कानपुरः शहर की दो विधानसभाओं के बीच बना गुजैनी-पतरसा पुल पूरी तरह जर्जर हो चुका है. इसके बावजूद ग्रामीण इसे इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. 22 साल पहले इस पुल को ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा करके बनवाया था. हर रोज लगभग 20 गांव के लोग इस पुल का इस्तेमाल कर शहर की ओर आवागमन करते हैं. लेकिन, इसकी जर्जर स्थिति के बावजूद लोग इस पुल से गुजरने को मजबूर हैं. पांडव नदी पर बना यह पुल शहर की दो विधानसभाओं के बीच में पड़ता है. इसीलिए जनप्रतिनिधियों को यह समस्या नहीं दिखाई दे रही है. ग्रामीणों ने कई बार सांसद से लेकर विधायक तक इस समस्या के उपाय के लिए गुहार लगाई, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं की गई.
ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास शहर को जोड़ने के लिए यही एक मात्र सहारा है. लोहे के इस पुल को ग्रामीणों और समाज सेवियों ने साल 2006 में बनवाया था. इसके बाद पुल के जर्जर होने की जानकारी कई जनप्रतिनिधियों को दी गयी. लेकिन, किसी ने इस समस्या का समाधान नहीं किया. ग्रामीणों के अनुसार, कानपुर-झांसी रेलवे ट्रैक के किनारे बसे गांव के लोगों को शहर में आने के लिए रेलवे ट्रैक का सहारा लेना पड़ता था. इससे रात के समय और कोहरे में रेलवे ट्रैक पार करते समय ग्रामीण या तो ट्रेन की चपेट में आ जाते थे या फिर पांडु नदी में गिर कर हादसे का शिकार हो जाते थे. आए दिन होने वाले हादसों की रोकथाम के लिए ग्रामीणों 4 लाख रुपये की लागत से गुजैनी-पतरसा पुल का निर्माण कराया था.
ग्रामीणों का कहना है कि पुल के निर्माण के बाद से हादसों में रोक तो लगी, लेकिन 22 साल बीतने के बाद लोहे का यह पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका है. पुल की लोहे की चादर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है. पुल से वाहन लेकर गुजरने पर यह पूरी तरह से हिचकोले खाता है. जर्जर पुल का एक छोर गोविंद नगर विधानसभा और दूसरा बिठूर विधान सभा में पड़ता है. इस कारण क्षेत्रीय विधायकों ने इसकी ओर कभी ध्यान नहीं दिया. ग्रामीणों ने कई बार विधायकों को इस समस्या से अवगत कराया, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.
वहीं, गोविंदनगर विधानसभा के विधायक सुरेंद्र मैथानी ने बताया कि भौगोलिक स्थिति में पुल उनकी विधानसभा में नहीं आता है. लेकिन, उस पुल के निर्माण के लिए जो भी प्रयास संभव होगा. वह किया जाएगा.
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