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यूपी से कश्मीर तक बढ़ी श्वेता की जबर्दस्त मांग, आप भी जानें इसकी खासियत - मूंग दाल की वैरायटी श्वेता

भारत अब दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है. इसमें सबसे बड़ा योगदान मूंग दाल की वैरायटी श्वेता, के-851 और टाइप-44 का भी है. खासकर श्वेता वैरायटी की डिमांड तो देश के सभी राज्य के किसान कर रहे हैं, जानें क्या है इसकी खासियत ....

moong dal variety sweta
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Published : Feb 14, 2023, 12:51 PM IST

कानपुर : पिछले कुछ माह से यूपी से लेकर जम्मू-कश्मीर तक श्वेता की जबर्दस्त मांग हो गई है. चौंकिए नहीं, श्वेता कोई अभिनेत्री या सेलिब्रेटी नहीं हैं. आपको जानकर हैरानी होगी, यह मूंग की दाल की एक ऐसी प्रजाति है, जिसने किसानों के बीच धूम मचा दी है. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में (सीएसए) इस प्रजाति को साल 2008 में विकसित कर लिया गया था, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर, बिहार, राजस्थान, गुजरात में नोटिफिकेशन के बाद स्टेट वैराइटी रिलीज कमेटी ने इसे पूरे यूपी के लिए लागू कर दिया गया है. उत्तरप्रदेश के लाखों किसानों के लिए मूंग दाल की वैरायटी श्वेता पहली पसंद बन चुकी है . यूपी के सभी जिलों में बड़े पैमाने पर श्वेता वैरायटी की खेती शुरू हो गई है.

Shweta demand increased in india
कानपुर सीएसए की ओर विकसित मूंग दाल की प्रजाति ने दलहन उत्पादन में क्रांति कर दी है.

12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है उत्पादन: इस प्रजाति को तैयार करने वाले सीएसए के वरिष्ठ वैज्ञानिक (दलहन अनुभाग) डॉ.मनोज कटियार ने बताया श्वेता का उत्पादन 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसे गर्मी और बारिश दोनों सीजन में उगाया जा सकता है. इसका दाना मध्यम आकार का और हरे चमकीले रंग का होता है, जिसे किसान बहुत अधिक चाहते हैं. यह फसल एक साथ पकती है, इसलिए इसमें बहुत अधिक मेहनत करने की जरूरत भी नहीं होती है.

Shweta demand increased in india
सीएसए के सीनियर साइंटिस्ट डॉ.मनोज कटियार के अनुसार, मूंग दाल की वैरायटी श्वेता की खेती करना आसान है.

के-851 और टाइप-44 का जलवा भी बरकार: डॉ.मनोज ने बताया कि, श्वेता के साथ ही मूंग की प्रजाति के-851 व टाइप-44 प्रजाति को भी सालों पहले विकसित किया गया था. इंडिया में इनकी मांग होने के साथ ही यह प्रजातियां बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ ही पूरे सेंट्रल जोन में टॉप पर हैं. इनकी खूबियों को देखते हुए कुछ माह पहले ही आईसीएआर ने अपने गोल्डन जुबली कार्यक्रम के दौरान उक्त सभी प्रजातियों को अवार्डेड कैटेगरी में भी शामिल किया है. डॉ.मनोज ने बताया कि सीएसए में वह अब तक मूंग व मसूर की 11 अलग-अलग और विशेष प्रजातियां तैयार कर चुके हैं.

पढ़ें : IIT Kanpur के प्रोफेसर बाेले- भारत के जोन-5 के शहराें में भूकंप आने की ज्यादा संभावना

कानपुर : पिछले कुछ माह से यूपी से लेकर जम्मू-कश्मीर तक श्वेता की जबर्दस्त मांग हो गई है. चौंकिए नहीं, श्वेता कोई अभिनेत्री या सेलिब्रेटी नहीं हैं. आपको जानकर हैरानी होगी, यह मूंग की दाल की एक ऐसी प्रजाति है, जिसने किसानों के बीच धूम मचा दी है. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में (सीएसए) इस प्रजाति को साल 2008 में विकसित कर लिया गया था, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर, बिहार, राजस्थान, गुजरात में नोटिफिकेशन के बाद स्टेट वैराइटी रिलीज कमेटी ने इसे पूरे यूपी के लिए लागू कर दिया गया है. उत्तरप्रदेश के लाखों किसानों के लिए मूंग दाल की वैरायटी श्वेता पहली पसंद बन चुकी है . यूपी के सभी जिलों में बड़े पैमाने पर श्वेता वैरायटी की खेती शुरू हो गई है.

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कानपुर सीएसए की ओर विकसित मूंग दाल की प्रजाति ने दलहन उत्पादन में क्रांति कर दी है.

12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है उत्पादन: इस प्रजाति को तैयार करने वाले सीएसए के वरिष्ठ वैज्ञानिक (दलहन अनुभाग) डॉ.मनोज कटियार ने बताया श्वेता का उत्पादन 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसे गर्मी और बारिश दोनों सीजन में उगाया जा सकता है. इसका दाना मध्यम आकार का और हरे चमकीले रंग का होता है, जिसे किसान बहुत अधिक चाहते हैं. यह फसल एक साथ पकती है, इसलिए इसमें बहुत अधिक मेहनत करने की जरूरत भी नहीं होती है.

Shweta demand increased in india
सीएसए के सीनियर साइंटिस्ट डॉ.मनोज कटियार के अनुसार, मूंग दाल की वैरायटी श्वेता की खेती करना आसान है.

के-851 और टाइप-44 का जलवा भी बरकार: डॉ.मनोज ने बताया कि, श्वेता के साथ ही मूंग की प्रजाति के-851 व टाइप-44 प्रजाति को भी सालों पहले विकसित किया गया था. इंडिया में इनकी मांग होने के साथ ही यह प्रजातियां बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ ही पूरे सेंट्रल जोन में टॉप पर हैं. इनकी खूबियों को देखते हुए कुछ माह पहले ही आईसीएआर ने अपने गोल्डन जुबली कार्यक्रम के दौरान उक्त सभी प्रजातियों को अवार्डेड कैटेगरी में भी शामिल किया है. डॉ.मनोज ने बताया कि सीएसए में वह अब तक मूंग व मसूर की 11 अलग-अलग और विशेष प्रजातियां तैयार कर चुके हैं.

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