ETV Bharat / state

CSA University: सीएसए में पंचगव्य और जीवामृत से स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार, जल्द ही पूरे प्रदेश में मिलेगी - स्ट्राबेरी की चांडलर प्रजाति

कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में स्ट्राबेरी की नई प्रजाति प्रोफेसर और छात्रों ने मिलकर तैयार की है. आइए जानते हैं इस नई प्रजाति की क्या खासियत है?

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि
author img

By

Published : Mar 9, 2023, 4:37 PM IST

सीएसए में स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.

कानपुर: वैसे तो हर फल का स्वाद आमलोगों को खूब भाता है. लेकिन, बात खट्टे व रसभरे फलों की करें तो लोग स्ट्राबेरी ज्यादा पसंद करते हैं. सुर्ख लाल रंग वाली स्ट्राबेरी को अब लोग जमकर खाने लगे हैं. आमतौर पर पहाड़ों में उगाई जाने वाली स्ट्राबेरी को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के बगीचे में पंचगव्य व जीवामृत समेत कई अन्य बायोइंहेंसर की मदद से तैयार किया है.

स्ट्राबेरी की चांडलर प्रजाति का स्वाद स्ट्राबेरी की तमाम प्रजातियों से कहीं अधिक अच्छा है. इसमें विटामिन सी की मात्रा जबर्दस्त है. उद्यान महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ.वीके त्रिपाठी का कहना है, अब यहां की स्ट्राबेरी का स्वाद सूबे के हर शहर में लोग ले सकेंगे. इसके लिए सीएसए की ओर से सभी कृषि विवि व शिक्षण संस्थानों को पत्र भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि वैसे तो सात-आठ सालों से हम स्ट्राबेरी की फसल को तैयार कर रहे थे. लेकिन, चांडलर की प्रजाति पहली बार उगाई गई है. इसमें जो रनर (पेड़ की शाखाओं पर पड़ने वाली गांठों से निकलने वाले पौधे) है, उसकी भूमिका अहम है. उन्होंने बताया कि चांडल प्रजाति की यह स्ट्राबेरी की फसल चार महीने में तैयार हो जाती है. उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट और रसभरी पर उनकी शोध जारी है.

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में पंचगव्य और जीवामृत से स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में पंचगव्य और जीवामृत से स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.
पुआल व सूखी पत्तियों से पौधों को बचाया गया: सीएसए की शोधार्धी छात्रा अनुश्री ने बताया कि स्ट्राबेरी की इस फसल के लिए कई तरह के बायोइंहेंसर की मदद ली गई है. हालांकि, डर था कि कहीं पौधों में रोग न लग जाए. इसके लिए वैसे को पहाड़ों पर किसान प्लास्टिक का उपयोग कर पौधों को रोगों से बचाते हैं. लेकिन उन्होंने इस फसल को पूरी तक जैविक रूप से तैयार करने के लिए पौधों के नीचे पुआल व सूखी पत्तियों का प्रयोग किया. जिससे पौधों में किसी तरह का रोग न लगे. इसमें सफलता भी मिली है. इसी तरह शोधार्थी छात्र सत्यार्थ ने बताया कि स्ट्राबेरी की फसल तैयार करने में हमारा यह शोध पूरी तरह से नया है. इसमें अगर कोई पौधा खराब भी हो जाता है तो उसका उपयोग हम खाद के रूप में कर सकेंगे.कोरोना महामारी के दौर के बाद से विटामिन सी वाले फलों की खूब मांग: चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौर में विटामिन सी वाले फलों की खूब मांग है. ऐसे में तमाम शहरों में स्ट्राबेरी को लोग पसंद करने लगे हैं. वैसे तो यह फल अन्य फलों की तुलना में महंगा बिकता है। पर, लोग इसके स्वाद की दीवाने भी हैं.

इसे भी पढ़ें-Hathras News : हाथरस कृषि विज्ञान केंद्र में पल रहा कड़कनाथ मुर्गा, जानिए खासियत

सीएसए में स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.

कानपुर: वैसे तो हर फल का स्वाद आमलोगों को खूब भाता है. लेकिन, बात खट्टे व रसभरे फलों की करें तो लोग स्ट्राबेरी ज्यादा पसंद करते हैं. सुर्ख लाल रंग वाली स्ट्राबेरी को अब लोग जमकर खाने लगे हैं. आमतौर पर पहाड़ों में उगाई जाने वाली स्ट्राबेरी को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के बगीचे में पंचगव्य व जीवामृत समेत कई अन्य बायोइंहेंसर की मदद से तैयार किया है.

स्ट्राबेरी की चांडलर प्रजाति का स्वाद स्ट्राबेरी की तमाम प्रजातियों से कहीं अधिक अच्छा है. इसमें विटामिन सी की मात्रा जबर्दस्त है. उद्यान महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ.वीके त्रिपाठी का कहना है, अब यहां की स्ट्राबेरी का स्वाद सूबे के हर शहर में लोग ले सकेंगे. इसके लिए सीएसए की ओर से सभी कृषि विवि व शिक्षण संस्थानों को पत्र भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि वैसे तो सात-आठ सालों से हम स्ट्राबेरी की फसल को तैयार कर रहे थे. लेकिन, चांडलर की प्रजाति पहली बार उगाई गई है. इसमें जो रनर (पेड़ की शाखाओं पर पड़ने वाली गांठों से निकलने वाले पौधे) है, उसकी भूमिका अहम है. उन्होंने बताया कि चांडल प्रजाति की यह स्ट्राबेरी की फसल चार महीने में तैयार हो जाती है. उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट और रसभरी पर उनकी शोध जारी है.

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में पंचगव्य और जीवामृत से स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में पंचगव्य और जीवामृत से स्ट्राबेरी की नई प्रजाति तैयार.
पुआल व सूखी पत्तियों से पौधों को बचाया गया: सीएसए की शोधार्धी छात्रा अनुश्री ने बताया कि स्ट्राबेरी की इस फसल के लिए कई तरह के बायोइंहेंसर की मदद ली गई है. हालांकि, डर था कि कहीं पौधों में रोग न लग जाए. इसके लिए वैसे को पहाड़ों पर किसान प्लास्टिक का उपयोग कर पौधों को रोगों से बचाते हैं. लेकिन उन्होंने इस फसल को पूरी तक जैविक रूप से तैयार करने के लिए पौधों के नीचे पुआल व सूखी पत्तियों का प्रयोग किया. जिससे पौधों में किसी तरह का रोग न लगे. इसमें सफलता भी मिली है. इसी तरह शोधार्थी छात्र सत्यार्थ ने बताया कि स्ट्राबेरी की फसल तैयार करने में हमारा यह शोध पूरी तरह से नया है. इसमें अगर कोई पौधा खराब भी हो जाता है तो उसका उपयोग हम खाद के रूप में कर सकेंगे.कोरोना महामारी के दौर के बाद से विटामिन सी वाले फलों की खूब मांग: चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौर में विटामिन सी वाले फलों की खूब मांग है. ऐसे में तमाम शहरों में स्ट्राबेरी को लोग पसंद करने लगे हैं. वैसे तो यह फल अन्य फलों की तुलना में महंगा बिकता है। पर, लोग इसके स्वाद की दीवाने भी हैं.

इसे भी पढ़ें-Hathras News : हाथरस कृषि विज्ञान केंद्र में पल रहा कड़कनाथ मुर्गा, जानिए खासियत

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.