कानपुर: देश में की गई नोटबंदी को शुक्रवार को 3 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन नोटबंदी की मार से आज भी जिले का चमड़ा उद्योग उबर नहीं पाया है. टेनरी निर्मित उत्पादन में 60 प्रतिशत की गिरावट आने की वजह से करीब 75 फीसदी कामगार बेरोजगार हो गये हैं. नोटबंदी ने जहां घरेलू स्तर पर चमड़ा उद्योग की कमर तोड़ दी है. वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापार मंदी की कगार पर है.
लेबर ने अपने गांव का किया रुख
कानपुर देश में सबसे ज्यादा चमड़ा एक्सपोर्ट करने वाले शहरों में से एक है. यहां चमड़े से बनने वाले जूते, बेल्ट, जेकेट, पर्स आदि विदेशों तक एक्सपोर्ट किये जाते हैं. नोटबन्दी से पहले तक इन फैक्ट्रियों के पास से गुजरने से मशीनों की चलने की आवाजे सुनाई देने के साथ लेबरों की आवाजाही दिखाई देती थी, लेकिन नोटबंदी की मार ऐसी इन पर ऐसी पड़ी की मशीनों ने मौन धारण कर लिया और यहां काम करने वाले लेबरों ने अपने गांव का रुख कर लिया. जिसके चलते कई छोटी बड़ी फैक्ट्रियां बंद हो गई.
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75 प्रतिशत कामगार हुए बेरोजगार
पीढ़ियों से चमड़ा उद्योग से जुड़े कारोबारियों के मुताबिक नोटबंदी के बाद नकद लेन-देन में परेशानी की वजह से चमड़ा निर्माण के लिये जानवरों की खालें नहीं मिल पा रही हैं. देश के प्रमुख चमड़ा क्लस्टर कानपुर में नोटबंदी के कारण खालों की उपलब्धता में 75 प्रतिशत तक गिरावट आई है. वहीं, मजदूरी न मिल पाने की वजह से लगभग 75 प्रतिशत कामगार बेरोजगार हो गये हैं. तमाम औद्योगिक संगठन वर्तमान आर्थिक सुस्ती के तमाम कारणों में से एक अहम वजह नोटबंदी को ही मानते हैं.