कानपुर: कोरोना आने के साथ से ही पूरे देश की रफ्तार थम गई. अब धीरे-धीरे अनलॉक के साथ सारी व्यवस्थाएं वापस पटरी पर लौट रही हैं. चीन से फैले इस वायरस से लोग खौफ में हैं. वहीं भारत-चीन सीमा पर बने तनाव को लेकर भारत सरकार ने चीन के कई ऐप को भारत में पूरी तरह से बैन कर दिया. ऐसे में कुम्हारों को उम्मीद है कि इस दीवाली उनके घरों में अंधेरा नहीं रहेगा.
लोगों का कहना है कि भारत-चीन सीमा विवाद के चलते लोग भी चीनी वस्तुओं को खरीदने से बच रहे हैं. ऐसे में चीनी झालर की मांग कम हो रही है, वहीं लोग मिट्टी के बने दीयों को तरजीह दे रहे हैं. मिट्टी के कारीगरों का कहना है कि इस बार दीयों की मांग दोगुनी हो गई है. वहीं सरकार द्वारा दी गई इलेक्ट्रिक चाक ने कुम्हारों की रफ्तार को बढ़ाने का काम किया है. इससे कुम्हार कम मेहनत और समय में ज्यादा काम कर पा रहे हैं.
कुम्हार मोहन ने बताया कि इस बार कोरोना काल के बाद शुरुआत में तो काम में कमीं आई थी, लेकिन जब सरकार ने चीनी ऐप्स को बैन किया है. उसके बाद से लोग चीनी वस्तुओं की खरीदारी से बचते नजर आ रहे हैं. इससे मिट्टी के दीयों की मांग दोगुनी हो गई है. पिछले साल काफी दीये बच जाते थे, लेकिन इस बार लोग मिट्टी के दीयों के लिए पहले से ही ऑर्डर दे रहे हैं.
मोहन ने बताया कि सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक चाक मिलने से काम में रफ्तार आ गई है. पहले पत्थर के चाक पर काम करने पर मेहनत अधिक लगती थी और माल कम तैयार होता था. वहीं अब इलेक्ट्रिक चाक में कम मेहनत में अधिक माल तैयार होता है और बचत भी अधिक है.
काकादेव स्थित बस्ती के कुम्हार पप्पू का कहना है कि पिछली बार बहुत दीये बच गए थे, इससे काफी नुकसान हुआ था. मैंने सोचा था कि यह काम बंद कर दूंगा, लेकिन इस साल काम में पहले से अधिका मुनाफा मिलने की उम्मीद है. उनका कहना है कि इस बार उनकी दीवाली भी खुशियों वाली होगी. इसलिए अपने बच्चे को भी काम सीखा रहे हैं, ताकि उनका पारिवारिक भी इस काम को आगे बढ़ा सके.
पप्पू ने बताया कि जहां पिछली दीवली में 300 से 400 रुपये में हजार दीये बिक रहे थे. वहीं इस बार हजार दीयों के लिए 500 रुपये मिल रहे हैं और आगे यह दाम और बढेंगे. पहले लोग सगुन के लिए सिर्फ 5 या 7 दीये जलाते थे, लेकिन इस बार 21 से 51 दीये जलाने का विचार बना रहे हैं. इससे मिट्टी के कारीगरों के घर में भी उजाला होना तय है.