ETV Bharat / state

Dashanan Ravan Mandir: देश का एक ऐसा मंदिर जो केवल दशहरे पर खुलता है, लोग करते हैं रावण की पूजा

उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर है, जो केवल दशहरे पर ही खुलता है और लोग रावण की पूजा करते हैं. इतना ही नहीं रावण दहन के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है.

दशानन मंदिर.
दशानन मंदिर.
author img

By

Published : Oct 15, 2021, 10:00 AM IST

Updated : Oct 15, 2021, 10:33 AM IST

कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर है, जो केवल दशहरे पर ही खुलता है और लोग रावण की पूजा करते हैं. इतना ही नहीं रावण दहन के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है. कानपुर के शिवाला रोड पर स्थित इस मंदिर का नाम दशानन मंदिर है.

जहां पूरा देश दशहरा के दिन रावण दहन कर खुशियां मनाता है. वहीं कुछ लाेग ऐसे भी हैं जाे रावण के 100 साल पुराने इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. यह पूजा केवल दशहरे के दिन ही हाेती है. कानपुर के बड़े चौराहे स्थित शिवाला में दशानन के रूप में विराजमान हैं. विजयदशमी को सुबह मंदिर में प्रतिमा का श्रृंगार-पूजन कर कपाट खोले जाते हैं और शाम को आरती उतारी जाती है.

जानकारी देते संवाददाता और श्रद्धालु.
यह कपाट साल में सिर्फ एक ही बार दशहरा के दिन ही खुलता हैं. मां भक्त मंडल के संयोजक केके तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने मंदिर का निर्माण कराया था वे भगवान शिव के परम भक्त थे. उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण का मंदिर का निर्माण कराया था. ऐसी मान्यता है कि दशानन मंदिर में दशहरे के दिन लंकाधिराज रावण की आरती के समय नीलकंठ के दर्शन श्रद्धालुओं को मिलते हैं.

महिलाएं दशानन की सरसों के तेल का दीया और तरोई के फूल अर्पित कर सुख समृद्धि पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान व शक्ति की कामना करती है. भक्त दशानन से विद्या और ताकत का वर मांगते हैं अहंकार न करने का भी संदेश भी दिया जाता है. रावण प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था, लेकिन उसे खुद पर घमंड भी आ गया था. इस मंदिर की मान्यता है कि मंदिर में दशानन के दर्शन करते समय भक्तों को अहंकार नहीं करने की सीख भी मिलती है. क्योंकि ज्ञानी होने के बाद भी अहंकार करने से ही रावण का पूरा परिवार खत्म हो गया था.

बता दें, शिवाला स्थित दशानन मंदिर का पट शुक्रवार की सुबह खुला तो विधि विधान से पूजन किया गया. शुक्रवार की सुबह मंदिर के पुजारी ने मंदिर के पट खोले तो भक्तों ने साफ सफाई करके दशानन की प्रतिमा को दूध, दही गंगाजल से स्नान कराया. इस दौरान कई प्रकार के पुष्पों से मंदिर को सजाया गया और आरती भी उतारी गई. कोविड गाइड लाइन के चलते इस बार आरती में कुछ संख्या में ही भक्त शामिल हुए. महिलाओं ने मंदिर में सरसों के तेल का दीप जलाकर सुख समृद्धि और पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान और शक्ति की कामना की.

मंदिर पुजारी चंदन मौर्य से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि पूजा साल में एक ही बार की जाती है. यह मंदिर 1868 में मंदिर स्थापित हुआ था. ये इकलौता रावण का मंदिर है. इसमें दर्शन करने कानपुर और बहार से लोग भी आते है.

दशहरे के मौके पर इस रावण की मूर्ति को फूलों से सजाया जाता है और आरती उतारी जाती है. इसके अलावा श्रद्धालु तेल के दीये जलाते हैं और मूर्ति के सामने मंत्रों का उच्चारण भी करते हैं. वहीं, जब रावण दहन हो जाता है कि मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. इसके अलावा देश में कुछ और मंदिर हैं जहां रावण की पूजा होती है, खासकर दक्षिण भारत में लोग रावण को काफी मानते हैं.

इसे भी पढें- दशहरा पर यहां होती है रावण की पूजा

कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर है, जो केवल दशहरे पर ही खुलता है और लोग रावण की पूजा करते हैं. इतना ही नहीं रावण दहन के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है. कानपुर के शिवाला रोड पर स्थित इस मंदिर का नाम दशानन मंदिर है.

जहां पूरा देश दशहरा के दिन रावण दहन कर खुशियां मनाता है. वहीं कुछ लाेग ऐसे भी हैं जाे रावण के 100 साल पुराने इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. यह पूजा केवल दशहरे के दिन ही हाेती है. कानपुर के बड़े चौराहे स्थित शिवाला में दशानन के रूप में विराजमान हैं. विजयदशमी को सुबह मंदिर में प्रतिमा का श्रृंगार-पूजन कर कपाट खोले जाते हैं और शाम को आरती उतारी जाती है.

जानकारी देते संवाददाता और श्रद्धालु.
यह कपाट साल में सिर्फ एक ही बार दशहरा के दिन ही खुलता हैं. मां भक्त मंडल के संयोजक केके तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने मंदिर का निर्माण कराया था वे भगवान शिव के परम भक्त थे. उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण का मंदिर का निर्माण कराया था. ऐसी मान्यता है कि दशानन मंदिर में दशहरे के दिन लंकाधिराज रावण की आरती के समय नीलकंठ के दर्शन श्रद्धालुओं को मिलते हैं.

महिलाएं दशानन की सरसों के तेल का दीया और तरोई के फूल अर्पित कर सुख समृद्धि पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान व शक्ति की कामना करती है. भक्त दशानन से विद्या और ताकत का वर मांगते हैं अहंकार न करने का भी संदेश भी दिया जाता है. रावण प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था, लेकिन उसे खुद पर घमंड भी आ गया था. इस मंदिर की मान्यता है कि मंदिर में दशानन के दर्शन करते समय भक्तों को अहंकार नहीं करने की सीख भी मिलती है. क्योंकि ज्ञानी होने के बाद भी अहंकार करने से ही रावण का पूरा परिवार खत्म हो गया था.

बता दें, शिवाला स्थित दशानन मंदिर का पट शुक्रवार की सुबह खुला तो विधि विधान से पूजन किया गया. शुक्रवार की सुबह मंदिर के पुजारी ने मंदिर के पट खोले तो भक्तों ने साफ सफाई करके दशानन की प्रतिमा को दूध, दही गंगाजल से स्नान कराया. इस दौरान कई प्रकार के पुष्पों से मंदिर को सजाया गया और आरती भी उतारी गई. कोविड गाइड लाइन के चलते इस बार आरती में कुछ संख्या में ही भक्त शामिल हुए. महिलाओं ने मंदिर में सरसों के तेल का दीप जलाकर सुख समृद्धि और पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान और शक्ति की कामना की.

मंदिर पुजारी चंदन मौर्य से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि पूजा साल में एक ही बार की जाती है. यह मंदिर 1868 में मंदिर स्थापित हुआ था. ये इकलौता रावण का मंदिर है. इसमें दर्शन करने कानपुर और बहार से लोग भी आते है.

दशहरे के मौके पर इस रावण की मूर्ति को फूलों से सजाया जाता है और आरती उतारी जाती है. इसके अलावा श्रद्धालु तेल के दीये जलाते हैं और मूर्ति के सामने मंत्रों का उच्चारण भी करते हैं. वहीं, जब रावण दहन हो जाता है कि मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. इसके अलावा देश में कुछ और मंदिर हैं जहां रावण की पूजा होती है, खासकर दक्षिण भारत में लोग रावण को काफी मानते हैं.

इसे भी पढें- दशहरा पर यहां होती है रावण की पूजा

Last Updated : Oct 15, 2021, 10:33 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.