस बार फसल में बकानी रोग फैल रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए कासगंज के जिला कृषि रक्षा अधिकारी सुमित चौहान ने इस रोग के लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताए. पढें रिपोर्ट...

धान की फसल में लग रहा बकानी रोग
धान की फसल में लग रहा बकानी रोग
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Published : Aug 21, 2021, 4:44 AM IST

कासगंज: जिले में किसान अन्य फसलों के अलावा बड़ी मात्रा में धान की खेती करते हैं. समय से बारिश न होने के चलते और पानी के अभाव में धान की रोपाई में देरी हुई है. अभी कुछ दिनों पहले ही धान की रोपाई की गई है. लेकिन इस समय धान की फसल पर बकानी रोग का साया मंडरा रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए जिला कृषि अधिकारी सुमित चौहान ने इस रोग के लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताए.

जिला कृषि अधिकारी सुमित चौहान ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बकानी रोग के लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताते हुए कहा कि बकानी रोग अक्सर कम समय मे तैयार होने वाली सुगंधीय धान की फसलों जैसे 1509,1504,1505 सुगंधा में फसल की शुरुआती स्थिति में जब तापमान ज़्यादा होता है, तब इस रोग की संभावना ज्यादा प्रबल हो जाती है.

बकानी रोग के लक्षण
सुमित चौहान ने बताया कि इस रोग के लक्षण रोपाई करने के दो से तीन सप्ताह में दिखाई देने लगते हैं. इसमें रोग ग्रस्त पौधा अन्य पौधों की अपेक्षा अधिक लम्बा हो जाता है. जिसके कारण इसे झण्डा रोग भी कहते हैं. वातावरण में अत्याधिक आद्रर्ता होने पर सड़न भी देखी गयी है. जिससे संक्रमित पौधा सड़ कर समाप्त हो जाता है और यदि यह पौधा नष्ट नहीं हाता तो इसकी बढ़वार सामान्य से अधिक हो कर बालियां तो बनती है, किन्तु इन बालियों में दाने नहीं पड़ते, जिससे फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. यह रोग फ्यूजेरियम नाम फफूंदी के संक्रमण से होता है तथा बीज जनित रोग है और संक्रमित बीज के द्वारा पौधों में संक्रमण होता है, तथा बाद में खड़ी फसल में इस रोग में बीजाणु हवा द्वारा फैलकर स्वस्थ्य पौधों को भी संक्रमित कर देते है.

धान की फसल में लग रहा बकानी रोग

इस रोग से बचने के ये हैं उपाय
सुमित चौहान ने बताया कि इस फसल में किसानों को यूरिया का प्रयोग कम करना चाहिए. इसके अलावा बीज शोधन अवश्य करें. इस रोग की रोकथाम का कारगर एवं श्रेष्ठ उपाय बीज शोधन करके बीज की बुआई करना है, किन्तु वर्तमान में बीज उपचार की अवस्था निकल जाने के कारण खड़ी फसल में प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशत ईसी नामक फफूंदी नाशक की एक मिली लीटर मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर आवश्यकतानुसार छिड़काब किया जाए. सामान्य दशा में एक एकड़ में लगभग 200 लीटर पानी की आवश्यकता होगी, जिसके लिए 200 मिली लीटर प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशतः ईसी प्रर्याप्त होगाच. इसके अतिरिक्त कार्बन्डाजिम व मैन्कोजेब फॅफूदी नाशक रसायन की आधी-आधी मात्रा में मिलाकर दो ग्राम फॅफूदीनाशक रसायन को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काब करने से भी इस रोग का निदान किया जा सकता है. आवश्यकता अनुसार 12-15 दिन के अन्तराल पर दो-तीन छिड़काब करना उचित होगा.

इसे भी पढ़ें-प्रयागराज: धान की फसलों को नष्ट कर रहा कंडो रोग, अन्नदाता परेशान

मुआवजे का ये हैं प्रावधान
जिला कृषि रक्षा अधिकारी सुमित चौहान ने बताया कि किसान की धान की फसल नष्ट होने पर प्रधानमंत्री कृषक बीमा योजना के अंतर्गत जो बीमा की इकाई है, उसमें सीमित क्षेत्र पूरी ग्राम पंचायत है. अगर पूरी पंचायत में धान की फसल का नुकसान होता है और उत्पादन 33 प्रतिशत से कम होता है. उसके बाद जिन किसानों ने प्रधानमंत्री किसान बीमा कराया है तो उन किसानों को क्षतिपूर्ति दिए जाने का प्रावधान है.

कासगंज: जिले में किसान अन्य फसलों के अलावा बड़ी मात्रा में धान की खेती करते हैं. समय से बारिश न होने के चलते और पानी के अभाव में धान की रोपाई में देरी हुई है. अभी कुछ दिनों पहले ही धान की रोपाई की गई है. लेकिन इस समय धान की फसल पर बकानी रोग का साया मंडरा रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए जिला कृषि अधिकारी सुमित चौहान ने इस रोग के लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताए.

जिला कृषि अधिकारी सुमित चौहान ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बकानी रोग के लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताते हुए कहा कि बकानी रोग अक्सर कम समय मे तैयार होने वाली सुगंधीय धान की फसलों जैसे 1509,1504,1505 सुगंधा में फसल की शुरुआती स्थिति में जब तापमान ज़्यादा होता है, तब इस रोग की संभावना ज्यादा प्रबल हो जाती है.

बकानी रोग के लक्षण
सुमित चौहान ने बताया कि इस रोग के लक्षण रोपाई करने के दो से तीन सप्ताह में दिखाई देने लगते हैं. इसमें रोग ग्रस्त पौधा अन्य पौधों की अपेक्षा अधिक लम्बा हो जाता है. जिसके कारण इसे झण्डा रोग भी कहते हैं. वातावरण में अत्याधिक आद्रर्ता होने पर सड़न भी देखी गयी है. जिससे संक्रमित पौधा सड़ कर समाप्त हो जाता है और यदि यह पौधा नष्ट नहीं हाता तो इसकी बढ़वार सामान्य से अधिक हो कर बालियां तो बनती है, किन्तु इन बालियों में दाने नहीं पड़ते, जिससे फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. यह रोग फ्यूजेरियम नाम फफूंदी के संक्रमण से होता है तथा बीज जनित रोग है और संक्रमित बीज के द्वारा पौधों में संक्रमण होता है, तथा बाद में खड़ी फसल में इस रोग में बीजाणु हवा द्वारा फैलकर स्वस्थ्य पौधों को भी संक्रमित कर देते है.

धान की फसल में लग रहा बकानी रोग

इस रोग से बचने के ये हैं उपाय
सुमित चौहान ने बताया कि इस फसल में किसानों को यूरिया का प्रयोग कम करना चाहिए. इसके अलावा बीज शोधन अवश्य करें. इस रोग की रोकथाम का कारगर एवं श्रेष्ठ उपाय बीज शोधन करके बीज की बुआई करना है, किन्तु वर्तमान में बीज उपचार की अवस्था निकल जाने के कारण खड़ी फसल में प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशत ईसी नामक फफूंदी नाशक की एक मिली लीटर मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर आवश्यकतानुसार छिड़काब किया जाए. सामान्य दशा में एक एकड़ में लगभग 200 लीटर पानी की आवश्यकता होगी, जिसके लिए 200 मिली लीटर प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशतः ईसी प्रर्याप्त होगाच. इसके अतिरिक्त कार्बन्डाजिम व मैन्कोजेब फॅफूदी नाशक रसायन की आधी-आधी मात्रा में मिलाकर दो ग्राम फॅफूदीनाशक रसायन को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काब करने से भी इस रोग का निदान किया जा सकता है. आवश्यकता अनुसार 12-15 दिन के अन्तराल पर दो-तीन छिड़काब करना उचित होगा.

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मुआवजे का ये हैं प्रावधान
जिला कृषि रक्षा अधिकारी सुमित चौहान ने बताया कि किसान की धान की फसल नष्ट होने पर प्रधानमंत्री कृषक बीमा योजना के अंतर्गत जो बीमा की इकाई है, उसमें सीमित क्षेत्र पूरी ग्राम पंचायत है. अगर पूरी पंचायत में धान की फसल का नुकसान होता है और उत्पादन 33 प्रतिशत से कम होता है. उसके बाद जिन किसानों ने प्रधानमंत्री किसान बीमा कराया है तो उन किसानों को क्षतिपूर्ति दिए जाने का प्रावधान है.

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